डॉक्टर तय करते MRP …झोलाछाप के अस्पताल …..जांच में कमीशन का खेल ?

38 की दवा 1200 रुपए में, डॉक्टर तय करते MRP
पंजाब, हरियाणा, हिमाचल में डिमांड पर दवाएं तैयार; कंपनियां बोलीं- जो रेट चाहेंगे हो जाएगा

देश में दवाओं की कीमत सरकार नहीं बल्कि डॉक्टर खुद तय कर रहे हैं। डॉक्टर अपने मुताबिक ब्रांड बनवाते हैं। कीमत फिक्स करते हैं। 38 रुपए की दवा की MRP 1200 रुपए कर दी जा रही है। यह महज एक एग्जाम्पल है, ऐसा तमाम दवाओं में किया जा रहा है।

तीन राज्यों पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की फैक्ट्रियों से ही देश में 80 फीसदी दवाएं सप्लाई की जाती हैं। कंपनियों और डॉक्टरों के इस खेल को एक्सपोज करने के लिए …… रिपोर्टर इन तीनों राज्यों में पहुंचे और हॉस्पिटल संचालक बनकर दवा कंपनियों से डील की।

कंपनियां हमारे हिसाब से न सिर्फ दवाएं बनाने को तैयार हो गईं, बल्कि कीमत भी तय की। हमने चंडीगढ़ की 3 कंपनियों, हरियाणा के पंचकुला में दो कंपनियों, हिमाचल प्रदेश के बद्धी में एक दवा कंपनी के मार्केटिंग रिप्रजेंटेटिव से डील की। करीब 25 कंपनियों से मोबाइल पर भी डील की।

पढ़िए और देखिए कि यह इंवेस्टिगेटिव रिपोर्ट…

 

….. रिपोर्टर ने हॉस्पिटल संचालक बनकर बातचीत की

‘ऑर्डर दीजिए, दवा की पैकिंग से लेकर MRP सब आपकी चॉइस की कर देंगे…’

रिपोर्टर: आपका थर्ड पार्टी का काम है या खुद की फैक्ट्री है? हमें अपने ब्रांड की दवा बनवानी है। पलक: यहां अधिकतर कंपनियां थर्ड पार्टी का काम करती हैं, हमारी फैक्ट्री बद्दी में है। आप ऑर्डर दीजिए, दवा की पैकिंग से लेकर MRP सब आपकी चॉइस की कर देंगे।

रिपोर्टर: हमें अपने हिसाब से MRP तय करनी है? पलक: MRP आपके हिसाब से हो जाएगी। बल्क में ऑर्डर दीजिएगा तो 20% छूट भी मिल जाएगी। डॉक्टर और हॉस्पिटल तो खुद अपनी दवाएं बनवा ही रहे हैं।

रिपोर्टर: आप DSR कितने में बना दीजिएगा? पलक: गैस की गोली (DSR) डॉक्टर अपनी डिमांड पर 150 रुपए में 10 गोली वाली MRP की बनवा रहे हैं, जिसे हम 110 रुपए में 100 गोली दे देते हैं।

रिपोर्टर: एंटीबायोटिक और कफ सिरप का क्या रेट है? पलक: एंटीबायोटिक (एमॉक्सीसाइक्लिन 500) की 100 गोली 560 रुपए में बनवा देंगे, 25 रुपए प्रति गोली मरीजों को दे सकते हैं। खांसी की 200 एमएल की एक सिरप 70 रुपए में मिल जाएगी, इसकी MRP 1000 कर सकते हैं। 31 रुपए के फेसवॉश की MRP 225 और 21 रुपए के मेडिकेटेड साबुन की MRP 209 हो जाएगी।

रिपोर्टर: मार्जिन और कैसे बढ़ सकता है? पलक: दवा में माइक्रो पायलट का इस्तेमाल होता है। इससे ही एक्सपायरी निर्धारित होती है। अगर दवा में माइक्रो पायलट की क्वालिटी थोड़ी डाउन कर दी जाए तो मार्जिन बढ़ जाएगा, लेकिन एक्सपायरी का समय कम हो जाएगा।

रिपोर्टर: एक्सपायरी तो सरकार तय करती है? पलक: मटेरियल और एक्सपायरी को लेकर सरकार की कोई गाइडलाइन नहीं है। एक्सपायरी की डेट भी कंपनियां तय करती हैं। सरकार के कंट्रोल में जो दवाएं हैं, इसे लेकर थोड़ी सख्ती है। बाकी मेडिसिन पर कोई खास निगरानी नहीं है।

रिपोर्टर: हमें अपने ब्रांड की दवाएं बनवानी है? एग्जीक्यूटिव: हमारी कंपनी थर्ड पार्टी का काम करती है, आप जैसी दवाएं चाहेंगे बन जाएगी।

