भगत सिंह का अपमान करता पाकिस्तान ?
संसद में यह मांग कड़ाई से रखी जाए कि पाकिस्तान सरकार लाहौर हाई कोर्ट में तारिक मजीद के नजरिये को खारिज करे। कोई पाकिस्तानी संस्था भगत सिंह के बारे में कुछ भी अनाप-शनाप कहे उससे एक महान बलिदानी के प्रति स्नेह और सम्मान की भावना बदल नहीं जाएगी लेकिन क्या नया भारत अपने नायकों का ऐसा निरादर होने देगा ?
लोकसभा सदस्य मनीष तिवारी ने बीते दिनों विदेश मंत्री से एक महत्वपूर्ण सवाल किया। उन्होंने पूछा कि क्या सरकार लाहौर हाई कोर्ट में बलिदानी भगत सिंह के प्रति हुई अपमानजक टिप्पणियों से अवगत है या नहीं और यदि है तो उसने क्या कूटनीतिक कदम उठाए हैं। उनके इस प्रश्न को अतारांकित प्रश्न के रूप में स्वीकृति मिली और विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने 6 दिसंबर को लिखित जवाब दिया।
यह अच्छी बात है कि लाहौर हाई कोर्ट में भगत सिंह के अपमान का संसद ने संज्ञान लिया, लेकिन और भी अच्छा होता यदि इस मुद्दे को कहीं अधिक तवज्जो दी जाती। ऐसा इसलिए, क्योंकि भगत सिंह भारत के महानतम नायकों में से एक हैं और उनका अपमान तो छोड़िए, उनके विषय में कटु शब्द तक किसी को स्वीकार्य नहीं होंगे। इस मामले की जड़ें पाकिस्तान में सक्रिय भगत सिंह फाउंडेशन से जुड़ी हैं।
फाउंडेशन करीब 20 वर्षों से इस प्रयास में लगा है कि लाहौर के एक प्रमुख चौराहे-शादमान चौक को भगत सिंह का नाम दिया जाए। फाउंडेशन के अनुसार भगत सिंह समूचे उपमहाद्वीप के नायक हैं और उनकी स्मृतियों के प्रति पाकिस्तान में भी सम्मान प्रदर्शित किया जाना चाहिए। भगत सिंह को सुखदेव और राजगुरु के साथ लाहौर केंद्रीय कारागार में मार्च 1931 में फांसी दी गई थी। 1961 में उस जेल को ढहाकर वहां आवासीय कालोनी बना दी गई।
शादमान गोल चक्कर जेल परिसर वाले ‘फांसीघाट’ इलाके में ही आता है। बलिदानियों के इस स्थान से जुड़ाव को देखते हुए ही फाउंडेशन चौराहे का नाम बदलने का आग्रह करता आ रहा है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने 2012 में लाहौर हाई कोर्ट का रुख किया। अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि वह नियमों के अंतर्गत कदम उठाए। उसके बाद से समाचार आते रहते हैं कि जिम्मेदार संस्थाएं इससे जुड़ी अनुकूल संभावनाएं तलाश रही हैं, लेकिन स्वाभाविक रूप से ऐसे समाचार गलत ही होते हैं।
नवंबर की शुरुआत में यह मामला लाहौर हाई कोर्ट के सामने आया। स्थानीय नगर निगम ने अदालत को सूचित किया कि भगत सिंह फाउंडेशन की मांग को स्वीकार नहीं किया जा सकता और इस विचार को ही त्याग दिया गया है। इस विचार को नकारने में निगम ने पाकिस्तानी नौसेना के सेवानिवृत्त कमोडोर तारिक मजीद की राय को आधार बनाया। मजीद ने भगत सिंह के बारे में यह कहने का दुस्साहस किया कि ‘वह क्रांतिकारी नहीं, बल्कि अपराधी थे, जिन्हें वर्तमान परिभाषाओं के हिसाब से आतंकी कहा जाता। उन्होंने एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी की हत्या की थी और उसी अपराध में अपने दो साथियों के साथ उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।’
मजीद ने भगत सिंह को नास्तिक बताते हुए उन्हें इस्लाम-विरोधी भी करार दिया। उन्होंने यहां तक सुझाव दिया कि भगत सिंह फाउंडेशन पर प्रतिबंध लगा दिया जाए, क्योंकि यह पाकिस्तान की मूल विचारधारा के विरुद्ध है। लाहौर हाई कोर्ट ने अब इस मामले को 17 जनवरी तक लंबित कर दिया है। इस मामले में आगे जो भी हो, लेकिन इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता कि सिखों को लुभाने के प्रयास में जुटे पाकिस्तान में इस समुदाय के एक महान नायक की स्मृति एवं विरासत को इस प्रकार कलंकित किया जा रहा है।
