आप भारतीय मुसलमान का भरोसा खो चुके हैं !
आप भारतीय मुसलमान का भरोसा खो चुके हैं, मौलाना अबुल कलाम से यह बात किसने कही? पढ़ें किस्से
Maulana Abul Kalam Azad Death Anniversary: मौलाना अबुल कलाम आजाद ने आजादी की जंग में महत्वूर्ण भूमिका निभाई. वह भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने. साल 1923 में वह कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष चुने गए थे. साल 1940 के आखिर में मोहम्मद अली जिन्ना की अलग देश की मांग सामने आई तो सबसे पहले जिन लोगों ने विरोध किया, उनमें मौलाना आजाद अग्रणी थे. पुण्यतिथि पर आइए जान लेते हैं उनके किस्से.
देश के पहले शिक्षा मंत्री रहे मौलाना अबुल कलाम आजाद की स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका थी. साल 1923 में वह कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष चुने गए थे. साल 1940 के आखिर में मोहम्मद अली जिन्ना की अलग देश की मांग सामने आई तो सबसे पहले जिन लोगों ने विरोध किया, उनमें मौलाना आजाद अग्रणी थे. पुण्यतिथि पर आइए जान लेते हैं उनके किस्से.
मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म भारत नहीं, बल्कि 11 नवंबर 1888 को यहां से 3200 किमी दूर सऊदी अरब के मक्का में हुआ था. उनका पूरा नाम अबुल कलाम मोहिउद्दीन अहमद था. साल 1857 की क्रांति के बाद उनके पिता खैरुद्दीन सऊदी अरब चले गए और वहां लगभग 30 साल रहे. इसके बाद साल 1895 में देश लौटे और कलकत्ता (अब कोलकाता) में बस गए.
मौलाना आजाद की 11 साल की उम्र में ही उनकी माता का निधन हो गया था. उसके कुछ ही साल बाद पिता का भी निधन हो गया. ऐसे में उनको स्कूल, मदरसा या उच्च शिक्षा नहीं मिल पाई. उनकी सारी पढ़ाई-लिखाई पिता की देखरेख में घर पर ही हुई थी.
साल 1923 में पहली बार बने कांग्रेस के अध्यक्षमौलाना आजाद के बड़े होने के साथ ही आजादी की जंग भी परवान चढ़ रही थी. इसी बीच 18 जनवरी 1920 को पहली बार उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई. इसके पंडित जवाहरलाल नेहरू और दूसरे कांग्रेसी नेताओं से मिले. इसके तीन साल बाद ही 1923 में उनको बेहद कम उम्र में कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया. साल 1940 में वह एक बार फिर कांग्रेस के अध्यक्ष बने.यह वही साल था, मोहम्मद अली जिन्ना अलग मुस्लिम देश की मांग की ओर बढ़ चुके थे.
मोहम्मद अली जिन्ना को समझाने का जिम्मा महात्मा गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं ने आजाद को सौंपा. यह जानते हुए भी कि अबुल कलाम आजाद से जिन्ना बुरी तरह चिढ़ते थे.
जिन्ना से था 36 का आंकड़ामौलाना आजाद की जीवनी ‘मौलाना आज़ाद-ए-लाइफ़’ में बताया गया है कि मोहम्मद अली जिन्ना के मन में आजाद को लेकर इतनी खटास थी कि एक पत्र में लिख दिया था कि मैं आपसे कोई बात नहीं करना चाहता हूं और न ही कोई पत्राचार. भारतीय मुसलमानों का भरोसा आप खो चुके हैं. कांग्रेस ने दिखाने के लिए आपको अध्यक्ष बनाया है. आपके भीतर थोड़ा भी स्वाभिमान है तो तुरंत पद से इस्तीफा दे दीजिए. इसके जवाब में आजाद ने लिखा था कि हिन्दू और मुसलमान भले आपस में लड़ें पर दोनों सगे भाइयों की तरह हैं. भाइयों में लड़ाई होती रहती है. इस मतभेद को बढ़ाने से कोई समाधान नहीं निकलेगा.
आजादी की लड़ाई परवान चढ़ी और तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने जिन्ना की बात पर देश के विभाजन की रूपरेखा बनानी शुरू कर दी. एक अलग मुस्लिम देश का खाका माउंटबेटन ने सामने रखा तो मौलाना आजाद बुरी तरह बिफर गए. उन्होंने साफ कह दिया कि किसी भी कीमत पर देश के दो टुकड़े नहीं होने देंगे. वे कोशिश कर ही रहे थे कि मार्च 1947 आते-आते बंटवारे के खिलाफ खड़े सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे दूसरे नेता भी इसके लिए तैयार हो गए. इससे सबसे ज्यादा तकलीफ आजाद को पहुंची.
अपनी लाख कोशिश के बावजूद वह बंटवारे को तो नहीं टाल सके पर जब मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान जाने लगे तब भी उन्होंने मुसलमानों को समझाने की कोशिश की थी.
आजादी के बाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने15 अगस्त 1947 को देश को स्वाधीनता मिलने के बाद अबुल कलाम आजाद ने उत्तर प्रदेश में रामपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीतकर संसद पहुंचे. पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में उनको शिक्षा मंत्रालय का जिम्मा दिया गया. हालांकि, स्वाधीनता के बाद वह स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से जूझने लगे. उनके पैर में दिक्कत हो गई. वह लंगड़ा कर चलने लगे. इसी बीच दो बार बाथरूम में गिर गए. 19 फरवरी 1958 को भी वह बाथरूम में गिरे थे और उनको इतनी गहरी चोट लगी कि उससे उबर नहीं पाए. इसके चार दिन बाद ही 22 फरवरी 1958 को उन्होंने दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया.