समुद्र ने भारतीय सभ्यता को कैसे दिया आकार?
समुद्र ने भारतीय सभ्यता को कैसे दिया आकार? सिंधु घाटी, मध्यकालीन और आधुनिक नौसेना की दास्तां
इस स्टोरी में समझिए प्राचीन भारत में समुद्र का कितना महत्व था. समुद्र का इस्तेमाल न केवल व्यापार के लिए बल्कि प्रशासन और धर्म प्रचार के लिए भी किया जाता था.
भारत सरकार ने हाल ही में अपने बंदरगाहों और जहाजों से जुड़े मंत्रालय के जरिए पहला इंडिया मैरीटाइम हेरिटेज कॉन्क्लेव (IMHC 2024) आयोजित कराया. इस कॉन्क्लेव में भारत के समुद्रों से जुड़े इतिहास और उसकी उपलब्धियों का जश्न मनाया गया.
इस कॉन्क्लेव में दुनियाभर के मंत्री, विशेषज्ञ और गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए. सभी ने मिलकर बातचीत की और तय किया कि आगे कैसे साथ मिलकर काम किया जाए. इससे यह बात और पक्की हो गई कि समुद्र के मामले में भारत का इतिहास बहुत पुराना और महत्वपूर्ण है. दुनिया के समुद्री इतिहास को बनाने में भारत का बहुत बड़ा हाथ रहा है.
आज का भारत समुद्र के मामले में बहुत आगे है. 7500 किलोमीटर लंबा समुद्री तट, 13 बड़े बंदरगाह और 200 छोटे बंदरगाह भारत को समुद्री ताकत बनाते हैं. भारत के बंदरगाह हर साल 1200 मिलियन टन सामान उठाते हैं. इससे पता चलता है कि हमारी अर्थव्यवस्था में समुद्र कितना महत्वपूर्ण है. भारत का 95% व्यापार समुद्र के रास्ते होता है. हिंद महासागर में हमारी खास जगह का पूरा फायदा उठाते हुए भारत समुद्री व्यापार में आगे बढ़ रहा है.
इंडिया मैरीटाइम हेरिटेज कॉन्क्लेव में क्या रहा खास
यहां भारत की समुद्री विरासत, पुराने जहाज के निर्माण की तकनीकें और नाव चलाने के उपकरण दिखाए गए. इससे पता चलता है कि भारत पुराने समय से ही दुनिया भर के देशों के साथ व्यापार करता रहा है. ग्रीस, इटली और यूनाइटेड किंगडम जैसे समुद्री देशों ने भी इस सम्मेलन में हिस्सा लिया. यानी भारत की समुद्री विरासत पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है.
सम्मेलन में गुजरात के लोथल में बन रहे राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC) पर भी खास ध्यान दिया गया. य सिंधु घाटी सभ्यता का एक ऐतिहासिक स्थल है, जिसे बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय द्वारा बनाया रहा है. यह परियोजना दुनिया के सबसे बड़े समुद्री परिसरों में से एक बनने का लक्ष्य रखती है. यहां अतीत, वर्तमान और भविष्य की समुद्री गतिविधियों को एक साथ दिखाया जाएगा.
क्या है भारत का समुद्री इतिहास
भारत का समुद्र से रिश्ता हजारों साल पुराना है. सिंधु घाटी सभ्यता (3300-1300 ईसा पूर्व) के समय से ही भारत में समुद्री गतिविधियां होती रही हैं. लोथल में दुनिया का सबसे पहला ड्राई-डॉक (2400 ईसा पूर्व) मिला है, जहां जहाजों की मरम्मत की जाती थी. इससे पता चलता है कि उस समय के लोगों को समुद्र और जहाजों के बारे में अच्छी जानकारी थी. सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मेसोपोटामिया (आज का इराक) के साथ व्यापार करते थे. मेसोपोटामिया में हड़प्पा सभ्यता की मुहरें और गहने मिले हैं, जो इस बात का प्रमाण हैं.
वैदिक काल (1500-600 ईसा पूर्व) में भी भारत का समुद्र से गहरा नाता था. भारत के सबसे पुराने ग्रंथ ऋग्वेद में भी समुद्र और जहाजों का जिक्र मिलता है. हमारी कहानियों और पुराणों में समुद्र, नदियां और उनसे मिलने वाली चीजों के बारे में बहुत कुछ बताया गया है. समुद्र के देवता वरुण को समुद्री मार्गों का रक्षक माना जाता था. इन महाकाव्यों में जहाज निर्माण और समुद्री यात्रा का भी वर्णन मिलता है.