रिपोर्टर: एंटीबायोटिक मेरोपेनम की क्या कीमत होगी? एग्जीक्यूटिव: मेरोपेनम इंजेक्शन 130 रुपए में दे देंगे, जिसकी एमआरपी 1067 रुपए है।

रिपोर्टर: इसकी MRP और बढ़ाना चाहें तो कैसे होगा? एग्जीक्यूटिव: हो जाएगा, पहले 2400 रुपए थी, आप जो चाहिएगा नए बैच में बनवा देंगे।

रिपोर्टर: हमारे यहां कुछ डॉक्टर 4000 रुपए एमआरपी की डिमांड कर रहे हैं? एग्जीक्यूटिव: सर से बात करनी पड़ेगी, 4000 MRP भी हो जाएगी।

रिपोर्टर: आपकी कंपनी कहां की है, किन-किन स्टेट में काम हो रहा है? एग्जीक्यूटिव : कंपनी बिहार की है, मालिक पटना में रहकर दवा की सप्लाई करते हैं। चंडीगढ़ से देश के अन्य राज्यों में दवा की सप्लाई की जाती है।

180 का इंजेक्शन है, MRP आप तय कर लीजिए

रिपोर्टर: हम अपनी ब्रांड की दवाएं अपनी मर्जी की एमआरपी पर बनवाना चाहते हैं? अर्चना: बन जाएगी। आपको 6 हजार वन टाइम डिपाजिट करना होगा और डिजाइन के लिए 500 अलग से देना होगा।

रिपोर्टर: आपका काम किन किन राज्यों में चल रहा है? अर्चना: पूरे देश में हमारी कंपनी का काम चल रहा है।

रिपोर्टर: एंटीबायोटिक मेरोपेनम का कितना पड़ेगा, एमआरपी क्या होगी? अर्चना: मेरोरिक है हमारी, एमआरपी आप जो चाहिएगा हो जाएगी। हम इसे 180 रुपए में बनाकर दे देंगे। इसमें कुछ कम भी हो जाएगा। हमारी एमआरपी 1900 है, आप कीमत अपने हिसाब से तय करवा सकते हैं।

चंडीगढ़ के बाद हम हरियाणा के पंचकुला पहुंचे, वहां भी कंपनियों से डील की…

38 रुपए की दवा, 1200 MRP

रिपोर्टर: हमें अपनी ब्रांड की दवाएं बनवानी है, लेकिन MRP हम अपने हिसाब से तय करना चाहते है? एमडी: हमारे पास कई डिवीजन हैं। MRP–ब्रांड आपके हिसाब से कर देंगे।

रिपोर्टर: आपका कारोबार किन-किन राज्यों में है? एमडी: मैं मूल रूप से राजस्थान का हूं, राजस्थान में मैं खुद कंपनी की डील करता हूं, बाकी देश के अन्य राज्यों में अलग-अलग पार्टियां काम करती हैं।

रिपोर्टर: MRP को लेकर कोई समस्या तो नहीं है? एमडी: नहीं कोई समस्या नहीं है। सरकार के कंट्रोल से बाहर वाले सॉल्ट पर आप अपनी मर्जी का MRP करा सकते हैं।

रिपोर्टर: हाई MRP वाला काम कहीं होता है? एमडी: कर्नाटक में बल्क में हॉस्पिटल चलाने वाले एक डॉक्टर ने डिमांड कर MRP बनवाई है। 380 रुपए में 100 गोली मिलने वाली दवा को 12000 रुपए में 100 गोली का MRP कराया है। 38 रुपए में 10 गोली आने वाली दवा 1200 रुपए में बिक रही है।

रिपोर्टर: आपकी कंपनी कब से काम कर रही है? एमडी: हम 2017 से आउट सोर्सिंग से दवा बनवा रहे हैं। जो दवाएं सरकार की निगरानी में नहीं हैं, उसकी MRP जितनी मर्जी हो करा सकते हैं। MRP को लेकर ही हम 3 अलग-अलग ब्रांड के डिवीजन डील करते हैं।

रिपोर्टर: हम अपनी ब्रांड की दवाएं अपनी चॉइस की MRP पर बनवाना चाहते हैं? रिचा: हमारी अधिकतर दवाएं बाहर जाती हैं। हालांकि दवा की बहुत सारी कंपनियां मुनाफा के चक्कर में समझौता कर रही हैं, हमारे यहां ऐसा नहीं है।

रिपोर्टर: आप दवाएं बनवा सकती हैं? रिचा: दवा तो बन जाएगी, लेकिन MRP बहुत अधिक नहीं कर सकते हैं। ब्रांडेड कंपनियों से ज्यादा MRP नहीं कर सकते।

