अमेरिका-चीन में ‘सप्लाई चेन’ युद्ध से सबको नुकसान होगा !
इस महीने जब डोनाल्ड ट्रम्प ने शी जिनपिंग को अपने शपथ-ग्रहण समारोह के लिए वॉशिंगटन आमंत्रित किया तो बहुत सारे लोगों की त्योरियां चढ़ गईं। बेशक, विदेशी नेता अमेरिकी राष्ट्रपति के शपथ-ग्रहण समारोहों में परम्परागत रूप से शामिल नहीं होते रहे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि ट्रम्प का विचार वास्तव में अच्छा था। मैं हाल ही में चीन की यात्रा से लौटा हूं और अगर मुझे आज इन दोनों देशों के बीच संबंधों की तस्वीर खींचना होता तो मैं इसे तिनके की ओट से एक-दूसरे को देख रहे दो हाथियों की तरह चित्रित करता।
अमेरिका और चीन को ट्रेड और ताइवान के अलावा और भी चीजों पर बात करनी है, जिनमें से सबसे प्रमुख यह है कि 21वीं सदी का निर्विवाद हैवीवेट चैंपियन कौन है। आज दुनिया के सामने तीन सबसे बड़ी चुनौतियां हैं : बेकाबू एआई, जलवायु-परिवर्तन और विफल-राष्ट्रों से फैलती अव्यवस्था।
अमेरिका और चीन दुनिया की एआई महाशक्तियां हैं। वे दुनिया के दो सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक भी हैं। और उनके पास दुनिया की सबसे बड़ी नौसेनाएं हैं, जो वैश्विक स्तर पर शक्ति-प्रदर्शन में सक्षम हैं। दूसरे शब्दों में, अमेरिका और चीन ही आज निर्विवाद रूप से दुनिया की दो सबसे बड़ी शक्तियां हैं।
यही कारण है कि हमें एक अपडेटेड शंघाई-संधि की आवश्यकता है। यह वो दस्तावेज है, जिसने 1972 में रिचर्ड निक्सन की चीन-यात्रा और माओत्से तुंग से भेंट के बाद अमेरिका-चीन संबंधों को सामान्य बनाने के लिए तैयार किया गया था। लेकिन आज हम चीन से अपने संबंधों को बिगाड़ने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
मैंने बीजिंग और शंघाई में एक सप्ताह बिताया, चीनी अधिकारियों, अर्थशास्त्रियों और उद्यमियों से मुलाकात की, और हकीकत यह है कि जब हम गहरी नींद में सो रहे थे, तब चीन ने हर चीज की उच्च तकनीक वाली मैन्युफैक्चरिंग में एक बड़ी छलांग लगा दी है।
यदि किसी ने डोनाल्ड ट्रम्प को अभी तक नहीं बताया है, तो मैं बताता हूं कि चीनी सोशल मीडिया पर उनका निकनेम ‘चुआन जियांगुओ’ है- जिसका अर्थ है चीनी-राष्ट्र के निर्माता। कारण, राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान उन्होंने बेधड़क होकर चीन की आलोचना की और उस पर टैरिफ की बौछार कर दी, जिसने बीजिंग को प्रेरित किया कि वह इलेक्ट्रिक कारों, रोबोटों और दुर्लभ सामग्रियों में वैश्विक-वर्चस्व हासिल करने के अपने प्रयासों को दोगुना कर दे। साथ ही वह अमेरिका के बाजारों और उपकरणों से जितना संभव हो सके, स्वतंत्र हो जाए।
चीन में 30 साल तक रहने वाले बिजनेस-कंसल्टेंट जिम मैकग्रेगर ने मुझे बताया, चीन को उसका एक ‘स्पुतनिक-क्षण’ मिला था- उसका नाम था डोनाल्ड ट्रम्प। ट्रम्प ने चीन को इस तथ्य से अवगत कराया कि उसे अपने वैज्ञानिकों और मैन्युफैक्चरिंग कौशल को नए स्तर पर ले जाने के लिए सभी हाथों से काम करने की जरूरत है।
अपना दूसरा कार्यकाल सम्भालने के बाद ट्रम्प जिस चीन का सामना करेंगे, वह एक अपराजेय निर्यात-इंजन है। पिछले आठ वर्षों में उसकी मैन्युफैक्चरिंग की ताकत कई गुना हो गई है, जबकि उसके लोगों द्वारा उपभोग अभी भी बहुत कम है।
चीन की निर्यात-मशीन आज इतनी मजबूत है कि केवल बहुत अधिक टैरिफ ही इसे धीमा कर सकते हैं। और बहुत अधिक टैरिफ पर प्रतिक्रिया देते हुए चीन अमेरिकी उद्योगों को उन महत्वपूर्ण आपूर्तियों से वंचित करना शुरू कर सकता है, जो अब लगभग कहीं और उपलब्ध नहीं हैं।
इस तरह के सप्लाई-चेन युद्ध की आज दुनिया में किसी को भी जरूरत नहीं है। खुद चीनी वैसी लड़ाई से बचना चाहेंगे। उन्हें अभी भी अपने निर्यात के लिए अमेरिकी बाजार की आवश्यकता है। लेकिन वे आसानी से हार नहीं मानेंगे।
याद रखें कि 2000 में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने वैश्विक औद्योगिक-उत्पादन में भारी बहुमत हासिल किया था, जबकि चीन दो दशकों के तेज विकास के बाद भी सिर्फ 6 प्रतिशत ही योगदान दे रहा था। लेकिन संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन के डेटा की मानें तो 2030 तक चीन वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग में 45 प्रतिशत का योगदान दे रहा होगा और अकेले ही अमेरिका और उसके सभी सहयोगियों से बराबरी पर होगा या उनसे आगे निकल जाएगा।
अगर अमेरिका इस समय का उपयोग चीन को जवाब देने के लिए नहीं करता है, जैसा कि उसने सोवियत संघ द्वारा 1957 में दुनिया के पहले कृत्रिम उपग्रह स्पुतनिक के प्रक्षेपण के बाद किया था तो वह चीन से यह होड़ हार जाएगा।
जब अमेरिका गहरी नींद में सो रहा था, तब चीन ने हर चीज की उच्च तकनीक वाली मैन्युफैक्चरिंग में एक बड़ी छलांग लगा दी है। अगर कुछ नहीं किया गया तो चीन जल्द ही इस क्षेत्र में अमेरिका को पछाड़कर आगे निकल जाएगा। (द न्यूयॉर्क टाइम्स से)