ज्ञान के दरवाजे खोलने की पहल, वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन योजना मंजूर !
ज्ञान के दरवाजे खोलने की पहल, वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन योजना मंजूर
सरकार की यह पहल गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा एवं शोध तक शहरी और साथ ही ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं की पहुंच को आसान बनाएगी। यह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति विकसित भारत और नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के लक्ष्यों के अनुरूप है जो भारतीय शिक्षा जगत और युवा सशक्तीकरण के लिए गेम-चेंजर साबित होगी। इस योजना का लक्ष्य उन संस्थानों के लिए शोध पत्रिकाओं तक पहुंच का विस्तार करना है।
..केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले दिनों देश भर के छात्रों को विद्वानों के शोध लेखों और जर्नल प्रकाशन तक आसान पहुंच प्रदान करने के उद्देश्य से वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन (ओएनओएस) नामक एक नई योजना को मंजूरी दी। इस योजना के माध्यम से देश के लगभग 1.8 करोड़ छात्र, शिक्षक और शोधकर्ता विश्व स्तर पर प्रकाशित हो रहे 13,000 से अधिक ई-जर्नल तक आसान पहुंच हासिल कर सकेंगे। ओएनओएस योजना केवल प्रमुख महानगरीय क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि टियर 2 और टियर 3 शहरों में भी रहने वाले छात्रों, शोधकर्ताओं और शिक्षकों को भी वैश्विक स्तर पर सृजित हो रहे ज्ञान का लाभ उठाने का अवसर प्रदान करेगी। इससे पहले जर्मनी और उरुग्वे सरकारों ने अनुसंधान सामग्री तक समान राष्ट्रीय पहुंच की शुरुआत की थी। वास्तव में वैज्ञानिक और शैक्षणिक प्रगति तभी प्राप्त की जा सकती है, जब वैश्विक ज्ञान तक पहुंच सुलभ हो। अनुसंधान एवं विकास ही हम सभी के लिए बेहतर जीवन का द्वार खोलती है। भारत पिछले कुछ वर्षों में श्रम-आधारित अर्थव्यवस्था को कौशल-आधारित अर्थव्यवस्था में बदलने में काम कर रहा। 15 अगस्त, 2022 को अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत की प्रगति में अनुसंधान और विकास की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बात की थी और जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान के बाद जय अनुसंधान जोड़ा था।
सरकार की यह पहल गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा एवं शोध तक शहरी और साथ ही ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं की पहुंच को आसान बनाएगी। यह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, विकसित भारत और नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के लक्ष्यों के अनुरूप है, जो भारतीय शिक्षा जगत और युवा सशक्तीकरण के लिए गेम-चेंजर साबित होगी। इस योजना का लक्ष्य उन संस्थानों के लिए शोध पत्रिकाओं तक पहुंच का विस्तार करना है, जिनके पास पर्याप्त संसाधनों की कमी है। यह प्लेटफार्म एक जनवरी, 2025 को शुरू होने वाला है। इस मंच पर एल्सेवियर साइंस डायरेक्ट (लैंसेट सहित), स्प्रिंगर नेचर, विली ब्लैकवेल पब्लिशिंग, टेलर एंड फ्रांसिस, आइईईई, सेज पब्लिशिंग, अमेरिकन केमिकल सोसायटी, अमेरिकन मैथमेटिकल सोसायटी, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस और बीएमजे जर्नल्स सहित 30 अंतरराष्ट्रीय प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित 13,000 पत्रिकाएं उपलब्ध होंगी।
