महिलाओं का पढ़ा लिखा होना बच्चों के पोषण स्तर को सीधे प्रभावित करता है !
5 साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का एक बड़ा कारण: घर में साफ-सफाई की कमी
आमतौर पर यह माना जाता है कि बच्चों में कुपोषण का कारण पर्याप्त पोषण की कमी या गरीबी है. लेकिन खुले में शौच जाना या अच्छी सफाई व्यवस्था की कमी भी बच्चों के कुपोषण का एक कारण हो सकती है.
दुनिया में अभी भी 1.5 अरब से ज्यादा लोग अपने घरों में शौचालय का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं. इनमें से 41.9 करोड़ लोग खुले में शौच जाते हैं, जैसे नालियों के पास या झाड़ियों के पीछे. नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट में बताया है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर घर में शौचालय की सुविधा की कमी, सफाई व्यवस्था और सीवेज सिस्टम से जुड़ी हुई है.
साफ-सफाई और बाल मृत्यु दर के बीच गहरा संबंध है. Gunther और Fink (2011) ने 30 देशों के 38 सर्वेक्षणों के डेटा का इस्तेमाल करके पाया कि घर में फ्लश टॉयलेट और पाइप्ड पानी की सुविधा होने से बच्चों की मृत्यु दर काफी कम हो जाती है. इससे बच्चों की शुरुआती मौत का खतरा लगभग 8% कम हो सकता है. अच्छी सफाई व्यवस्था वाले घरों में रहने वाले बच्चों की मृत्यु का खतरा उन बच्चों की तुलना में 20% कम होता है जो खराब सफाई व्यवस्था वाले घरों में रहते हैं.
अध्ययनों से पता चला है कि निजी शौचालय और पाइप्ड पानी जैसी बेहतर स्वच्छता सुविधाओं से बच्चों की मृत्यु दर में 8% तक की कमी आ सकती है. स्वच्छता और सीवेज सिस्टम में सुधार से बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार होता है. यह कुपोषण को कम करता है और बच्चों की मृत्यु दर को कम करने में मदद करता है. कुपोषण का मतलब है शरीर को सही खाना न मिलना. इससे बच्चे कमजोर, बीमार और छोटे रह जाते हैं.
गंदगी का बच्चों की सेहत पर कैसा असर
बच्चों के कुपोषण के पीछे कई कारण होते हैं. पैसों की कमी और खाने की कमी तो अहम हैं ही, लेकिन अगर आस-पास गंदगी हो तो उसका भी बहुत बुरा असर होता है. अगर बच्चों के आस-पास गंदगी है तो बच्चों को पोषण की कमी (कुपोषण) हो सकती है. गंदगी की वजह से बीमारियां फैलती हैं, जिससे बच्चे कमजोर हो जाते हैं और खाना ठीक से नहीं पचा पाते. इससे उनका विकास रुक सकता है और कई बार मौत भी हो सकती है.
पीने के पानी में गंदगी होने से दस्त जैसी बीमारियां हो सकती हैं. लेकिन, पानी में गंदगी और कुपोषण का सीधा संबंध अभी तक साफ नहीं है. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि पानी में गंदगी अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग होती है. दस्त से बच्चे कमजोर हो सकते हैं, लेकिन यह कुपोषण और मौत का सीधा कारण नहीं है. दस्त से पेट का सिस्टम पूरी तरह से नहीं बदलता है.
शिक्षा और बच्चों के पोषण का अनोखा संबंध
महिलाओं का पढ़ा लिखा होना बच्चों के पोषण स्तर को सीधे प्रभावित करता है. यह एक ऐसा अहम तथ्य है जिस पर शोधकर्ताओं ने गहराई से काम किया है. जब माताएं पढ़ी लिखी होती हैं, तो उनके बच्चों के पोषण स्तर में काफी सुधार होता है. खास तौर से जिन माताओं की शिक्षा 10 या उससे ज्यादा साल की होती है, उनके बच्चों में कुपोषण का खतरा 45% तक कम हो जाता है.
शिक्षित महिलाएं अच्छे प्राइवेट टॉयलेट का इस्तेमाल ज्यादा करती हैं. क्योंकि शिक्षित महिलाएं बच्चों की देखभाल और साफ-सफाई का ज्यादा ध्यान रखती हैं. वे बच्चों के मल का सही तरीके से निपटारा करती हैं जिससे बच्चों का स्वास्थ्य बेहतर रहता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य के बारे में लोगों को जानकारी देना बहुत जरूरी है. टीवी, कैंप, स्कूल और कॉलेज के जरिए लोगों को स्वच्छता के बारे में बताया जा सकता है. अगर महिलाएं पढ़ी-लिखी होंगी, तो वे स्वास्थ्य कार्यक्रमों को ज्यादा ध्यान से सुनेंगी और समझेंगी. शिक्षित महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी आसानी से समझ आती हैं और अपने बच्चों की सेहत का ज्यादा ध्यान रखती हैं.
पब्लिक टॉयलेट खुले में शौच को कम नहीं करते!
अगर 1% ज्यादा लोग निजी शौचालयों का इस्तेमाल करने लगें, तो खुले में शौच 0.84% कम हो जाता है. पब्लिक टॉयलेट का खुले में शौच पर कोई खास असर नहीं होता. अगर ज्यादा लोग पब्लिक टॉयलेट्स का इस्तेमाल करें, तो बच्चों में स्टंटिंग और अंडरवेट दोनों कम होते हैं. इसका असर दोनों ही मामलों में लगभग एक जैसा है.
