पैनिक बटन से पुलिस नहीं…बस मालिक को जाता है कॉल !

पैनिक बटन से पुलिस नहीं…बस मालिक को जाता है कॉल
कंट्रोल रूम से नहीं हुआ कनेक्ट, महिला सुरक्षा की स्कीम बनी वसूली का जरिया
परिवहन विभाग ने बस-टैक्सी में पैनिक बटन और वीएलटीडी लगाने का काम प्राइवेट कंपनियों को दिया है।

मध्यप्रदेश में वीएलटीडी यानी व्हीकल लोकेशन ट्रेकिंग डिवाइस और इमरजेंसी पैनिक बटन के रिचार्ज के नाम पर प्राइवेट कंपनी करोड़ों रुपए की अवैध वसूली कर रही है। बस मालिक इसकी शिकायत कई बार परिवहन विभाग के अधिकारियों से कर चुके हैं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला है।

दरअसल, मध्यप्रदेश में साल 2022 से सार्वजनिक परिवहन के वाहन, मालवाहक गाड़ियां, टैक्सी, स्कूल बस में व्हीकल लोकेशन ट्रेकिंग डिवाइस और पैनिक बटन लगाना जरूरी किया गया है। इसे न लगाने पर गाड़ियों को फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं दिया जाता है। लिहाजा, 1 लाख 30 हजार वाहन मालिकों ने वीएलटीडी और पैनिक बटन लगाए हैं। इन्हें हर साल रिचार्ज करना पड़ता है।

बस मालिकों का आरोप है कि कंपनियां उनसे हर साल रिचार्ज के नाम पर 2 हजार की बजाय साढ़े 4 हजार रुपए वसूल रही है। इस तरह हर साल गाड़ी मालिकों से करीब 32 करोड़ रुपए ज्यादा वसूले गए हैं। गाड़ी मालिक खुद डिवाइस को रिचार्ज कर सके, ऐसी कोई सुविधा परिवहन विभाग ने नहीं दी है। पैनिक बटन भी केवल दिखावे के लिए ही है।

पैनिक बटन और वीएलटीडी लगाने का काम परिवहन विभाग ने प्राइवेट कंपनियों को दिया है। नेटवर्क प्रोवाइडर बीएसएनएल (भारत संचार निगम लिमिटेड) है। दैनिक भास्कर ने परिवहन विभाग, कंपनियों और बीएसएनल के अधिकारियों से इस मामले को लेकर बात की तो उन्होंने वसूली के आरोपों को खारिज कर दिया।

जानिए, क्यों लग रहे अवैध वसूली के आरोप

बस ऑपरेटर एसोसिएशन के सुरेंद्र तनवानी कहते हैं- दो साल पहले बसों में व्हीकल लोकेशन ट्रेकिंग डिवाइस और पैनिक बटन लगाने का काम शुरू हुआ था। उस समय परिवहन विभाग ने 4 कंपनियों को अधिकृत किया था, लेकिन ये कंपनियां मनमाने तरीके से पैसा वसूल रही थी। बाजार में जो वीएलटी डिवाइस साढ़े तीन-चार हजार में मिल रही थी, उसके लिए कंपनियां 14 हजार रुपए वसूल रही थीं।

इसे लेकर कई जिलों के बस ऑपरेटरों ने हाईकोर्ट में याचिकाएं लगाईं। हाईकोर्ट ने परिवहन विभाग को वीएलटीडी की कीमत तय करने के निर्देश दिए थे। तनवानी कहते हैं कि जैसे-तैसे ये मामला सुलझा। इसके बाद परिवहन विभाग ने आदेश दिया कि बिना वीएलटीडी और पैनिक बटन के बसों को परमिट नहीं मिलेगा। अब इन्हें रिचार्ज करने के नाम पर वसूली की जा रही है।

तनवानी बताते हैं कि डिवाइस को चार्ज करने का सालाना खर्च 1200 रुपए प्लस जीएसटी यानी 2 हजार रुपए है। लेकिन डीलर सभी ऑपरेटर्स से हर साल रिचार्ज के नाम पर 4500 रुपए से लेकर 6000 रुपए तक वसूल रहे हैं। मैं इसकी कई बार शिकायत कर चुका हूं, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

 

कैसे चल रहा वसूली का नेटवर्क

बस ऑनर्स एसोसिएशन के दीपेश विजयवर्गीय बताते हैं- वीएलटी डिवाइस के नेटवर्क के लिए बीएसएनएल के सिम कार्ड का इस्तेमाल होता है। बीएसएनएल ने इसका जिम्मा सेंसुराइज्ड कंपनी को सौंपा है। परिवहन विभाग और बीएसएनल के बीच एक एग्रीमेंट हुआ है, जिसमें बीएसएनल नेटवर्क प्रोवाइड कराता है। उसकी वेंडर कंपनी सेंसुराइज्ड सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन्स देती है।

परिवहन विभाग ने 17 कंपनियों को वीएलटीडी बेचने के लिए अधिकृत किया है। ये 17 कंपनियां सेंसुराइज्ड कंपनी के पोर्टल पर जाकर वीएलटीडी को रिचार्ज करती हैं। जो बस ऑपरेटर इस डिवाइस का इस्तेमाल कर रहा है, वो इसे ऑनलाइन रिचार्ज नहीं कर सकता। उसे इन कंपनियों के जरिए ही रिचार्ज कराना पड़ता है।

विजयवर्गीय कहते हैं कि इसी का फायदा ये कंपनियां उठा रही हैं।

अब जानिए, क्या कहते हैं जिम्मेदार…

अधिकृत कंपनी के प्रतिनिधि बोले- एक्स्ट्रा चार्ज नहीं वसूल रहे

दैनिक भास्कर ने वीएलटीडी लगाने वाली अधिकृत कंपनियों में से एक रोजमार्टा के प्रतिनिधि अनुज घोष से बात की। उन्होंने कहा- परिवहन विभाग ने जितनी कंपनियों को वीएलटी डिवाइस लगाने के लिए अधिकृत किया है, वे सभी तय फॉर्मेट में ही चार्ज वसूल करती हैं।

इसकी बैलेंस शीट हर साल सरकार के साथ शेयर होती है। ऐसे में ये कहना कि ज्यादा चार्ज वसूला जा रहा है, बिल्कुल गलत है। घोष ने ये भी कहा कि बीएसएनएल के 1200 रुपए के अलावा भी कई चार्ज होते हैं, जिनकी बाकायदा बस मालिकों को रसीद दी जाती है।

बीएसएनल के अफसर ने कहा- रिचार्ज के लिए गेटवे बना रहे

…..ने बीएसएनएल के एंटरप्राइज बिजनेस के प्रिंसिपल जनरल मैनेजर अरुण कुमार से भी बात की। उन्होंने बताया- बीएसएनएल के चार्ज फिक्स हैं। हम वीएलडीटी की सर्विस के लिए 1200 रुपए प्लस जीएसटी 200 रुपए, एक साल का चार्ज करते हैं। सेंसुराइज्ड हमारी अधिकृत कंपनी है, जो सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन सर्विस देती है।

अरुण

ल को पत्र लिखा गया है कि वह गेटवे डेवलप करें। जिससे यूजर सीधे रिचार्ज कर सके। हम तो यह तक करने जा रहे हैं कि वह किसी भी कंपनी की सिम ले सकेगा।

उनसे अवैध वसूली के बारे में पूछा तो वे बोले- कोई शिकायत देगा तो कार्रवाई करेंगे।

अब जानिए, कैसे शोपीस बने पैनिक बटन

तीन साल में भी पुलिस कंट्रोल रूम से नहीं जुड़ा कमांड सेंटर

भोपाल आरटीओ में 18 करोड़ की लागत से बने स्टेट कंट्रोल कमांड सेंटर का दिसंबर 2022 में ट्रायल किया गया था। इस कंट्रोल कमांड सेंटर से यात्री वाहनों की निगरानी की जाने की योजना बनाई गई, लेकिन कमांड सेंटर बनने के समय भी यह पुलिस कंट्रोल रूम से कनेक्ट नहीं था। ट्रायल को तीन साल हो चुके हैं, ये अभी भी पुलिस कंट्रोल रूम से जुड़ नहीं पाया है।

