दामन पर दाग…..कहां तक जाएगी अधजले नोटों की आंच?

दामन पर दाग, जज के स्टोररूम में लगी आग के बाद कहां तक जाएगी अधजले नोटों की आंच?

दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर कैश मिलने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जांच बिठा दी है। जांच पूरी होने तक जस्टिस वर्मा से सभी न्यायिक जिम्मेदारियां ले ली गई हैं। वहीं, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने भी इस मामले में टिप्पणी की है।
Delhi High Court Justice Yashwant Varma alleged Cash Row in house Supreme Court investigation explained news

दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़ा पूरा विवाद यहां समझिए….

दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से कथित तौर पर भारी मात्रा में नकदी की बरामदगी का मामला चर्चा में हैं। सोमवार को जस्टिस वर्मा को अगले आदेश तक के लिए न्यायायिक जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया। वहीं, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना द्वारा तीन सदस्यीय आंतरिक जांच समिति का गठन भी कर दिया गया है। 

इन सबके बीच सवाल उठ रहा है कि आखिर जस्टिस यशवंत वर्मा कैसे चर्चा में आए? इस पूरे विवाद के केंद्र में जो जस्टिस यशवंत वर्मा हैं वो कौन हैं? उनके कौन से फैसले सबसे ज्यादा चर्चित रहे हैं? जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों पर सीजेआई ने क्या कदम उठाया है? इस पूरे मामले में जस्टिस वर्मा का क्या कहना है? इस मामले में आगे क्या होगा? 
आइये जानते हैं…
इस कार्रवाई के बीच 23 मार्च को जस्टिस वर्मा के सरकारी बंगले के पास कूड़े के ढेर में भी 500-500 के जले नोट मिले। इस मामले में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही इस पर कुछ कहेंगे। वहीं, 24 मार्च को जस्टिस वर्मा से अगले आदेश तक के लिए न्यायिक जिम्मेदारियां ले ली गईं।
कौन हैं जस्टिस यशवंत वर्मा?
56 साल के जस्टिस यशवंत वर्मा को अक्तूबर 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया गया था। दिल्ली हाईकोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, जस्टिस यशवंत वर्मा ने 8 अगस्त 1992 को वकील के रूप में नामांकन कराया था। 13 अक्तूबर 2014 को उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया। 1 फरवरी 2016 को जस्टिस वर्मा स्थायी न्यायाधीश बने। 11 अक्तूबर 2021 को जस्टिस वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे। जस्टिस वर्मा वर्तमान में बिक्री कर, जीएसटी व अन्य अपीलों के मामलों से निपटने वाली खंडपीठ का नेतृत्व कर रहे हैं। जस्टिस वर्मा 2006 से अपनी पदोन्नति तक इलाहाबाद हाईकोर्ट में विशेष वकील रहे। 2012 से अगस्त 2013 तक यूपी सरकार के मुख्य स्थायी वकील रहे। जस्टिव यशवंत वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी. कॉम (ऑनर्स) की डिग्री ली। इसके वाद उन्होंने मध्य प्रदेश के रीवा विश्वविद्यालय से एलएलबी की। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में उन्होंने कॉर्पोरेट कानूनों, कराधान और कानून की संबद्ध मामलों के अलावा संवैधानिक, श्रम और औद्योगिक विधानों के मामलों में भी पैरवी की।

जस्टिस वर्मा के चर्चित फैसले कौन से हैं?
जस्टिस वर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने शिबू सोरेन के खिलाफ सीबीआई जांच पर रोक लगाई थी। इसके अलावा उन्होंने उस आदेश को खारिज कर दिया था, जिसमें स्पाइसजेट और उसके प्रमोटर अजय सिंह को सन टीवी के मालिक कलानिधि मारन को 579 करोड़ रुपये और ब्याज वापस करने के लिए दिए गए मध्यस्थता फैसले को बरकरार रखा गया था।
 
उनके आदेशों में कांग्रेस के आयकर का नए सिरे से मूल्यांकन करने के खिलाफ दायर याचिका खारिज करना भी शामिल है। जस्टिस वर्मा ने ही नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज ‘ट्रायल बाय फायर’ पर रोक से इनकार किया था। सीरीज पर रोक के लिए रियल एस्टेट कारोबारी सुशील अंसल ने याचिका दाखिल की थी। जस्टिस वर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के एक आदेश को भी रद्द कर दिया था। इसके तहत विभिन्न संस्थाओं को दिए गए ऋणों से अपनी ‘आय’ पर नोएडा को कर देयता से छूट देने से इनकार कर दिया गया था। 
आरोपों पर सीजेआई ने क्या कदम उठाया है?
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने इस मामले में शनिवार को तीन सदस्यीय समिति का गठन किया। यह समिति मामले की जांच करेगी। जस्टिस खन्ना ने निर्देश दिया कि जस्टिस वर्मा को कोई न्यायिक कार्य न सौंपा जाए। इस समिति का गठन दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीके उपाध्याय की रिपोर्ट मिलने के बाद किया गया। सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागु, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जीएस संधवालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद सोमवार को दिल्ली हाईकर्ट ने जस्टिस वर्मा से सभी न्यायिक जिम्मेदारियां वापस ले लीं। अब सवाल है कि इस मामले में आगे क्या होगा?

सीजेआई की ओर से तीन सदस्यीय समिति के गठन के बाद जस्टिस वर्मा के खिलाफ आंतरिक जांच प्रक्रिया दूसरे महत्वपूर्ण चरण में पहुंच गई है। इस जांच के निष्कर्ष उनके भाग्य का फैसला करेंगे। नियम के मुताबिक जांच कर रही समिति अगर संबंधित न्यायाधीश के खिलाफ गंभीर कदाचार पाती है, तो वह सीजेआई से उनको हटाने की सिफारिश कर सकती है। सीजेआई न्यायाधीश से इस्तीफा देने को कह सकते हैं। अगर न्यायाधीश इस्तीफा नहीं देते तो सीजेआई, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को समिति के निष्कर्ष बताते हैं। इसके बाद न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होती है। 
किसी भी जज को उसके पद से हटाने की प्रक्रिया क्या है? 
1999 में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार व अनियमितताओं के मामलों से निपटने के लिए दिशा-निर्देश तय किए थे। इसमें यह प्रावधान किया गया कि अगर किसी न्यायाधीश पर भ्रष्टाचार या अनियमितता से जुड़े आरोप लगते हैं तो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आंतरिक जांच के बाद संबंधित न्यायाधीश से जवाब मांगेंगे। जवाब संतोषजनक न होने या आगे जांच की जरूरत होने पर सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की समिति बनाई जाएगी। जस्टिस वर्मा के मामले में जांच इसी दूसरे चरण में पहुंच चुकी है।समिति की रिपोर्ट में गंभीर अनियमितताएं पाए जाने पर मुख्य न्यायाधीश संबंधित जज को इस्तीफा देने के लिए कह सकते हैं। न्यायाधीश के इस्तीफा देने से इनकार करने पर मुख्य न्यायाधीश सरकार को पत्र लिखकर अनुच्छेद 124(4) के तहत संसद में महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया शुरू करने के लिए कह सकते हैं। 

तो क्या कभी किसी जज पर महाभियोग लगा है?
देश के इतिहास में किसी भी न्यायाधीश को महाभियोग के जरिए नहीं हटाया गया है। कुछ न्यायाधीशों को महाभियोग की कार्यवाही का सामना करना पड़ा, लेकिन महाभियोग की प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही इन न्यायाधीशों ने इस्तीफा दे दिया था

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