प्रतिष्ठा की लड़ाई बना उपचुनाव, दांव पर सिंधिया और कमलनाथ की साख

मध्यप्रदेश उपचुनाव एक तरह से प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गया है. 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में तीन चेहरे ऐसे हैं जिनकी अग्निपरीक्षा होने जा रही है. एक तरफ कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं तो दूसरी ओर हाल में मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने वाले कमलनाथ. इन दोनों के बीच शिवराज सिंह की साख भी अहम है क्योंकि उन्हें लोगों तक संदेश पहुंचाना है कि पहले भी जनादेश उनके साथ था और अब भी है.

साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जिताने में ज्योतिरादित्य सिंधिया का अहम रोल था तो अभी हाल में कांग्रेस सरकार गिराने में भी उनकी ही महत्वपूर्ण भूमिका थी. कांग्रेस छोड़कर 22 विधायकों ने बीजेपी का दामन थामा जिनमें 19 ने ज्योतिरादित्य सिंधिया का समर्थन किया था. बाद में और तीन विधायक उनके समर्थन में बीजेपी से जुड़ गए. देखते-देखते कमलनाथ की सरकार धराशायी हो गई. अब 28 सीटों पर जब उपचुनाव हो रहे हैं तो सबका सवाल यही है कि यह किसकी अग्निपरीक्षा है. जवाब सीधा है कि जो लोग सिंधिया के साथ बीजेपी में आए उन्हें अपनी सीट जीतकर सिंधिया का सम्मान रखना होगा. बीजेपी ने उन सभी नेताओं को टिकट दिया है जिन्होंने कांग्रेस छोड़ी थी.

जिन 28 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं उनमें 27 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है. सिर्फ एक सीट आगर (सुरक्षित) से मनोज ऊंटवाल ने दर्ज की थी. इस लिहाज से कांग्रेस अगर इन सीटों को बचा लेती है तो कमलनाथ की साख दोबारा बुलंदियों पर होगी और कांग्रेस विधायकों की संख्या सरकार बनाने की स्थिति में होगी. दूसरी ओर बीजेपी अपनी संख्या 107 से 9 और बढ़ाना चाहती है ताकि सरकार में बनी रहे. 230 सदस्यों की विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 116 है. इस हिसाब से शिवराज सिंह चौहान के लिए भी यह उपचुनाव प्रतिष्ठा की लड़ाई है कि वे कितने विधायकों को अपने 7 महीने के कार्यकाल पर जिता लेते हैं.

 

ग्वालियर-चंबल क्षेत्र को सिंधिया का गढ़ माना जाता है जहां 16 सीटों पर उपचुनाव है. बीजेपी ने यहां जीत के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है और सिंधिया दिन-रात प्रचार में लगे हुए हैं. पूरे चंबल इलाके में 34 सीटें हैं जिनमें पिछले चुनाव में 26 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. यह हाल तब था जब सिंधिया कांग्रेस के साथ थे लेकिन इस बार बीजेपी खेमे में हैं. इस स्थिति में कमलनाथ पर पूरा दबाव है कि वे अपने स्तर पर सिंधिया की गैरमौजूदगी में चंबल की कितनी सीटें निकाल पाते हैं. कांग्रेस और कमलनान ने चंबल सहित पूरे मध्यप्रदेश में वोटर्स तक अपनी बात पहुंचाई है कि जिन लोगों ने जनादेश के साथ धोखा किया, जो लोग कांग्रेस के वोट पर जीत कर आए और आज बीजेपी के साथ हैं, उन्हें उपचुनाव में नकार देना चाहिए. कांग्रेस की यह अपील कितनी कारगर साबित होती है, यह देखने वाली बात होगी. इसके साथ ही कांग्रेस ने कृषि कानून के मुद्दे पर भी बीजेपी को घेरा है क्योंकि मध्यप्रदेश का उपचुनाव किसानों के मुद्दे पर प्रमुखता से लड़ा जा रहा है.

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