एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस: अप्रभावी  होता जीवाणु संक्रमण का इलाज ?

एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस: अप्रभावी  होता जीवाणु संक्रमण का इलाज

समझिए एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस को

एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस उस स्थिति को कहते है जब बैक्टीरिया उन एंटीबायोटिक दवाओं का प्रतिरोध करने लगते हैं, जिसके कारण ये दवाएं उन्हें मार नहीं पातीं या उनकी वृद्धि को रोक नहीं पातीं, जो परंपरागत रूप से उनके प्रभावी ढंग से इलाज करने के लिए इस्तेमाल की जाती रही हैं. नतीजतन, जीवाणु संक्रमण का इलाज करना बेहद मुश्किल हो जाता है. यह बेहद खतरनाक चिकित्सीय स्थिति हो सकती है क्योंकि इससे बीमार लोगों के लिए उपचार के विकल्प घट जाते हैं, जिससे प्रभावी उपचार में भी देरी हो सकती है. परिणामस्वरूप, गंभीर, लम्बी बीमारी और मृत्यु का जोखिम, और इलाज में देरी जैसी स्थितिया आम होती जाएगी. 

प्रकृति का नियम है कि वही जीव जीवित रहता है, जो खुद को नए परिवेश के हिसाब से ढालकर और मजबूत बनाता चलता है. ऐसा ही मच्छरों ने किया. पहले मच्छरमार अगरबत्ती के धुएं से लड़ना सीखा. फिर जहरीली अगरबत्ती और फिर फास्ट कार्ड से. वे अपनी प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाते चले गए और अब उन पर मच्छर मारने के सभी रसायन प्रभावहीन प्रतीत होते हैं. इसी तरह कई बैक्टीरिया ने एंटीबायोटिक्स दवाओं का सामना करना सीख लिया है. अब इन पर दवाओं का कोई असर नहीं पड़ता. इसलिए पहले जिन बीमारियों में ये दवाएं तुरंत असर दिखाती थीं, अब पैथोजेन्स के एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंट हो जाने से बेअसर साबित हो रही हैं.

रोगाणुरोधी प्रतिरोध ही कर रहा है खेल

एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस एक प्रकार का रोगाणुरोधी प्रतिरोध है, जो सूक्ष्मजीवी द्वारा किसी भी दवा के लगातार उस पर नियंत्रण के लिए उपयोग के कारण उसके बचाव में विकसित कर लेती है. बैक्टीरिया के साथ साथ, फंजाई, यहां तक वायरस और अन्य कई परजीवी भी किसी भी दवा के प्रति प्रतिरोध विकसित कर सकते हैं. इसमें गूढ़ बात है कि हमारा शरीर एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस विकसित नहीं करता बल्कि शरीर को बीमार करने वाला सूक्षमजीवी ही दवा को अप्रभावी बना देता है. नतीजतन किसी खास रोगकारक जीवाणु के खिलाफ एंटीबायोटिक्स कम प्रभावी हो जाता हैं.  जीवाणु या बैक्टीरिया पृथ्वी पर विकसित हुए सबसे पहले जीवन के प्रतिनिधि जीव हैं, जिसे प्रोकैरियोट समूह में रखा जता है, जिसकी जैव संरचना बहुत सरल और बाद के विकसित हुए जीवो, (युकैरियोट) से काफी अलग होती है. इसकी अनुवांशिक व्यवस्था कुछ इस तरह होती है जहां बैक्टीरिया अपने आसपास के वातावरण के अनुरूप खुद को जल्दी ही ढाल लेता है.

इसमें बैक्टीरिया अपने गुणसूत्र में आसानी से बदलाव कर खुद को प्रभावी बना लेता है. इस प्रक्रिया में बैक्टीरिया आपस में जरुरी जीन या गुणसूत्र के खास हिस्से का आपस में अदल बदल आसानी से कर लेते है. बैक्टीरिया अपने इसी प्रवृति की मदद से एंटीबायोटिक के लगातार समपर्क में रह कर धीरे धीरे उस एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोध विकसित करने लगता है, जो अंततः एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस जीन के रूप में उस बैक्टीरिया के गुण सूत्र का हिस्सा बन जाते है. एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस जीन बड़ी तेजी से जीवाणु के समूह के बीच फैलता है जिसके नतीजे में बैक्टीरिया समूह पर एंटीबायोटिक अप्रभावी हो जाता है.  