रिपोर्टर: MRP जब हमारे हिसाब से नहीं होगी तो फिर मार्जिन कम हो जाएगा, फिर अपना ब्रांड बनवाने से फायदा क्या होगा? रिचा: हो जाएगा, MRP में कोई मामला नहीं आएगा। बहुत अधिक नहीं बढ़ाइएगा, बाकी सब मैनेज हो जाएगा। सरकार की निगरानी वाली दवा की MRP बढ़ाई तो हमें नोटिस आ जाएगा।

रिपोर्टर: अपना ब्रांड बनवाने के लिए क्या शर्त है? रिचा: ऑर्डर के साथ 50 प्रतिशत देना होगा। मेडिसिन तैयार होने के बाद पूरा पैसा देना होगा। इसके बाद कंपनी से आपके एड्रेस पर दवा भेज दी जाएगी।

रिपोर्टर: इंजेक्शन की MRP हमको अधिक चाहिए, इसी में मरीजों से पैसा मिलता है? रिचा: सरकार की निगरानी से अलग फॉर्मूला वाली इंजेक्शन में आप जितना चाहें उतनी MRP कर लीजिएगा, कोई समस्या नहीं है।

हरियाणा के बाद हम डील करने हिमाचल प्रदेश पहुंचे..

रिपोर्टर: हमें कुछ दवाएं बनवानी हैं, MRP अपने हिसाब से चाहते हैं?​​​​​​​ संतोष: हो जाएगा, आप दवा का ऑर्डर दीजिएगा। दवाएं आपको मार्केट में सबसे कम रेट में बनाकर दी जाएंगी। आप अपना रेंज बता दीजिए।

रिपोर्टर: इंजेक्शन भी बनाते हैं क्या? संतोष: ये हमारी मैनुफैक्चरिंग यूनिट है, लेकिन इंजेक्शन जम्मू से ही बनता है। कंपनी की ऑफिस पंचकुला में है। आप वहां जाकर बात कर लीजिए।

रिपोर्टर: हम चंडीगढ़ में डील कर रहे हैं तो महंगा पड़ रहा है? संतोष: यहां बनवाएंगे तो कम पड़ेगा, यहां हर तरह की दवाएं बन जाती हैं। हमारे यहां सॉफ्टजेल और टेबलेट बनता है। हमारा जम्मू में प्लांट है, वहां से आपकी सारी डिमांड पूरी हो जाएगी। आप कंपनी के मालिक रतन जी से बात कर लीजिएगा।

25 से अधिक कंपनियों से MRP पर डील

पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की 25 से अधिक कंपनियों से मोबाइल पर बातचीत से भी डील की। इसमें गुरुग्रेस फार्मासिटिकल, फार्माहोपर्स, ग्रैंथम लाइफ साइंसेस, एवरल्यान हेल्थकेयर, फेल्थॉन हेल्थकेयर, केम्ब्रिस फार्मासिटिकल, लिंबसन फार्मा, जेनिथ फार्मा, जीथर फार्मा, जेमसन फार्मा प्रोडक्ट्स, जेपी फार्मासिटिकल, यूनिप्योर, कोट एंड कोट फर्माकेयर, मेडलक फार्मासिटिकल, पीपी फार्मासिटिकल, वैनेसिया फार्मा, ग्रैंथम फर्मा, जैक फार्मा, मैकोजी फर्मा, मेडिवेक फार्मा, चेमरोज लाइफ साइसेंस, केयरर्स फील्ड फर्मासिटिकल, अत्याद लाइफसाइसेंस प्राइवेट लिमिटेड, मिकाल्या लाइफ प्राइवेट लिमिटेड, अर्निक फार्मासिटिकल सहित अन्य कई कंपनियों से बातचीत में MRP पर डील फाइनल हो गई। कंपनियों ने MRP अपनी चॉइस पर करने की बात कही है।

देश के चारों जोन में दवा का 2 लाख करोड़ से ज्यादा का कारोबार है

मामले पर IMA और फार्मा एसोसिएशन का व्यू

20 साल में दवा का कारोबार 2 लाख करोड़ तक पहुंचा

एक्सपर्ट मानते हैं, 20 साल में 40 हजार करोड़ से दवा का कारोबार 2 लाख करोड़ के पास पहुंच गया है। इसका बड़ा कारण वो MRP में बड़े खेल को मानते हैं। 2005 से 2009 तक 50 प्रतिशत MRP पर दवाएं बिक रही थी। अगर 1200 रुपए की MRP है तो डीलर को 600 रुपए में दी जाती थी। अब डॉक्टर अपने हिसाब से ही MRP तय करवा रहे हैं।

जो दवाएं सरकार के कंट्रोल से बाहर, उनमें मनमानी

दवा की क्वालिटी और MRP की निगरानी के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइस अथॉरिटी (NPPA) काम करती है। सरकार ड्रग्स प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (DPCO) के माध्यम से दवा की MRP पर नियंत्रण रखती है। आवश्यक और जीवन रक्षक दवाओं के लिए अधिकतम मूल्य निर्धारित करने के साथ DPCO की जिम्मेदारी मरीजों के लिए दवाएं सस्ती और सुलभ कराने की भी है।