पब्लिक टॉयलेट का खुले में शौच पर कोई खास असर नहीं होता, लेकिन फिर भी ये बच्चों में स्टंटिंग और अंडरवेट कम करने में मदद करते हैं. इसका मतलब है कि पब्लिक टॉयलेट सीधे तौर पर बच्चों के स्वास्थ्य पर असर डालते हैं, न कि खुले में शौच को कम करके.
खुले में शौच कितना खतरनाक
नीति आयोग की रिपोर्ट में बताया गया है कि खुले में शौच करने से बच्चों में कुपोषण होता है. जिन राज्यों में ज्यादा लोग खुले में शौच करते हैं, वहां 5 साल से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग (कद छोटा होना) और अंडरवेट (कम वजन) की समस्या ज्यादा है.
जब 5-10% से कम लोग खुले में शौच करते हैं, तो स्टंटिंग और अंडरवेट पर इसका असर ज्यादा दिखता है. जब 10% से ज्यादा लोग खुले में शौच करते हैं, तो इसका असर थोड़ा कम हो जाता है. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि जहां ज्यादा लोग खुले में शौच करते हैं, वहां लोगों को अच्छे शौचालय और सीवर सिस्टम की सुविधा नहीं होती. इससे गंदगी फैलती है और बच्चे बीमार पड़ते हैं. अच्छे शौचालयों का इस्तेमाल करने से बच्चों का स्वास्थ्य बेहतर होता है. जितने ज्यादा लोग निजी शौचालयों का इस्तेमाल करते हैं, उतना ही बच्चों में स्टंटिंग और अंडरवेट की समस्या कम होती है. निजी शौचालयों का असर अंडरवेट कम करने में ज्यादा होता है.
ज्यादातर राज्य ऐसे हैं जहां कम लोग पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल करते हैं और बच्चों में स्टंटिंग (कद छोटा होना) और अंडरवेट (कम वजन) की समस्या ज्यादा है. झुग्गी-झोपड़ियों में जहां कई परिवार एक ही शौचालय इस्तेमाल करते हैं, वहां अक्सर सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता. जहां कम लोग पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल करते हैं, वहां ज्यादा लोग खुले में शौच करते होंगे.
गंदगी से बढ़ जाता है बच्चों के मौत का खतरा
गंदगी की वजह से बच्चों की आंतों में एक बीमारी हो जाती है जिसे EED कहते हैं. इससे बच्चे खाने से पोषण नहीं ले पाते और कुपोषित हो जाते हैं. कुपोषण के कारण बच्चों की मृत्यु दर बढ़ जाती है. कुपोषित बच्चे कमजोर होते हैं और उनमें बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम होती है. इसलिए, ऐसी बीमारियां जो आम बच्चों के लिए जानलेवा नहीं होतीं, वे कुपोषित बच्चों के लिए खतरनाक हो सकती हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, बच्चों को कई जरूरी चीजें मिलनी चाहिए ताकि वे स्वस्थ रहें और उनकी जान बच सके. बच्चे के जन्म के समय एक प्रशिक्षित व्यक्ति मौजूद होना चाहिए. बच्चे के जन्म के बाद मां और बच्चे दोनों की अच्छी देखभाल होनी चाहिए. बच्चों को मां का दूध और पौष्टिक आहार मिलना चाहिए. बच्चों को समय पर सभी जरूरी टीके लगवाने चाहिए. साथ ही बच्चों को होने वाली आम बीमारियों का सही इलाज मिलना चाहिए.
अध्ययन में यह पाया गया है कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय बनने से बच्चों की मृत्यु दर में कमी आई है. लेकिन, यह कमी सिर्फ शौचालयों की वजह से नहीं है. इसके पीछे कई और कारण भी हैं, जैसे कि ज्यादा मांएं शिक्षित हो रही हैं, गर्भवती महिलाओं को बेहतर देखभाल मिल रही है, ज्यादा बच्चे अस्पताल में पैदा हो रहे हैं, ज्यादा लोगों के पास स्वास्थ्य बीमा है.
साफ-सफाई और शिक्षा से कितने बच्चों की बच सकती है जान?
अगर भारत में अच्छे शौचालयों का इस्तेमाल बढ़ाया जाए, तो बच्चों की मृत्यु दर में काफी कमी आ सकती है. अध्ययन के अनुसार, अगर सभी राज्यों में अच्छे प्राइवेट और पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल 7.2% बढ़ जाए, तो बच्चों में स्टंटिंग (कद छोटा होना) 7.4% कम हो जाएगा. स्टंटिंग कुपोषण का एक प्रकार है जो बच्चों के विकास को रोकता है और उन्हें कई बीमारियों का शिकार बनाता है.
अध्ययन के अनुसार, इससे बच्चों की मृत्यु दर में 4.8% की कमी आ सकती है, जिससे 6.5 लाख बच्चों की जान बच सकती है. उत्तर प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड में बच्चों की मृत्यु दर सबसे ज्यादा है. इन राज्यों में अच्छे शौचालयों के इस्तेमाल से बच्चों की मृत्यु दर में सबसे ज्यादा कमी आ सकती है.
महिलाओं की शिक्षा का बच्चों की सेहत पर गहरा असर होता है. अगर हर राज्य में 10वीं पास महिलाओं की संख्या में 5.9% की वृद्धि हो, तो बच्चों की मृत्यु दर में 6.3% की कमी आ सकती है. इससे 8.5 लाख बच्चों की जान बच सकती है. उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में महिलाओं की शिक्षा का स्तर बढ़ाने से बच्चों की मृत्यु दर में सबसे ज्यादा कमी आ सकती है. अगर हर राज्य में 10वीं पास महिलाओं की संख्या को 100% तक पहुंचाने के लिए 10% का सुधार किया जाए, तो 8.8 लाख बच्चों की जान बच सकती है.