इंदौर। इस शहर से जुड़ा मेरा अनुभव अनोखा है। बचपन तो रतलाम में बीता, किंतु बीते कई वर्षों से इंदौर ही अपना शहर बन गया है। बचपन में मुझे मुंबई जैसे बड़े शहर को लेकर बड़ा उत्साह था। मगर जब भी इंदौर आना होता, तो ये शहर मेरे लिए मुंबई से कम नहीं होता था। यहां आकर खरीदी करना, अपनी लपलपाती जीभ की लालसा को शांत करना, एबी रोड जैसी बड़ी और चौड़ी सड़क पर वाहनों का आवागमन देखना भी एक सुखद अनुभव होता था। आज पोहा, जलेबी, इंदौरी खाना, सराफा, छप्पन दुकान, राजवाड़ा, लालबाग, स्वच्छ इंदौर, इन्वेस्टर्स समिट इंदौर की पहचान बन चुके हैं।

इंदौर की तरह देश का लगभग हर बड़ा शहर विकास के पथ पर अग्रसर है। फिर ऐसी क्या बात है, जो इंदौर को सबसे अलग बनाती है। पिछले दो दशकों में आए परिवर्तन से ऐसी दो बातें सामने आती हैं, जो इंदौर को भारत के अन्य शहरों से अलग बनाती हैं। वो दो बातें हैं, अपनापन और अपना लेने वाला मन। इस शहर के स्वभाव और आतिथ्य सत्कार में जोश और गरमाहट है। शहर में आनेवाले विदेशी अतिथि यहां के आमजन के लिए कौतूहल का विषय नहीं होते, बल्कि देवता तुल्य होते हैं। यह शहर देशी-विदेशी अतिथियों को अपने रंग में रंग लेता है। अपरिचित व्यक्ति भी जल्द ही शहर के अपनेपन से सराबोर हो जाता है। इंदौरियों की अपनत्व से भरी बोली सबके हृदय में स्थान और सबको अपना बना लेती है।

इस शहर की अपनी एक संस्कृति है। मगर इसने अन्य को भी सहर्ष स्वीकारा है। इस शहर ने विकास को अपनाया। जल्द ही शहर में मेट्रो दौड़ने वाली है। सुपर कारिडोर पर आइटी कंपनियां अपनी जड़ें बना रही हैं। चटोरी जुबान के लिए पिज्जा-बर्गर की दुकान और अलग-अलग प्रांत विशेष के रेस्टोरेंट खुल गए हैं। नए-नए माल्स से शहर सुसज्जित है। शहर में इन्वेस्टर्स समिट का भव्य आयोजन हुआ, ये सब इस शहर के विकास की गाथा कह रहे हैं। किंतु इस शहर ने अपनी जड़ों को सशक्त बनाए रखा है।

आज भी यहां रंगपंचमी पर गेर निकलती है, जो वर्षों पुरानी परंपरा है। पोहे-जलेबी, समोसे-कचौरी, इनका स्वाद लिए बिना कोई इंदौरी जुबान रह नहीं सकती। अभी भी राजवाड़ा में उतनी ही भीड़ रहती है। दिन में सराफा में सोना-चांदी की चमक बिखरी रहती है तो रात में स्वाद के शौकीनों से यह बाजार गुलजार रहता है। यहां एक जगह इतने स्वाद मिल जाते हैं कि खाते-खाते थक जाओ। यही हाल छप्पन दुकान का भी है। यहां भी देर शाम तक स्वाद की महफिल जमती है।

इंदौर के इतिहास के बारे में घर में बड़ों से और दूसरों से काफी सुना और पढ़ा भी है। यह शहर एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत समेटे हुए है। यह शहर होलकर शासकों के पूर्व से समृद्ध रहा है और आज तक इसने अनेक दौर देखे लेकिन अपनी मूल संस्कृति को बिसरने नहीं दिया। इस शहर ने सबको अपनाया है। यह शहर सबको अपना भी लेता है और सबको अपना बना भी लेता है। यही इस शहर की असल पहचान है और इस वजह से ये एक अनूठा शहर है। इसलिए तो यहां के लोग अक्सर कहते हुए पाए जाते हैं, अपन इंदौरी हैं भिया। (लेखिका, कवयित्री कहानीकार हैं।)