सरकार जिन दवा को DPCO के अंडर में लाती है, उनकी MRP तो कंट्रोल में होती है, लेकिन सैकड़ों फॉर्मूले की दवाएं आज भी सरकार के कंट्रोल से बाहर हैं, जिसकी MRP में मनमानी चल रही है।

दवाओं की कीमतों में इजाफे को लेकर सरकार की गाइडलाइन है कि एक साल में 10 प्रतिशत ही MRP बढ़ाई जा सकती है। लेकिन कंपनियां प्रोडक्ट्स का नाम बदलकर हर साल डॉक्टरों की डिमांड वाली MRP बना रही हैं। कंपनियां अलग डिवीजन और ब्रांड बदलकर MRP अपने हिसाब से फिक्स कर देती हैं।

………………………………………………………………..

2 जांच में कमीशन का खेल, जानिये कहां कितना बंधा है परसेंटेज

हर जांच पर कमीशन: हर डॉक्टर के तय हैं जांच सेंटर…

भोपाल•Dec 05, 2017 / 11:14 am•

भोपाल। राजधानी में संचालित पैथोलॉजी सहित अन्य लैब और जांच केंद्र अब तक पूरी तरह ऑनलाइन नहीं हो सके। डॉक्टर जिस सेंटर या लैब पर जांच की सलाह देते हैं, उसके अलावा दूसरी जगह की रिपोर्ट स्वीकार नहीं करते। वजह साफ है, डॉक्टर, लैब और जांच केंद्रों के बीच कमीशनबाजी। सूत्रों के अनुसार लैब और जांच केंद्र शहरभर के डॉक्टर्स को करोड़ों रुपए सालाना कमीशन पहुंचाते हैं।
इंडियन रेडियोलोजिकल एंड इमेजिंग एसोसिएशन ने रेडियोलॉजी और पैथोलॉजी जांचों के बदले डॉक्टर्स को दिए जाने वाले कमीशन या इंसेंटिव पर रोक लगा रखी है। इसके बावजूद कुछ जांच सेंटर कमीशन दे रहे हैं। यही नहीं दवाओं में भी कमीशन का खेल चल रहा है।
गौरतलब है कि शनिवार को बेंगलुरु में कुछ जांच सेंटर्स पर आयकर विभाग की कार्रवाई में 200 करोड़ के कमीशन का लेनदेन सामने आया है। इस प्रकार का खेल सभी जगह चल रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार भोपाल में हर साल एक लाख से अधिक बड़ी पैथोलॉजी और रेडियोलोजिकल जांचें होती हैं। मरीज जैसे ही डॉक्टर के पास जाता है, वह कई जांचें लिखता है। इसके साथ अधिकतर डॉक्टर लैब या डायग्नोस्टिक सेंटर भी बताते हैं। यदि दूसरी लैब से जांच कराई तो डॉक्टर उसे नहीं मानते। फिर मरीज कभी दूसरे डॉक्टर के पास जाता है तो नए सिरे से सभी जांचें कराई जाती हैं। इसके पीछे कमीशन का खेल ही रहता है।
20 से 40 प्रतिशत तक कमीशन
पैथोलॉजी और रेडियोलोजिकल जांचों जिनमें ब्लड टेस्ट से एक्स-रे, सोनोग्राफी, सीटी-स्कैन और एमआरआई शामिल हैं में 20 से लेकर 40 प्रतिशत तक इंसेंटिव डॉक्टर्स को दिया जाता है। जांच सेंटर पर सबसे पहले रेफर करने वाले डॉक्टर का नाम पूछा जाता है। यही नहीं जांच सेंटरों ने आसपास के जिलों में ग्रामीण क्षेत्र के डॉक्टर्स से भी सेटिंग कर रखी है।
ढाई हजार रुपए वाली अमान्य जांच भी कराई
राजधानी में हाल ही में डेंगू-चिकनगुनिया का जमकर प्रकोप रहा। एेसे में इनकी रेपिड किट से जांच के नाम पर हर बुखार के मरीज से दो से ढाई हजार रुपए लिए गए। जबकि, यह जांच मान्य ही नहीं है। डेंगू के केस में सिर्फ एलाइजा टेस्ट ही मान्य है।
230- सोनोग्राफी सेंटर
260 निजी नर्सिंग होम
150 एक्स-रे, सीटी, एमआरआई सेंटर
400 पैथोलॉजी लैब
किसमें कितना कमीशन
जांच — सामान्य दर – -कमीशन (30 प्रतिशत)
सोनोग्राफी -500 से 2000 – 150-600
सीटी स्कैन- 1600 से 3000 – 480-900
एमआरआई -3000 से 10,000 – 900-3000
पैथोलॉजी जांच 50 से 1000 तक -15-300
राजधानी में 80प्रतिशत तक जांच सेंटरों पर कमीशनखोरी चल रही है। ये अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए डॉक्टर्स को कमीशन देते हैं। इसे रोकने के लिए शासन स्तर से सख्त कार्रवाई होना चाहिए।
, अध्यक्ष, मप्र लैब टेक्नीशियन एसोसिएशन
इंडियन रेडियोलोजिकल एंड इमेजिंग एसोसिएशन ने डॉक्टरों का कमीशन बंद करने का फैसला पिछले साल लिया था। इसके बावजूद भोपाल के कुछ सेंटर कमीशन दे रहे हैं।
, आईआरआईए भोपाल
आईएमए ने अपनी आचार संहिता में हर प्रकार की कमीशनखोरी को प्रतिबंधित किया गया है। हमारे डॉक्टर न तो कमीशन देते हैं और न लेते हैं। जिनकी शिकायत आती है उनके खिलाफ कार्रवाई की जाती है।
 अध्यक्ष आईएमए मप्र चेप्टर
जांचों के साथ दवाओं में भी कमीशनखोरी होती है। प्रोपेगेंडा कंपनीज की मार्केटिंग बंद होना चाहिए। सरकार सख्ती से दवाओं के मूल्यों पर नियंत्रण करे। शासकीय अस्पतालों में एमआर का प्रवेश प्रतिबंधित होना चाहिए।
, संयोजक फार्मासिस्ट संयुक्त मोर्चा
……………………………………………………
 3 ,,,,,,     10 बाय 10 के कमरों में झोलाछाप के अस्पताल ?
इंजेक्शन से मरीज की मौत, तो कहीं भतीजा कर रहा इलाज; फिर भी विधायक मेहरबान
4 महीने पहले …

