भड़काऊ बयान, सपा सांसद की राणा सांगा पर विवादित टिप्पणी !
सपा सांसद रामजीलाल सुमन को यह कहीं अच्छे से आभास होना चाहिए था कि राणा सांगा को लेकर देश का जनमानस कैसे विचार रखता है। यदि उनके बयान से कुपित लोग इस निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं कि उन्होंने संकीर्ण राजनीतिक कारणों से राणा सांगा को लेकर उकसावे वाला बयान दिया तो इसके लिए उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता।
एक भड़काऊ बयान किस तरह हंगामे का कारण बन सकता है, इसका उदाहरण है समाजवादी पार्टी के सांसद रामजीलाल सुमन की ओर से राणा सांगा को लेकर की गई विवादित टिप्पणी। उन्हें इस टिप्पणी के जरिये अपने अधकचरे इतिहास ज्ञान का प्रदर्शन करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि उन्होंने यह टिप्पणी तब की, जब राज्यसभा में गृह मंत्रालय के कामकाज पर बहस हो रही थी।
लगता है वह महाराष्ट्र के अपने विधायक अबू आजमी की तरह से चर्चा में आने का बहाना खोज रहे थे। यदि ऐसा कुछ नहीं था तो फिर इसकी क्या जरूरत थी कि वह बाबर की निंदा-आलोचना पर आपत्ति जताते हुए राणा सांगा पर सवाल उठाते? इसकी जरूरत इसलिए और भी नहीं बनती थी, क्योंकि अधिकांश इतिहासकार उस बात से सहमत नहीं, जो उन्होंने बेतुके तरीके से कही। यदि इतिहास की कथित विसंगतियों का उदाहरण देने के लिए वैसा भोंडा तरीका अपनाया जाएगा, जैसा उन्होंने अपनाया तो इसे शरारत ही अधिक कहा जाएगा। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि उन्होंने वोट बैंक की सस्ती राजनीति के चलते राणा सांगा पर भड़काऊ बयान दिया। एक ओर वह यह मानते हैं कि इस देश में कोई भी बाबर की सराहना नहीं करता और दूसरी ओर उसकी निंदा पर उन्हें कष्ट भी होता है। आखिर क्यों?
रामजीलाल सुमन को यह कहीं अच्छे से आभास होना चाहिए था कि राणा सांगा को लेकर देश का जनमानस कैसे विचार रखता है। यदि उनके बयान से कुपित लोग इस निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं कि उन्होंने संकीर्ण राजनीतिक कारणों से राणा सांगा को लेकर उकसावे वाला बयान दिया तो इसके लिए उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता। निःसंदेह इसका यह भी अर्थ नहीं कि उनके बयान से कुपित लोग उनके घर धावा बोल देते। लोकतंत्र में इस तरह के कृत्य के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता।
किसी भड़काऊ बयान का विरोध कानून के दायरे में रहकर ही किया जाना चाहिए। इसकी इजाजत किसी को नहीं कि वह अपनी भावनाएं आहत होने के नाम पर हिंसा और तोड़फोड़ का सहारा ले। दुर्भाग्य से अब ऐसा आए दिन होने लगा है। इस प्रवृत्ति पर लगाम लगानी होगी, लेकिन इसी के साथ नेताओं को किसी भी विषय पर विचार व्यक्त करते समय सोच-समझकर बोलना सीखना होगा। ऐसा इसलिए किया जाना चाहिए, क्योंकि नेताओं के बेतुके और उकसावे वाले बयानों के चलते सार्वजनिक विमर्श दूषित हो रहा है। विडंबना यह है कि कई बार ऐसे बयान जानबूझकर दिए जाते हैं। इससे बुरी बात और कोई नहीं हो सकती कि समाज को विभाजित करने वाले भड़काऊ बयान जानबूझकर दिए जाएं। यह विचित्र है कि रामजीलाल सुमन यह तो कह रहे हैं कि उनका इरादा किसी का अपमान करने का नहीं था, लेकिन उन्हें अपने कहे पर कोई अफसोस भी नहीं।