मनीष तिवारी के सवाल पर कीर्ति वर्धन सिंह के जवाब को देखें तो विदेश राज्य मंत्री ने यह जवाब दिया, ‘भारत सरकार ने पाकिस्तान में भगत सिंह के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणियों का संज्ञान लिया है और कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से इस घटना के प्रति पाकिस्तान सरकार के समक्ष कड़ा विरोध जताया है।
इसके साथ ही, भारत सरकार ने पाकिस्तान में सांस्कृतिक विरासत पर बढ़ते हमलों, अल्पसंख्यक समुदाय की गरिमा पर आघात और उनके विरुद्ध बढ़ रही असहिष्णुता का मुद्दा भी उठाया है। सरकार और समूचा राष्ट्र भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भगत सिंह के अमूल्य योगदान को मान्यता देता है। उनकी पुण्यतिथि पर हर साल देश-विदेश में कार्यक्रम आयोजित होते हैं। विदेश में सक्रिय भारत के कूटनीतिक मिशन भी भगत सिंह के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करने वाले कार्यक्रम आयोजित करते हैं।’
सरकार के इस जवाब में वैसी प्रतिक्रिया प्रतिध्वनित नहीं होती, जैसी भगत सिंह के लिए आतंकी और अपराधी जैसे शब्दों के प्रयोग पर होनी चाहिए थी। सरकार की ओर से उन तिथियों का उल्लेख नहीं किया गया, जब कूटनीतिक माध्यमों के जरिये उसने पाकिस्तान से विरोध जताया। न ही यह उजागर किया कि क्या इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग ने इस मामले में कोई शिकायत दर्ज कराई या नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग में किसी को इस मामले में तलब किया?
इससे भी महत्वपूर्ण इस स्पष्टता का अभाव है कि सरकार ने लाहौर हाई कोर्ट में भगत सिंह के विरुद्ध हुई टिप्पणियों को हटाने की मांग की है या नहीं? कूटनीतिक विरोध की सामग्री भी सार्वजनिक नहीं की गई। इस पर अफसोस ही हो सकता है कि सरकार ने इसे सामान्य मामलों की तरह ही लिया। भगत सिंह के विरुद्ध ऐसी टिप्पणियों का लोकसभा अध्यक्ष द्वारा संज्ञान लिया जाना चाहिए था। लगता है विदेश मंत्रालय ने इस मामले को हल्के में ले लिया। यह विदेश मंत्री जयशंकर के उस दृष्टिकोण के उलट दिखता है कि देश अब नई राष्ट्रवादी भावनाओं से ओतप्रोत हो गया है।
अच्छा होगा कि सरकार के नेतृत्व में देश की समूची राजनीतिक बिरादरी भगत सिंह के विरुद्ध टिप्पणियों की कड़ी निंदा करे। यदि यह संसद में किया जाए तो और भी बेहतर होगा। शादमान चौक का नाम बदलने या न बदलने का फैसला पाकिस्तान का है, लेकिन उन भगत सिंह के विषय में आतंकी एवं अपराधी सरीखी कोई अनर्गल टिप्पणी कतई बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए, जिन्होंने 23 वर्ष की अल्पायु में ही राष्ट्र के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया।
कई पीढ़ियां उनसे प्रेरित होती आई हैं और भविष्य में भी होती रहेंगी। संसद में यह मांग कड़ाई से रखी जाए कि पाकिस्तान सरकार लाहौर हाई कोर्ट में तारिक मजीद के नजरिये को खारिज करे। कोई पाकिस्तानी संस्था भगत सिंह के बारे में कुछ भी अनाप-शनाप कहे, उससे एक महान बलिदानी के प्रति स्नेह और सम्मान की भावना बदल नहीं जाएगी, लेकिन क्या नया भारत अपने नायकों का ऐसा निरादर होने देगा?
(लेखक विदेश मंत्रालय में सचिव रहे हैं)