मध्यप्रदेश सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने 15 जुलाई को एक आदेश जारी कर झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। इसके बाद कई जिलों में कार्रवाई भी शुरू हुई, लेकिन बालाघाट जिले के लांजी विधानसभा क्षेत्र से विधायक राजकुमार कर्राहे ने इसका विरोध किया। उनका कहना है कि झोलाछाप डॉक्टर गांव-गांव में लाखों जिंदगियां बचा रहे हैं।

लांजी विधायक की खबर आपने नहीं पढ़ी तो इसकी लिंक इस खबर के आखिर में दी गई है।

विधायक के इस बयान के बाद ….. ने यूपी और छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे तीन जिले बालाघाट, डिंडौरी और सिंगरौली में झोलाछाप डॉक्टरों के असर और प्रभाव की पड़ताल की तो

छह तस्वीरें देखने को मिलीं

  • हर जिले में कम से कम 100 से ज्यादा डॉक्टर हैं, जिनके पास मेडिकल प्रैक्टिस के लिए किसी तरह की डिग्री और रजिस्ट्रेशन नहीं है।
  • इनमें से कई लोगों के पास बैचलर ऑफ फार्मेसी (बी फार्मा) की डिग्री है। इसके सहारे उन्होंने गांव-कस्बों के चौराहे पर मेडिकल स्टोर खोला है, पास ही खुद का क्लिनिक भी चलाते हैं।
  • कई के पास फार्मेसी तो छोड़िए किसी तरह की डिग्री नहीं है, इसके बाद भी उन्होंने खुद के क्लिनिक खोल रखे हैं।
  • ऐसे डॉक्टरों की भी अच्छी खासी संख्या हैं, जिनके पास आयुर्वेद, होम्योपैथी या यूनानी की डिग्री हैं। मगर वे एलोपैथी यानी एमबीबीएस डॉक्टर की तरह इलाज कर रहे हैं।
  • एक बड़ी संख्या इलेक्ट्रो होम्योपैथी में बैचलर डिग्री वाले डॉक्टरों की भी है। इलाज के इस तरीके को किसी सरकारी एजेंसी से मान्यता हासिल नहीं है।
  • लोग इन डॉक्टरों से इलाज करवाने को मजबूर हैं, क्योंकि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर ही नहीं हैं। यदि है भी तो वे समय पर उपलब्ध नहीं होते।

अब जानिए किस जिले में क्या है स्थिति

डिंडौरी: झोलाछाप डॉक्टर ने इंजेक्शन लगाया और किसान की मौत हो गई

पकरी रैयत गांव के रहने वाले 68 साल के गोविंद मार्को का 24 जुलाई को मामूली एक्सीडेंट हुआ था। एक ऑटो वाले ने उन्हें टक्कर मार दी थी। ऑटो चालक सूरज पेंड्रो ने कहा कि वो इलाज का खर्च उठाएगा, पुलिस को सूचना मत दो।

दोनों गांव के पास रूसा चौराहे पर स्थित अंशिका मेडिकल स्टोर पर बैठने वाले झोलाछाप डॉक्टर ओपी झरिया के पास पहुंचे। यहां से दवा लेकर मार्को घर आ गए। सुबह उन्हें डिंडौरी जिला अस्पताल ले जाना तय हुआ था। दूसरे दिन 25 जुलाई को सुबह ऑटो चालक झोलाछाप डॉक्टर झारिया को लेकर गोविंद मार्को के घर पहुंचा। डॉक्टर ने उन्हें एक इंजेक्शन लगाया, इसके बाद गोविंद की मौत हो गई।

डॉक्टर की पत्नी के पास बी फॉर्म की डिग्री

जिस डॉक्टर ओपी झारिया के इंजेक्शन की वजह से गोविंद मार्को की मौत हुई भास्कर की टीम उस डॉक्टर के क्लिनिक पर पहुंची। यहां पता चला कि डॉक्टर साहब के नाम से कोई क्लिनिक नहीं है, उनकी पत्नी रिंकी के नाम से अंशिका मेडिकल स्टोर चलता है, इसी में बैठकर वो इलाज भी करते हैं।

डॉ. झारिया तो नहीं मिले उनकी पत्नी रिंकी से गोविंद मार्को के इलाज के बारे में पूछा तो वो कैमरे पर कुछ नहीं बोलीं। ऑफ द कैमरा बातचीत में रिंकी ने बताया कि उसने ही गोविंद के लिए दर्द की दवा और तेल की शीशी दी थी। इंजेक्शन लगाने की बात से वह मुकर गई और बोलीं- विरोधी केवल बदनाम करने के लिए मार्को परिवार से यह आरोप लगवा रहे हैं।

68 साल के गोविंद मार्को को जब जिला अस्पताल ले जाया गया था। तब तक उनकी मौत हो चुकी थी।

उनसे पूछा कि आप मेडिकल प्रैक्टिस किस आधार पर करती हैं तो बोलीं- मेरे पास फार्मेसी की डिग्री है। हालांकि उन्होंने जो सर्टिफिकेट दिखाया वह खाद्य एवं औषधी प्रशासन विभाग का था। एफएएसएस एक्ट 2006 के तहत उन्हें खाद्य पदार्थ बेचने का लाइसेंस दिया गया।

मेडिकल स्टोर संचालित करने के लिए ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1940 के तहत लाइसेंस दिया जाता है, जिसमें मेडिकल स्टोर संचालक एलोपैथी, यूनानी, होम्योपैथी या आयुर्वेदिक दवाएं बेच सकता है। इलाज तो बिल्कुल नहीं कर सकता।

अंशिका मेडिकल स्टोर को दिया खाद्य एवं औषधी प्रशासन विभाग का सर्टिफिकेट।
अंशिका मेडिकल स्टोर को दिया खाद्य एवं औषधी प्रशासन विभाग का सर्टिफिकेट।

प्राथमिक उपचार का सर्टिफिकेट लिया और इलाज करने लगे

अमरकंटक जाने के रास्ते में एक बड़ा गांव है करंजिया। ये ब्लॉक मुख्यालय है, यहां पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भी है, लेकिन ज्यादा भीड़ परेश सिकदार के क्लिनिक पर होती है। जब भास्कर की टीम यहां पहुंची तो परेश सिकदार के पास पांच-छह मरीज बैठे थे। जब उनसे बात हुई तो पता चला कि वह पिछले 26 साल से प्रैक्टिस कर रहे हैं।

उन्होंने स्वास्थ्य विभाग के किसी कार्यक्रम से प्राथमिक उपचार का सर्टिफिकेट कोर्स किया है। उसके बाद करंजिया में क्लिनिक खोल लिया। कुछ साल पहले बिना डिग्री वाले डॉक्टरों पर कार्रवाई हुई तो परेश सिकदार ने फार्मेसी की डिग्री हासिल की और मेडिकल स्टोर का लाइसेंस ले लिया।

प्राथमिक चिकित्सा केंद्र के नाम पर मेडिकल प्रैक्टिस

डिंडौरी के ही बजाग ब्लॉक मुख्यालय पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के ठीक सामने डीके भाषन्त एक प्राथमिक चिकित्सा केंद्र संचालित करते हैं। डीके भाषन्त ने अपने बोर्ड में लिखा है कि वे राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं सामाजिक न्याय आयोग नाम के एनजीओ में स्वास्थ्य प्रकोष्ठ के प्रदेश महासचिव हैं।

