ग्वालियर पूर्व उपचुनाव: दोनों दलबदलू चेहरे आमने-सामने, जनता कंफ्यूज़!

ग्वालियर पूर्व सीट (Gwalior East) पर बीजेपी (BJP) से मुन्नालाल गोयल चुनाव लड़ रहे हैं. मुन्नालाल इससे पहले कांग्रेस के टिकट पर 2018 का विधानसभा चुनाव में जीतकर आए थे. फिलहाल पार्टी बदलकर चुनावी मैदान में उतरी टीम सिंधिया में वो भी शामिल हैं, जिनपर विरोधी पैसा लेकर पार्टी बदलने और कांग्रेस से गद्दारी करने का आरोप लगाते हैं. हालांकि आरोप लगाने वाले भी दूध के धुले नहीं हैं. कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे सतीश सिकरवार खुद बीजेपी का दामन छोड़ हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए हैं और अब बिना अपने गिरेबां में झांके दलबदलुओं को सबक सिखाने जैसे बयान देते हैं.

बीजेपी प्रत्याशी के पॉज़िटिव पहलुओं की बात करें तो मुन्नालाल गोयल साफ छवि के नेता रहे हैं. विरोधी कई तरह के आरोप लगाते हैं, लेकिन स्थानीय लोग उन्हें सीधा और सज्जन मानते हैं. ऐसा व्यक्ति जिसे कभी भी वो जाकर खरी खोटी सुना सकें. एक स्थानीय शख्स ने कहा कि काम तो किसी पार्टी ने नहीं किया. मुन्नालाल रहे या कोई और क्या फर्क पडता है. सीधा व्यक्ति हो तो कम से कम सुनता तो है.

विकास कार्यों पर क्या है मुन्नालाल दलील?

हालांकि सीएम शिवराज सिंह के दौरे के बाद कई विकासकार्यों का शिलान्यास हुआ है. मुन्नालाल अपने प्रचार में कह रहे हैं कि कमलनाथ की वजह से विकास नहीं हुआ, अब विकास होगा. सबसे खास बात ये है कि ग्वालियर पूर्व में वैश्य समुदाय के करीब 40 हजार वोटर्स हैं, मुन्नालाल गोयल मानते हैं कि उनकी गिनती 40 हज़ार से शुरू होगी, क्योंकि वो खुद इसी वर्ग के हैं. जातिगत समीकरणों की बात करें तो राजपूत, ब्राह्मण या दलित आपस में एक दूसरे से लड़ते हैं. वैश्य समुदाय तीनों के लिहाज से तटस्थ रहने वाला वर्ग है.

सतीश सिकरवार का उन्हीं के समाज में विरोध

वहीं कांग्रेस से सतीश सिकरवार चुनाव लड़ रहे हैं. सतीश सिकरवार खुद बीजेपी का दामन छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं. सतीश फिलहाल मुन्नालाल के बीजेपी के कार्यकर्ताओं की मुन्नालाल के प्रति नाराज़गी के भरोसे हैं. सिकरवार खुद के साथ धोखे और उपेक्षा को चुनाव में मुद्दा बना सकते हैं. हालांकि पार्टी बदलने के बाद सतीश सिकरवार का उन्हीं के समाज में विरोध शुरू हो गया है. वहीं दिलचस्प बात ये है कि कई कांग्रेस के कार्यकर्ता भी नहीं चाहते कि कोई बाहरी जीते. क्योंकि कांग्रेस के पास और भी विकल्प थे, लेकिन पार्टी ने एक बाहरी व्यक्ति को टिकट दिया. सिकरवार को बीजेपी की अंदरूनी गुटबाज़ी का तो फायदा मिलेगा ही साथ ही कांग्रेस को उम्मीद है कि 28 हज़ार राजपूत वोट भी उनके खाते में जाएगा.

1- अशोक सिंह (दिग्गी गुट)
2- रामसेवक बाबूजी (दिग्गी गुट)
3- वासुदेव शर्मा (कमलनाथ गुट)
4- नीतेंद्र सिंह (पूर्व ज़िलाध्यक्ष दर्शन सिंह के बेटे)

जैसे विकल्प होने के बाद भी पार्टी ने बाहरी पर भरोसा किया है.

बीएसपी ने महेश बघेल को टिकट दिया है. जो एक फिक्स वोट ले जाएंगे. गौरतलब है कि 2018 में यहां बीएसपी का वोट खिसका और कांग्रेस की झोली में गया. बीएसपी ने 2008 में 15 हज़ार, 2013 में 17 हज़ार वोट हासिल किए थे, लेकिन 2018 में 5 हज़ार वोट ही यहां से ले सकी. जानकार बताते हैं कि माई के लाल औऱ एससी एसटी एक्ट संशोधन का असर रहा और कई वर्गों खासकर एससी औऱ एसटी वर्ग ने बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस को जिताया.

पिछले चुनाव में क्या हुआ ?

2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से मुन्नालाल गोयल ने बीजेपी के सतीश सिकरवार को 17819 वोटों से हराया था. बीएसपी को 5 हज़ार वोट मिले.

2013 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की माया सिंह ने कांग्रेस के मुन्नालाल गोयल को 1147 वोटों से हराया था. बीएसपी को 17 हज़ार वोट मिले.

2008 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के अनूप मिश्रा ने कांग्रेस के मुन्नालाल गोयल को करीब 1500 वोटों से हराया था. बीएसपी को 14900 यानि करीब 15 हज़ार वोट मिले.

03-10-2020 की स्थिति में

मतदाताओं की संख्या – 312946
पुरुष – 167858
महिला- 145075

वोटर्स की बात करें तो यहां ब्राह्मण वर्ग के करीब 30 हजार वोटर हैं, वैश्य समुदाय के करीब 40 हजार वोटर हैं. इनके अलावा ग्वालियर पूर्व में सिकरवार और तोमर जाति के करीब 28 हजार वोटर हैं, जिनका वोट बंटा हुआ है. सिंधी, पंजाबी और अल्पसंख्यक वर्ग मिलाकर करीब 40 हज़ार वोट होते हैं. ग्वालियर पूर्व विधानसभा में कई खेतिहर और मजदूर भी आते हैं, जिनमें अधिकतर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग शामिल है. यहां ये दोनों वर्ग मिलकर लगभग 80 हजार से ज्यादा वोटर हैं, लिहाज़ा बीएसपी का भी अच्छा खासा दबदबा है. ग्लावियर पूर्व का समीकरण इसीलिए खास है क्योंकि यहां एक वर्ग का वर्चस्व नहीं है. सारी जातियां और वर्गों का मिश्रण इस विधानसभा के समीकरण को रोचक बनाता है.

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