सरकार ने कब-कब बदले सुप्रीम कोर्ट के फैसले ?

जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए सरकार लाई थी कानून, इतिहास में दर्ज हैं ये मामले

इतिहास में ऐसे कई मामले दर्ज हैं जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए सरकार नया कानून लेकर आई. इसमें सबसे ताजा मामला दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़ा हुआ है.

नए वक्फ कानून को लेकर देश में बवाल मचा हुआ है. मुस्लिम संगठन इस कानून का विरोध कर रहे हैं और प्रदर्शन जारी है. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है, जिस पर जल्द ही सुनवाई होने की संभावना है. ऐसे में सवाल है कि अगर सुप्रीम कोर्ट नए वक्फ कानून को अवैध घोषित करते हुए रद्द कर देता है तो क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटा जा सकता है? आज हम आपको इतिहास में दर्ज उन मामलों से रूबरू कराएंगे, जिसमें सरकार ने अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक पलट डाला. आइए जानते हैं ऐसे मामलों के बारे में… 

आरक्षण का मामला

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अध्यादेश लाकर पलटने का पहला मामला 1961 में सामने आया था. सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के एक मामले में फैसला दिया था कि शैक्षणिक संस्थानों में उम्मीदवार की धर्म या जाति के आधार पर सरकार सीटें अरक्षित नहीं रख सकती है. इस फैसले के खिलाफ 1961 में संविधान में संशोधन किया गया था. अनुच्छेद 15 में क्लॉज (4) जोड़ा गया था, जिसके तहत सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों में पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों के लिए सीटें आरक्षित रखने का अधिकार दिया था. 

इंदिरा गांधी केस

संविधान संशोधन के जरिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने का दूसरा बड़ा मामला भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जुड़ा है. 1971 में इंदिरा गांधी के रायबरेली से निर्वाचन को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने अपने फैसले में इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली का दोषी पाया था और उनका निर्वाचन रद्द कर दिया गया था. इस फैसले के खिलाफ सरकार 39वां संशोधन लेकर आई और अनुच्छेद 392A जोड़ा गया, जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा स्पीकर के चुनाव को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है. बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां 39वें संशोधन को अवैध करार दिया गया. 

शाह बानो प्रकरण

इंदौर की रहने वाली शाह बानो को उनके पति मुहम्मद अली खान ने तलाक दे दिया था, जिसके बाद शाह बानो गुजारा भत्ता की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची. 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं गुजारा भत्ता पाने की हकदार हैं. 1986 में सरकार ने मुस्लिम वुमेन एक्टर 1986 पेश किया. इसके तहत कहा गया कि मुस्लिम महिलाएं गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं हैं. तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं इद्दत के तीन महीने के अवधि पूरी होने तक की गुजारा भत्ता पाने की हकदार हैं. 

दिल्ली प्रशासनिक अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का मामला

दिल्ली सरकार की शक्तियों के बंटवारे से जुड़ा यह मामला काफी चर्चा में रहा था. 11 मई, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दिल्ली में नौकरशाही पर दिल्ली सरकार का अधिकार है और सरकार अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सरकार अध्यादेश लेकर आई, जिसमें दिल्ली के अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार उपराज्यपाल को दे दिया गया. 

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