वर्तमान में विभिन्न मंत्रालयों के अंतर्गत दस अलग-अलग पुस्तकालय संघ हैं, जो अपने प्रशासनिक दायरे में उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए पत्रिकाओं तक पहुंच प्रदान करते हैं। इसके अलावा अलग-अलग संस्थान अलग-अलग पत्रिकाओं की सदस्यता लेते हैं। वैज्ञानिक पत्रिकाओं की सदस्यता एक महंगा मामला है। ओएनओएस के आरंभ होने से यह बहुत सस्ता हो जाएगा। एक ही मंच पर सारी पत्रिकाएं उपलब्ध होने से शोधार्थियों को भटकना भी नहीं पड़ेगा। एक आंकड़े के अनुसार भारत ने 2018 में इलेक्ट्रानिक और प्रिंट पत्रिकाओं की सदस्यता पर लगभग 1,500 करोड़ रुपये खर्च किए थे।
शोध अंतर्दृष्टि डाटाबेस स्किवल के अनुसार 2017 और 2022 के बीच भारत के शोध प्रकाशन में लगभग 54 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो वैश्विक औसत (22 प्रतिशत) के दोगुने से भी अधिक है। भारत का शोध पत्रिकाओं के प्रकाशन में चौथा स्थान (13 लाख अकादमिक पेपर) रखता है, जो चीन (45 लाख), अमेरिका (44 लाख) और ब्रिटेन (14 लाख) के ठीक बाद है, परंतु जब उत्पादित शोध के प्रभाव की बात आती है, तो उद्धरणों (साइटेशन) की संख्या में भारत पीछे रह जाता है और दुनिया में नौवें स्थान पर आता है। सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग और इंस्टीट्यूट फार कांपिटिटिवनेस द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार भारत का अनुसंधान एवं विकास पर यह खर्च दुनिया में सबसे कम है। देश की नवाचार सफलता में एक और बाधा अनुसंधान एवं विकास कर्मियों की कम संख्या है। यूनेस्को इंस्टीट्यूट आफ स्टैटिस्टिक्स के अनुसार प्रति दस लाख आबादी पर केवल 253 विज्ञानी या शोधकर्ता हैं, जो विकसित राष्ट्रों की तुलना में काफी कम है।
निजी क्षेत्र का योगदान अनुसंधान एवं विकास पर सकल व्यय का 40 प्रतिशत से कम है, जबकि उन्नत देशों में यह 70 प्रतिशत से अधिक है। दुनिया में अनुसंधान एवं विकास पर खर्च करने के मामले में शीर्ष 2,500 वैश्विक कंपनियों की सूची में केवल 26 भारतीय कंपनियां हैं। जबकि चीनी कंपनियों की संख्या 301 है। इस अंतर को प्राथमिकता के आधार पर पाटने की आवश्यकता है। चीन का मुकाबला करने के लिए उससे सीख लेने में हर्ज नहीं। इजरायल से भी सीख ली जानी चाहिए, जिसने यह दिखा दिया है कि एक छोटा राष्ट्र होने के बावजूद अनुसंधान एवं विकास में निवेश को प्राथमिकता देकर सतत विकास हासिल किया जा सकता है। भारत में निजी कंपनियां मुख्य रूप से बिक्री और विपणन में निवेश करती हैं और अनुसंधान एवं विकास में पर्याप्त संसाधनों का निवेश नहीं करती हैं। यही कारण है कि भारतीय ब्रांड नवाचार नहीं कर रहे हैं, जिसके चलते भारतीय निर्माता विश्व स्तर पर अनुकरणीय उत्पाद नहीं बना रहे हैं और विश्व बाजार में चीनी कंपनियों की चुनौती का सामना नहीं कर पा रहे हैं। अब समय आ गया है कि मेक इन इंडिया के लिए अनुसंधान एवं विकास पर फिर से ध्यान केंद्रित किया जाए।
भारत के पास नवाचार का वैश्विक चालक बनने के लिए आवश्यक सभी सामग्रियां, एक मजबूत बाजार क्षमता, असाधारण प्रतिभावान आबादी और मितव्ययी नवाचार की एक संपन्न संस्कृति हैं। जरूरत है तो कच्ची प्रतिभाओं की खान को सही मार्गदर्शन की। वास्तव में एक मजबूत अर्थव्यवस्था होने के लिए देश के पास दीर्घकालिक और सार्थक स्तर पर ज्ञान प्रणाली की आवश्यकता है, जो अर्थव्यवस्था को शक्ति प्रदान करती है। जितनी बौद्धिक संपदा सृजित होगी उतने बड़े पैमाने पर रोजगार भी सृजित होंगे।
(लेखक जेएनयू के अटल स्कूल आफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर हैं)