इससे पता चलता है कि इंसान और समुद्र हमेशा से एक-दूसरे से जुड़े रहे हैं. भारत के साहित्य, कला, मूर्तियां, चित्र और खुदाई में मिली चीजें यह बताती हैं कि हमारे यहां समुद्र से जुड़ी एक समृद्ध परंपरा रही है. इसी परंपरा ने भारत की पहचान को आकार दिया है.
दुनिया की पहली नौसेना भारत में थी?
लगभग 2500 साल पहले भारत में नंद और मौर्य राजाओं का शासन था. इस समय भारत की समुद्री ताकत काफी बढ़ गई थी. मगध साम्राज्य के पास दुनिया की सबसे पहली नौसेना थी जिसके बारे में लिखित जानकारी मिलती है.
मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के मंत्री चाणक्य ने अपनी किताब ‘अर्थशास्त्र’ में जलमार्गों के महत्व के बारे में लिखा है. उन्होंने ‘नावध्यक्ष’ नाम के एक अधिकारी का जिक्र किया है जो जलमार्गों और जहाजों का ध्यान रखता था. सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए समुद्री रास्तों का इस्तेमाल किया. उन्होंने श्रीलंका, बर्मा, थाईलैंड और इंडोनेशिया अपने दूत भेजे. इससे भारतीय संस्कृति और धर्म का प्रभाव इन देशों में फैला
सातवाहन वंश का भारत के समुद्री इतिहास में योगदान
प्राचीन भारत के इतिहास में सातवाहन वंश का महत्वपूर्ण स्थान है. इस वंश ने लगभग 400 सालों तक (200 ईसा पूर्व-220 ईस्वी) भारत के पूर्वी तट पर शासन किया. सातवाहन शासकों ने समुद्री व्यापार को बढ़ावा दिया और रोमन साम्राज्य के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध स्थापित किए. सातवाहन वंश की एक खास बात यह थी कि वे जहाजों की आकृति वाले सिक्के जारी करने वाले पहले भारतीय शासक थे.
गुप्त काल में भारत समुद्र के मामले में बहुत ताकतवर बना
लगभग 1500 साल पहले भारत में गुप्त राजाओं का राज था. इसे भारत का ‘सुनहरा दौर’ कहा जाता है. इस समय देश में खूब तरक्की हुई. कला और संस्कृति फली-फूली और नए-नए आविष्कार हुए. चीन से आए फाह्यान और ह्वेन त्सांग नाम के यात्रियों ने भी भारत की तारीफ अपने लेखों में की है.
आर्यभट्ट और वराहमिहिर जैसे बड़े विद्वानों ने तारों और ग्रहों के बारे में नई-नई खोजें कीं. इससे लोगों को समुद्र में रास्ता ढूंढ़ने में मदद मिली और जहाज सही दिशा में जाने लगे. गुप्त राजाओं ने समुद्र के किनारे कई नए बंदरगाह बनवाए. इससे यूरोप और अफ्रीका के देशों के साथ व्यापार बढ़ गया.
दक्षिण भारत में किन राजवंशों ने समुद्री व्यापार में दिया योगदान
दक्षिण भारत में भी कई राजवंशों ने समुद्री व्यापार और नौवहन में महत्वपूर्ण योगदान दिया. चोल राजाओं ने सुमात्रा, जावा, थाईलैंड और चीन के साथ व्यापक समुद्री व्यापार किया. उन्होंने बंदरगाह, जहाज बनाने के कारखाने और लाइटहाउस बनवाए. इससे समुद्री यात्रा सुरक्षित और आसान हुई.
वहीं पांड्य राजाओं ने मोती की खेती को बढ़ावा दिया और रोम और मिस्र के साथ व्यापार किया. मोती उनकी आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत था. चेर वंश ने यूनानियों और रोमनों के साथ व्यापार किया. वे मानसूनी हवाओं का इस्तेमाल करके टाइन्डिस (कोच्चि के पास) और मुजिरिस (कोच्चि के पास) से अरब के बंदरगाहों तक जहाजों को ले जाते थे. इससे पता चलता है कि दक्षिण भारत के राजवंशों ने भी समुद्री व्यापार में अहम भूमिका निभाई और भारत को एक प्रमुख समुद्री शक्ति बनाया.