बस ऑपरेटर एसोसिएशन के सुरेंद्र तनवानी बताते हैं- सेंटर के पुलिस कंट्रोल रूम से कनेक्ट नहीं होने के चलते एक लाख 30 हजार वाहनों में लगे पैनिक बटन शोपीस बनकर रह गए हैं। कहीं पैनिक बटन दब भी जाए तो पुलिस नहीं आती बल्कि कमांड सेंटर से रजिस्टर्ड वाहन मालिक के पास कॉल आता है।

अधिकारी पिछले तीन साल से कमांड सेंटर के जल्द शुरू हो जाने का दावा कर रहे हैं। भास्कर ने जब इस मामले में ट्रांसपोर्ट कमिश्नर विवेक शर्मा से बात की तो उन्होंने कहा- जल्द ही कमांड सेंटर को पुलिस कंट्रोल रूम से जोड़ा जाएगा। बता दें कि परिवहन विभाग को कमांड सेंटर स्थापित करने के लिए केंद्र ने निर्भया फंड से पैसा दिया है।

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MP में महिला सुरक्षा के साथ मजाक, शोपीस बने वेरिफाइड पैनिक बटन, 10 बार दबाने के बाद भी नहीं आता कोई मैसेज

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद सार्वजनिक परिवहन के वाहन टैक्सी, बस में पैनिक बटन लगाने का काम शुरू किया था. मकसद था है कि इन टैक्सी और बसों में यात्रा करने वाली महिलाएं और बच्चों को किसी भी खतरे की स्थिति में पैनिक बटन दबाते ही तत्काल मदद मिल सके. लेकिन ग्राउंड रियलिटी यह है कि जिन टैक्सी में इन्हें लगाया गया है, उनमें यह कभी काम करती हैं तो कभी नहीं. इस मामले में जब सिस्टम के भीतर बैठे लोगाें से बात की तो बेहद हास्यास्पद जवाब मिले.

panic button in texi bus women security

शोपीस बने वेरिफाइड पैनिक बटन

भोपाल। देखिए अभी ट्रायल चल रहा है, हो सकता है कि इसलिए रिस्पांस नहीं मिला….बटन दबाने के बाद मालिक के पास कॉल जाएगा, फिर वो कॉल करके ड्राइवर से पूछेगा. कम से कम 30 सेकंड दबाकर रखना पड़ेगा, तब रिस्पांस आएगा. अभी तो ट्रायल चल रहा है, गो लाइव होने के बाद रिस्पांस मिलेगा. बटन दबाने के बाद पहले हमारे पास कॉल आएगा. यह जवाब हैं भोपाल आरटीओ दफ्तर में बैठे उन कर्मचारियों के जो पैनिक बटन की मॉनीटरिंग के लिए बनाए गए सेंटर में बैठे हैं. दरअसल इनसे पैनिक बटन के काम करने को लेकर सवाल पूछे गए थे. ईटीवी भारत से कुछ महिला यात्रिओं ने शिकायत की थी कि जिन टैक्सी का वे इस्तेमाल करती हैं, उसमें लगा पैनिक बटन काम नहीं कर रहा है.

टैक्सी का मुआयना: इन शिकायतों की सच्चाई जानने के लिए ईटीवी भारत ने रेंडमली उन टैक्सी का मुआयना किया, जिनमें पैनिक बटन लगा हुआ था. 6 नंबर पर खड़ी एक टैक्सी के ड्राइवर से पूछा कि क्या आपकी टैक्सी में पैनिक बटन है तो उसने कहा कि हां लगा हुआ है. हमने उनसे गाड़ी स्टार्ट करवाकर टैक्सी में लगा पैनिक बटन दबाया और 6 नंबर से 5 नंबर स्टॉप, नूतन कॉलेज के सामने से होते हुए 6 नंबर तक यात्रा की. इस दौरान बीच में 15 मिनट तक एक जगह सुनसान रोड पर टैक्सी रोककर खड़े रहे. इस बीच में 8 से 10 बार पैनिक बटन दबाया, लेकिन सिंगल टाइम न तो पुलिस का ड्राइवर के पास फोन आया और न ही टैक्सी ऑनर के पास ही कॉल आया. ऐसे और भी टैक्सी में ट्रायल लिया, लेकिन काम नहीं किया. बता दें कि इन टैक्सी के नंबर हमारे पास मौजूद हैं, लेकिन गोपनीयता के कारण हम इसे उजागर नहीं कर रहे हैं. ड्राइवर का कहना है कि ”शिकायत के मामले सामने आते ही हमें टारगेट करके कार्रवाई की जाती है.” टैक्सी ड्राइवर ने बताया कि ”यह पैनिक बटन 16 हजार रुपए कीमत में आरटीओ द्वारा वैध किए गए वेंडर से लगवाए हैं.”