एंटीबायोटिक्स का हो सही इस्तेमाल

एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस की सबसे बड़ी वजह एंटीबायोटिक्स का अत्यधिक, आधा अधुरा और बेजा इस्तेमाल है. एंटीबायोटिक्स के ज्यादा इस्तेमाल से बैक्टीरिया उस दवा के ज्यादा संपर्क में रहता है, जो अंततः उसके प्रभाव से खुद को बचाने के लिए एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस जीन का विकास करने में सफल हो पता है. जो बैक्टीरिया जितना ज्यादा एंटीबायोटिक्स के संपर्क में रहेगा उसमे एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस जीन के विकास की प्रायिकता उतनी ही ज्यादा होगी. एंटीबायोटिक्स की खोज के बाद से इसे चमत्कार के रूप में देखा गया और संक्रमण की बीमारी में इसका उपयोग धड़ल्ले से होने लगा, यहां तक इसका इस्तेमाल उस बीमारी के लिए भी होने लगा जहां इसकी जरुरत भी नहीं होती. इसका जीता जागता उदहारण है वायरस के कारण गले में खराश में भी एंटीबायोटिक्स का उपयोग जबकी वायरस का इलाज एंटीबायोटिक्स के पहुच से बाहर है. इन सारी परिस्थितियों में बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक्स के संपर्क में लम्बे समय तक रहने का मौका मिलता है, जिसकी परिणति एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस के रूप में ही होती है.  

एंटीबायोटिक्स का अत्यधिक, आधा अधुरा और बेजा इस्तेमाल एक अलग तरीके से भी एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस की समस्या को विकराल बना रही है. एंटीबायोटिक का कुछ अंश इस्तेमाल के बाद पेशाब के रास्ते जल स्रोतों में जमा होता रहता है. इस कारण पानी में अनेको प्रकार के एंटीबायोटिक्स की एक प्रभावी मात्रा जमा हो जाती है, जो पानी में मौजूद सभी बैक्टीरिया के लिए अनेको एंटीबायोटिक्स के लिए प्रतिरोध विकसित करने के लिए उत्प्रेरक का काम करती है. इस प्रकार परोक्ष रूप में बैक्टीरिया सतत रूप से एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस की प्रक्रिया चालू रहती है, साथ ही साथ इसका प्रसार भी बड़े बैक्टीरिया के समूह में होता रहता है. वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट की लचर व्यव्स्था और मिटटी में फार्मास्यूटिकल और व्यक्तिगत देखभाल के रसायनों का संक्रमण इस समस्या को और गति देती है. एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी संक्रमण किसी को भी प्रभावित कर सकता है. लेकिन कुछ समूह अपनी स्वास्थ्य स्थिति या आस पास के माहौल के कारण ज़्यादा जोखिम में होते हैं. उम्रदराज और कम प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग, शिशु खास कर समय से पहले पैदा हुए बच्चे, भीड़ भाड़ में रहने वाले लोग और जो बीमारी या अन्य बचाव के लिए लंबे समय से एंटीबायोटिक का सेवन करने वाले लोग एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस के निशाने पर होते है!

बन गयी है वैश्विक समस्या

एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस धीरे धीरे एक वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या का रूप ले रही है. इसका मतलब है कि इसके प्रभाव में ना सिर्फ कोई एक मरीज होता है बल्कि यह सामूहिक रूप से जीवाणु संक्रमण के प्रभावी ढंग से इलाज को कमजोर कर सभी को प्रभावित कर रह है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि जब जीवाणु संक्रमण के इलाज के लिए बार बार एंटीबायोटिक्स का उपयोग करते हैं, तो वे जीवाणु धीरे धीरे अपने आप को एंटीबायोटिक्स के जीवाणु पर होने वाले प्रतिकूल प्रभाव से बचाव के तरीके विकसित करने लगते है यानी चमका देने लगते है. इसका मतलब यह नहीं है कि आपका शरीर एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो रहा है. इसका मतलब है कि बैक्टीरिया (जो किसी समय आपके शरीर को प्रभावित कर सकते हैं) पर अब एंटीबायोटिक दवाओं से उतना आसानी से प्रभाव नहीं पड़ता, जितना पहले होता था.

एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस सब बक्टेरिया में सामान रूप से विकसित नहीं होता पर कुछ खास बैक्टीरिया समूह विश्व स्तर पर एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी संक्रमणों से होने वाली सबसे अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार हैं. इस सूची में ईकोलाई  के अलावा स्टैफिलोकोकस ऑरियस, स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया, क्लेबसिएला न्यूमोनिया, एसिनेटोबैक्टर बाउमानी और स्यूडोमोनस एरुगिनोसा  प्रमुख जो अब सुपरवग बन चुके है! ये मुख्य रूप से सांस, त्वचा और खान पान के संक्रमण के साथ साथ न्यूमोनिया, पेशाब के रास्ते का संक्रमण हॉस्पिटल से होने वाले संक्रमण के लिए जिम्मेदार है! 

एक शोध के अनुसार 1990 से 2023 के दरम्यान एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस से सालाना एक मिलियन से अधिक लोगो की मौत हो रही है और अगर एंटीबायोटिक का इसी तरह बेरोकटोक इस्तेमाल जारी रहा तो दवाएं बेअसर होती जाएंगी और साल 2050 तक इससे होने वाली मौत का दायरा बढ़ कर कैंसर के कारण होने वाली मौत से भी ज्यादा हो जायेगी. मेडिकल जर्नल द लेंसेट’ में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक, एंटीबायोटिक और एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के कारण अगले 25 सालों में 3 करोड़ 90 लाख लोगों की मौत हो सकती है. सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस चीन में सबसे अधिक प्रभावी है, उसके बाद कुवैत व अमेरिका का स्थान है. भारत में बहुत तेजी से पैर पसार रहा है.

भारत को उठाने होंगे जरूरी और गंभीर कदम

डब्ल्यूएचओ के अनुसार भारत में अकेले एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस से होने वाली मौतों की संख्या श्वसन संबंधी संक्रमण, टीबी, आंत संबंधी संक्रमण, मधुमेह और किडनी रोग, मैटरनल एवं नीओनेटल डिसऑर्डर से होने वाली कुल मौतों से अधिक हैं. सालाना 60000 शिशु एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी संक्रमणों से मर रहे है. ‘ग्लोबल रिसर्च ऑन एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (जीआरएएम) परियोजना’ के मुताबिक एंटीबायोटिक प्रतिरोध से भविष्य में होने वाली मौतों की संख्या भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित दक्षिण एशिया में सर्वाधिक रहने का अनुमान है.

अक्सर डॉक्टर इलाज को प्रभावी बनाने के लिए मल्टी स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स का सहारा लेते है जो कुछ बैक्टीरिया पर तो कारगर साबित होता है पर बाकियों को एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस के लिए उत्प्रेरित करती है. जरुरी है कि एंटीबायोटिक्स प्रिस्क्रिपसन की तरीको में बदलाव हो, ताकि जीवाणु संक्रमण का कारगर इलाज के साथ साथ उपयोग में आ रहे एंटीबायोटिक्स के मारक क्षमता भी बनी रहे. इस दिशा में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय भी सक्रीय दिख रहा है और सभी चिकित्सको से आग्रह किया है कि एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल अनिवार्य रूप से लक्षण और कारण के आधार पर हो साथ ही साथ बिना डॉक्टर के पर्ची के एंटीबायोटिक्स के बिक्री पर रोक के संकेत दिए है. ऐसे में जरुरत है कि एंटीबायोटिक्स के सम्यक उपयोग की कार्य प्रणाली बने ताकि एंटीबायोटिक्स का अत्यधिक, आधा अधुरा और बेजा इस्तेमाल पर लगाम लगे.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि …..न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.

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