मध्यकालीन भारत में समुद्री व्यापार
मध्यकालीन भारत में भी समुद्री व्यापार फलता-फूलता रहा, लेकिन इसमें कुछ नए खिलाड़ी भी शामिल हुए और कुछ बदलाव भी आए. 8वीं शताब्दी तक अरब व्यापारी हिंद महासागर में प्रमुखता से उभरे. वे भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और यूरोप के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे. उनके प्रभाव से हिंद महासागर के व्यापारिक मार्गों पर नियंत्रण में बदलाव आया.
16वीं शताब्दी में वास्को डी गामा नामक पुर्तगाली नाविक ने पुर्तगाल से भारत तक समुद्री मार्ग की खोज की. वह अफ्रीका के केप ऑफ गुड होप को पार करके मई 1498 में केरल के कालीकट बंदरगाह पर पहुंचा. वास्को डी गामा के आगमन से भारत के समुद्री इतिहास में एक नया अध्याय शुरू हुआ. हालांकि, पुर्तगालियों ने गोवा और कोच्चि में अपने ठिकाने बनाकर व्यापार पर एकाधिकार करने की कोशिश की.
17वीं शताब्दी में यूरोपीय ताकतों के बीच भारत के समुद्री व्यापार पर कब्जा जमाने की होड़ मच गई. पुर्तगाल, डच, फ्रांसीसी और अंग्रेज सभी इस दौड़ में शामिल थे. धीरे-धीरे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापारिक छूट हासिल करके और अपनी नौसेना की ताकत का इस्तेमाल करके भारतीय जल में अपना दबदबा बना लिया. इस तरह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में सबसे ताकतवर यूरोपीय शक्ति बन गई और आगे चलकर उसने पूरे भारत पर अपना शासन स्थापित कर लिया.
अंग्रेजी शासनकाल में भी भारत की समुद्री परंपरा जारी रही?
जब भारत में मुगल और अंग्रेज राज कर रहे थे, तब भी कुछ भारतीय शासक समुद्र में अपनी ताकत बनाए रखने की कोशिश करते रहे. शिवाजी महाराज ने अंग्रेजों और मुगलों से लड़ने के लिए एक मजबूत नौसेना बनाई. उन्होंने समुद्र के किनारे सिंधुदुर्ग और विजयदुर्ग जैसे मजबूत किले भी बनवाए ताकि दुश्मन हमला न कर सकें.
अंग्रेजों ने 1892 में रॉयल इंडियन मरीन नाम से एक नौसेना बनाई. जब पहला और दूसरा विश्व युद्ध हुआ, तो भारतीय नौसेना ने अंग्रेजों की मदद की. उन्होंने दुश्मन के जहाजों पर नजर रखी, उनसे लड़ाई की और समुद्र में गश्त लगाई. फिर साल 1934 में अंग्रेजों ने भारतीय नौसेना का नाम बदलकर ‘रॉयल इंडियन नेवी’ रख दिया. इससे आजादी के बाद भारत को अपनी नौसेना मिल गई.
आजादी के बाद भारत की नौसेना
जब भारत आजाद हुआ, तो रॉयल इंडियन नेवी को भारत और पाकिस्तान के बीच बांट दिया गया. 1950 में ‘रॉयल’ शब्द हटा दिया गया और भारतीय नौसेना का नया नाम ‘इंडियन नेवी’ रखा गया. इसका चिह्न अशोक स्तंभ का शेर है.
भारतीय नौसेना का नारा “शं नो वरुणः” है. इसका मतलब है “हे वरुण, हमारा कल्याण करो”. वरुण समुद्र के देवता माने जाते हैं. यह नारा नौसेना के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जड़ों को दर्शाता है. वाइस एडमिरल आरडी कटारी 1958 में भारतीय नौसेना के पहले भारतीय प्रमुख बने.
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय नौसेना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस युद्ध में ऑपरेशन ट्राइडेंट नामक सफल अभियान के लिए हर साल 4 दिसंबर को नौसेना दिवस मनाया जाता है. आज भारतीय नौसेना एक आधुनिक और शक्तिशाली नौसेना है. यह न केवल हिंद महासागर में बल्कि दुनिया भर में अपनी क्षमता दिखा सकती है.