नई दिल्ली। देश भर के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में वर्ष 2020 से 2024 के दौरान रैगिंग के कारण से 51 छात्रों की मौत हो गई। यह संख्या कोचिंग हब कोटा में इसी अवधि के दौरान छात्रों की आत्महत्या के आंकड़ों के बराबर है।
सोसाइटी अगेंस्ट वायलेंस इन एजुकेशन नामक संस्था द्वारा प्रकाशित ‘स्टेट ऑफ रैगिंग इन इंडिया 2022-24’ रिपोर्ट में इस तथ्य को उजागर किया गया है। रिपोर्ट में मेडिकल कॉलेजों को भी रैगिंग की शिकायतों के लिए हाटस्पॉट के रूप में पहचाना गया है।
मेडिकल कॉलेजों में अधिक मामले
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मेडिकल कॉलेज चिंता का एक विशेष क्षेत्र हैं, क्योंकि 2022-24 के दौरान कुल शिकायतों का 38.6 प्रतिशत मेडिकल कॉलेज से ही संबंधित है, जबकि गंभीर शिकायतों का 35.4 प्रतिशत और रैगिंग से संबंधित मौतों का 45.1 प्रतिशत हिस्सा है। कुल छात्रों का केवल 1.1 प्रतिशत ही रैगिंग से संबंधित है। आंकड़ों से यह भी पता चला है कि इस अवधि के दौरान रैगिंग के कारण 51 छात्रों की जान चली गई, जो कोटा में दर्ज 57 छात्रों की आत्महत्याओं से लगभग बराबर है।’
लेखकों ने दावा किया कि शिकायतों की संख्या रिपोर्ट में दी गई संख्या से कहीं अधिक थी। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ऐसा नहीं है कि पूरे भारत में तीन वर्षों में केवल 3,156 रैगिंग की शिकायतें दर्ज की गईं। ये केवल राष्ट्रीय एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन पर दर्ज की गई शिकायतें हैं। बड़ी संख्या में शिकायतें सीधे कॉलेजों में दर्ज की जाती हैं, और अगर मामला गंभीर है तो सीधे पुलिस में भी दर्ज की जाती हैं।’
शिकायत दर्ज नहीं कराते पीड़ित

  • रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ऐसे सभी मामले एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन पर उपलब्ध आंकड़ों में नहीं दर्शाए गए और इसलिए इस रिपोर्ट में भी नहीं दर्शाए गए हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि गंभीर रैगिंग की वास्तविक घटनाएं शैक्षणिक संस्थानों में अभी भी बहुत अधिक होंगी क्योंकि केवल कुछ ही पीड़ित आगे आकर रिपोर्ट करने का साहस जुटा पाते हैं, अन्य लोग शिकायत करने के बाद अपनी सुरक्षा के डर से चुपचाप रहते हैं।’

 

  • रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीड़ितों की पहचान की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन को गुमनाम शिकायतें स्वीकार करनी चाहिए। इसमें कहा गया है, ‘कॉलेजों को समर्पित सुरक्षा गार्डों के साथ एंटी-रैगिंग स्क्वाड स्थापित करना चाहिए। इनके संपर्क विवरण नए छात्रों के साथ साझा किए जाने चाहिए। छात्रावासों में सीसीटीवी फुटेज की निगरानी सुरक्षा कर्मियों, एंटी-रैगिंग समितियों और अभिभावकों द्वारा की जानी चाहिए।’