जब भास्कर की टीम डीके भाषन्त से मिलने पहुंची तो वो मौजूद नहीं थे। आसपास के लोगों से पूछा तो पता चला कि कुछ दिन पहले डिंडौरी प्रशासन ने झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की तब से डीके भाषन्त ने क्लिनिक पर बैठना कम कर दिया है। मरीजों का घर-घर जाकर ही इलाज कर रहे हैं। उन्होंने क्लिनिक पर एक नोटिस भी लगाया है कि यहां चिकित्सा कार्य नहीं किया जाता (क्लिनिक बंद है)। कृपया शासकीय अस्पताल जाकर अपना इलाज कराएं।

आखिर लोग झोलाछाप डॉक्टरों के पास इलाज के लिए क्यों जाते हैं

…. ने पड़ताल की तो इसके तीन कारण सामने आए

  • सरकारी अस्पताल में डॉक्टर ही नहीं
  • जहां डॉक्टर वो समय पर नहीं आते
  • सरकार अभी तक भरोसा पैदा नहीं कर सकी

भास्कर की टीम जब करंजिया के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंची तो पता चला कि 30 बिस्तर के इस केंद्र में केवल दो डॉक्टर तैनात है। डॉ. एसएस उददे यहां के प्रभारी हैं। वहीं डॉ. आस्था द्विवेदी अधिकतर महिलाओं से जुड़े मामले देखती हैं। दोनों एमबीबीएस हैं। उस दिन दोनों डॉक्टर एक गांव में गए थे जहां से डायरिया फैलने की सूचना मिली थी। ऐसे में रूसा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के एक डॉक्टर को बुलाकर ओपीडी में बिठाया गया था।

डिंडौरी के सीएमएचओ डॉ. रमेश मरावी कहते हैं कि उनके यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों के 62 पद हैं, लेकिन 48 पद सालों से खाली पड़े हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में ऑपरेशन थिएटर बने हैं, लेकिन सर्जरी करने के लिए डॉक्टर ही नहीं हैं। ऐसे में वे मरीजों को केवल रेफर करते हैं।

करंजिया जनपद पंचायत के अध्यक्ष चरन सिंह धुर्वे कहते हैं कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर ही नहीं है। जो हैं वो भी तीन चार घंटे बैठते हैं। अकेला डॉक्टर कभी सरकारी बैठक में जाता है तो कभी कोर्ट में। हफ्ते में एक या दो दिन मिल गया तो बड़ी बात होती है।

अब जानिए सिंगरौली जिले के हाल

मेडिकल स्टोर के बगल में स्टोर रूम, यहां 5 बेड का अस्पताल

भास्कर की टीम सबसे पहले सिंगरौली जिला मुख्यालय से 12 किमी दूर नौगाई गांव पहुंची। यहां तीन मेडिकल स्टोर संचालक डॉक्टर बनकर लोगों का इलाज कर रहे हैं। इन्हीं में से एक है बहादुर मेडिकल स्टोर संचालक शेष बहादुर वैश्य।

जब भास्कर की टीम यहां पहुंची तो मेडिकल स्टोर में मरीजों की भीड़ थी। मेडिकल स्टोर संचालक से पूछा कि उसके पास कौन सी डिग्री है तो बोला- बी फार्मा की डिग्री है। फिर पूछा कि इस डिग्री से इलाज नहीं किया जा सकता तो बोला- इलाज नहीं करता हूं, छोटी-मोटी बीमारियों के लिए दवाएं देता हूं।

यहां मौजूद मरीजों से बात की तो उन्होंने कहा कि सर्दी जुकाम के लिए गोली लेने आते हैं। जब मरीज की हालत ज्यादा खराब होती है तो बगल की दुकान में एडमिट हो जाते हैं। दरअसल, मेडिकल स्टोर संचालक ने बगल में ही एक दुकान में पांच बिस्तर लगा रखे हैं। ये स्टोर रूम के साथ क्लिनिक भी है।

जब …की टीम यहां पहुंची तो बबीता शर्मा नाम की महिला यहां एडमिट थी। उससे एडमिट होने की वजह पूछी तो बोलीं- सर्दी जुकाम, बुखार और कमर दर्द की समस्या थी तो इलाज करवाने आई। बबीता के पलंग के पास ही मरीजों को चढ़ाई जाने वाली बॉटल भी लगी दिखाई दी।

मेडिकल स्टोर के बगल में स्टोर रूम है जहां दवाइयां रखी हुई और पांच बिस्तर हैं, जहां मरीजों को भर्ती किया जाता है।

आयुर्वेदाचार्य कर रहे एलोपैथी दवाइयों से इलाज

रास्ते में ही जिला मुख्यालय से करीब 5 किमी दूर कछनी मोड में हमें एक बड़ा सा क्लिनिक दिखाई दिया। क्लिनिक के ऊपर नाम लिखा हुआ था. डॉ एस एन सिंह- आयुर्वेदाचार्य। उसी घर में क्लिनिक के बगल वाले पोर्शन में एलोपैथी दवाइयों का मेडिकल स्टोर भी खुला है। क्लिनिक के अंदर जाने पर पता चलता है कि डॉक्टर साहब अधिकतर मरीजों का एलोपैथी दवाइयों से इलाज कर रहे हैं।

