उत्तर प्रदेश:राजनीतिक पार्टियों, सरकारों से अब आरक्षण के बिना रहा नहीं जाता

उत्तर प्रदेश सरकार आख़िर जीत गई। मामला यह है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण रद्द करते हुए राज्य सरकार से कहा था कि वह इस आरक्षण के बिना ही तत्काल शहरी निकायों के चुनाव करवाए। सरकारों या राजनीतिक पार्टियों से बिना आरक्षण अब कहाँ रहा जाता है! वोट बैंक जो है।

सब जानते हैं उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है। यह वही भारतीय जनता पार्टी है जो वर्षों से जातिगत आरक्षण को ख़त्म करने के पक्ष में रही है। कहती रही है कि आरक्षण लागू ही रखना है तो इसका आधार जाति नहीं, बल्कि आर्थिक होना चाहिए। सही भी है। लेकिन फ़िलहाल वह ओबीसी आरक्षण पर अड़ गई थी।

सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुशी जाहिर की।
सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुशी जाहिर की।

राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुँची और आख़िर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के हक़ में फ़ैसला दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का फ़ैसला स्थगित करते हुए निकाय चुनावों को तीन महीने टाल दिया है। इन तीन महीनों में पिछड़ा वर्ग आयोग आरक्षण की रिपोर्ट पेश करेगा और तब चुनाव होंगे। इन तीन महीनों तक इस बारे में कोई भी नीतिगत फ़ैसला लेने पर रोक रहेगी।

बहरहाल, अब सरकार को ओबीसी श्रेणी के लोगों को खुश करने का मौक़ा मिल गया है। हो सकता है चुनाव में भाजपा को इसका भरपूर फ़ायदा भी मिले। वैसे भी उत्तर प्रदेश में आरक्षण का ज़ोर कुछ ज़्यादा ही है। फिर हाईकोर्ट ने इसे रद्द क्यों किया था? दरअसल, सरकारें मनमाने ढंग से आरक्षण का इस्तेमाल करती रही हैं।

ऐसे मनमाने आरक्षण से ही नाराज़ हाईकोर्ट ने इसे रद्द करने का फ़ैसला लिया होगा। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने उसे फिर से सही ढंग से लागू करने का रास्ता खोल दिया है। अब आरक्षण के साथ निकाय चुनाव तो हो सकेंगे लेकिन कम से कम सरकार की मनमानी नहीं चलेगी।

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