सुरक्षा के लिए नहीं, फिटनेस के लिए जरूरी: लिंक रोड नंबर 2 पर खड़ी टैक्सी के ड्राइवर से पूछा कि क्या आपकी टैक्सी में पैनिक बटन लगा है, तो उसने बताया कि अभी नहीं लगवाया. कारण बताते हुए बोला कि ”जब करवाने गए तो बोले कि फिटनेस रिन्यु होगा, तब लगाएंगे.” ड्राइवर बोला कि ”15 से 16 हजार रुपए कीमत का लग रहा है, लेकिन कभी कभार ही काम करता है. एक बार कॉल आया भी, ऊपर से हर दो साल में रिन्युल चार्ज 6500 रुपए मांग रहे हैं. एक्टिवेशन चार्ज के रूप में 1250 रुपए हर साल अलग से लगेगा.”

आरटीओ में यह स्थिति: पूरे मामले की तस्दीक करने के लिए कोकता के पास स्थित आरटीओ दफ्तर गए. यहां गाड़ियाें का फिटनेस कर रहे अफसरों से पूछा कि पैनिक बटन लगवाना है तो वह बोले कि ”बाहर चले जाइए, हमने उन्हें अधिकृत किया है.” बाहर जाने पर दो एजेंट मिले, पहले ने पैनिक बटन लगाने के रेट 14 हजार रुपए बताए. उसने कहा कि ”लगने के बाद जैसे ही बटन दबाएंगे पुलिस कंट्रोल रूम से कॉल आ जाएगा, अपडेट करके दूंगा. रसीद जीएसटी वाली नहीं मिल पाएगी.” दूसरे एजेंट शैलेंद्र शर्मा से मिले तो वह बोले कि ”13 हजार 500 रुपए में लगा दूंगा और रसीद भी दूंगा, दबाते ही कॉल आएगा.”

सेंटर वाले बोले-अभी टेस्टिंग चल रही है: आरटीओ ऑफिस के भीतर ही पैनिक बटन की मॉनीटरिंग के लिए एक सेंटर बनाया गया है. इसे स्टेट कंट्रोल एंड कमांड सेंटर नाम दिया है. चार महीने पहले मप्र में कॉमर्शियल वाहन जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट से जुड़े वाहनों में लगे पैनिक बटन का ट्रायल शुरू कर दिया गया था. जिस डिवाइस की ट्रेकिंग की जाती है, उसका नाम व्हीकल लोकेशन एंड ट्रेकिंग (VLTD) डिवाइस है. दावा है कि यहां से जिले के 46 एवं प्रदेश के करीब सवा 325 वाहनों की मॉनिटरिंग शुरू कर दी गई है. इस सेंटर को बनाने के लिए करीब 18 करोड़ खर्च भी किए गए. लेकिन जब यहां के कर्मचारियों से बात की तो अलग ही जवाब दिए. भास्कर नामक कर्मचारी ने बताया कि ”अभी टेस्टिंग चल रही है और कई बार 30 सेकंड दबाने के बाद ही रिस्पांस मिलता है.”

अफसर ने नहीं दिया जवाब: पूरे मामले को लेकर ट्रांसपोर्ट कमिश्नर संजय कुमार झा से बात करने के लिए दो बार कॉल किया. लेकिन उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया इसके बाद उन्हें टैक्स्ट और व्हाट्सएप मैसेज भेजे, लेकिन उन्होंने रिप्लाई नहीं दिया. तब विभागीय मंत्री गोविंद सिंह राजपूत से संपर्क किया. हर बार एक ही जवाब मिला मंत्री जी कार्यक्रम में हैं, जब दोबारा लगाया तो कॉल ही रिसीव नहीं किया.

 

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