एस एन सिंह ने हमसे बात की तो वे बोले सभी लोग पूरी तरह से सरकारी अस्पतालों पर निर्भर नहीं रह पाते। जिन्हें जहां सुविधाएं मिलती हैं लोग वहां इलाज कराते हैं। उन्होंने कहा कि मेरे पास बीएएमएस की डिग्री है, लेकिन एलोपैथी दवाइयां देने की जरूरत पड़ती है तो मैं उनसे भी मरीजों का इलाज करता हूं। लेकिन ये कहूंगा कि लोगों को बिना डिग्री वाले डॉक्टरों से इलाज नहीं कराना चाहिए।

डॉ. एसएन सिंह के पास बीएएमस की डिग्री है, लेकिन वे मरीजों को एलोपैथी की दवाएं भी देते हैं।

बंगाली डॉक्टर के ना रहने पर उनका भतीजा कर देता है इलाज

जिला मुख्यालय से 7 किमी दूर शासन गांव में एक बंगाली डॉक्टर का क्लिनिक है। भास्कर की टीम यहां पहुंची तो एम मंडल नाम के व्यक्ति से मुलाकात हुई। मंडल ने कहा कि डॉक्टर साहब नहीं हैं। लंच पर घर गए हैं। उसने बताया कि मैं डॉक्टर का भतीजा हूं। पिछले दो महीने से साथ रह रहा हूं।

उससे पूछा कि यदि कोई मरीज आ जाए तो क्या आप इलाज कर देंगे तो बोला- हां कर दूंगा। सर्दी-जुकाम, बुखार जैसी मामूली बीमारियों का इलाज मैं ही करता हूं। मंडल ने ये भी कहा कि कई बार भोपाल से जांच करने टीम आती है। हमारा ट्रैक रिकॉर्ड देखकर चली जाती है।

बालाघाट: प्राथमिक चिकित्सा सर्टिफिकेट के आधार पर कर रहे इलाज

बालाघाट से 6 किमी दूर भरवेली गांव में डॉ. शिव सारंगपुरे ने घर में क्लिनिक खोल रहा है। सारंगपुरे मरीजों को बाकायदा दवाएं देते हैं। सारंगपुरे के पास प्राथमिक चिकित्सा का सीएसएमईडी, सीसीएस और बीईएमएस का डिप्लोमा है। उनका कहीं रजिस्ट्रेशन भी नहीं है।

इसी तरह सीसीएस का डिप्लोमा कर डॉ. राजेंद्र मिसारे भी इलाज करते हैं। उनकी पत्नी आरएमपी( रेगुलर मेडिकल प्रैक्टिशनर) है। दोनों मिलकर मेन रोड पर क्लिनिक चलाते हैं। डॉ. जितेंद्र सोनी एक बड़े चिकित्सक के यहां कंपाउंडर का काम करते थे। उन्होंने बीईएमएस की पढ़ाई की और अब एक क्लिनिक खोल लिया है।

डॉ. सोनी कहते हैं कि सरकार को बजाय इन डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई करने उन्हें ट्रेनिंग देकर सक्षम बनाना चाहिए। वे कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में कई डॉक्टर हैं जिन्हें प्रैक्टिस करते हुए 25 साल से ज्यादा हो चुके हैं। कई लोगों के पास प्राथमिक उपचार की डिग्री है ऐसे में उनका फायदा सरकार को लेना चाहिए न कि प्रतिबंधात्मक कार्रवाई करना चाहिए।

हाईकोर्ट में भी याचिका दायर, सरकार केवल तारीख मांग रही

एमपी में झोलाछाप डॉक्टरों को लेकर हाईकोर्ट में डेढ़ साल पहले एक जनहित याचिका भी दायर हुई है, जिस पर लगातार सुनवाई हो रही है और इसी महीने में एक बार फिर सुनवाई है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन(IMA) जबलपुर के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अमरेंद्र पांडे की तरफ से दायर इस याचिका में मांग की गई है कि ऐसे कथित डॉक्टरों के खिलाफ वैधानिक कार्रवाई की जाना चाहिए।

याचिका में मांग की गई है हर जिले में ऐसे डॉक्टरों को चिह्नित करने के लिए अधिकारियों के साथ रजिस्टर्ड डॉक्टरों की कमेटी होना चाहिए। पांडे के मुताबिक सरकार की तरफ से पिछली तीन सुनवाई में कार्रवाई के लिए केवल तारीख मांगी गई है।

  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *