दोस्ती या कुछ और; सिंधिया पर हमला बोलने से क्यों कतरा रहे सचिन पायलट?
ग्वालियर: मध्य प्रदेश का रण जीतने के लिए बीजेपी और कांग्रेस ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है. बीजेपी की तरफ से केंद्रीय मंत्री सहित पार्टी के बड़े चेहरे जनता के बीच जाकर वोट मांग रहे हैं तो वहीं कांग्रेस भी बड़े चेहरों को लेकर जनता का मूड अपनी ओर बनाने की कोशिश कर रही है. आज कांग्रेस के स्टार प्रचारक सचिन पायलट मुरैना और शिवपुरी पहुंचे. यहां उन्होंने शिवराज सरकार पर तो हमला बोला लेकिन सिंधिया का नाम लेने से बचते रहे. वो चुप रहे. तो आखिर क्या हैं पायलट की सिंधिया पर चुप्पी के मायने?
सिंधिया को छोड़ा, शिवराज पर बरसे
शिवपुरी जिले की पोहरी और करैरा विधानसभा के नरवर और सतनवाड़ा में सचिन पायलट और आचार्य प्रमोद कृष्णनन कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में जनसभा को संबोधित करने पहुंचे थे. आचार्य प्रमोद कृष्णनन ने तो फिर भी बीजेपी और शिवराज पर जमकर निशाना साधा, लेकिन सचिन पायलट ने सिंधिया का नाम नहीं लिया. बल्कि शिवराज सरकार को घेरा. उन्होंने कहा शिवराज सरकार के दौरान मध्य प्रदेश में बहुत सारे घोटाले हुए हैं. प्रदेश के सबसे बड़े व्यापमं घोटाले में किसी नेता को सजा तक नहीं मिली.
बीजेपी ने कहा दोस्ती निभा रहे सचिन पायलट
सिंधिया पर सचिन पायलट की चुप्पी पर बीजेपी ने भी चुटकी ली. बीजेपी नेता हितेश वाजपेई ने कहा कि सचिन पायलट उपचुनाव में प्रचार को आएंगे और वह सिंधिया से अपनी दोस्ती निभाएंगे भी. यह सब बहुत अच्छे से जानते हैं कि सचिन पायलट और सिंधिया बहुत अच्छे दोस्त हैं. सचिन पायलट गुर्जर समाज में अपना बहुत अच्छा होल्ड रखते हैं. लेकिन कांग्रेस ने राजस्थान में उनके साथ अच्छा नहीं किया. कांग्रेस ने राजस्थान में सचिन पायलट का चेहरा दिखाकर सत्ता पाई और गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया.
सचिन पायलट सिंधिया के खिलाफ नहीं बोल रहे हैं. इसके पीछे ज्यादा तो कुछ लेकिन राजनीति से ऊपर दोस्ती ही है. सिंधिया और सचिन पायलट की दोस्ती किसी से छुपी नहीं है. दोनों लंबे समय से एक ही पार्टी के सदस्य रहे हैं. दोनों को विरासत में एक मजबूत राजनीति का आधार मिला. कांग्रेस में राहुल गांधी के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट युवा चेहरों के तौर पर पहचाने जाते थे. सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद सचिन के भी कांग्रेस छोड़ने के कयास लग रहे थे. फिलहाल सबकुछ ठीक लग रहा है, लेकिन सचिन और सिंधिया की दोस्ती पार्टी अलग होने पर भी बनी हुई है.
दुश्मन जमाना, सलामत दोस्ताना
कहा जाता है कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता, दिल मिले या न मिलें, लेकिन राजनीति में हाथ मिलाते रहना चाहिए. कुछ ही तरह सिंधिया और सचिन पायलट की दोस्ती की कहानी है. सचिन पायलट की जब अशोक गहलोत से तल्खी बढ़ी तो उन्होंने कांग्रेस के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था. इस दौरान सिंधिया से उनकी गुफ्तगूं भी चल रही थी. राजनीतिक पंडितों ने तो यहां तक कह दिया था पायलट बीजेपी ज्वॉइन करने वाले हैं.
कांग्रेस ने पायलट को ग्वालियर-चंबल इलाके में प्रचार के लिए खास रणनीति के तहत भेजा है. यह क्षेत्र सिंधिया का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है और कांग्रेस लगातार सिंधिया पर हमले बोले जा रही है, इसलिए पार्टी के नेता इस बात की उम्मीद कर रहे थे कि पायलट भी सिंधिया पर हमला बोलेंगे, मगर मंगलवार को तीन सभाओं में पायलट ने अपने पुराने दोस्त सिंधिया का जिक्र तक नहीं किया.
जनता भाजपा को सबक सिखाए
पायलट ने शिवपुरी जिले के पोहरी और करैरा में जनसभा की, तो वहीं मुरैना के जौरा विधानसभा में भी वह कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थन में जनसभा करने पहुंचे, मगर इन तीनों ही जनसभाओं में पायलट ने भाजपा पर पिछले दरवाजे से प्रदेश में सरकार बनाने का आरोप लगाया, साथ ही भाजपा को सबक सिखाने की अपील भी की.