मध्य प्रदेश में शराबबंदी पर केवल सियासत, हकीकत ये कि नशाबंदी को लेकर सरकार गंभीर नहीं

सरकार को हर साल करोड़ों रुपयों का राजस्व शराब के जरिए मिलता है. लेकिन इस राजस्व का एक चौथाई भी सरकार अपने नशा मुक्ति बजट पर नहीं खर्च करती.

मध्य प्रदेश में शराबबंदी को लेकर सियासत जोरों पर है. प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने पूरे प्रदेश में नशामुक्ति अभियान चलाने की घोषणा कर दी है. इस घोषणा के बाद प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने खुद सार्वजनिक मंच से प्रदेश की जनता से इस मुहिम से जुड़ने की अपील की है. तो वहीं विपक्ष भी उमा के इस मास्टर स्ट्रोक का मुरीद हो गया है और प्रदेश में शराबबंदी हो, इसको लेकर सरकार पर दबाव बना रहा है.लेकिन सवाल यह है कि आखिर क्या सरकार सच में चाहती है कि प्रदेश में शराब बंद हो?

दरअसल मध्य प्रदेश सरकार के पास पेट्रोल-डीजल और शराब, ये दो ही राजस्व के सबसे बड़े सोर्स हैं. सरकार को हर साल शराब से करोड़ों रुपये का राजस्व मिलता है. और यही बड़ा कारण है कि मध्य प्रदेश सरकार शराब बंदी नहीं करना चाहती. तभी तो सरकार द्वारा नशाबंदी कार्यक्रम को दिए जाना वाले बजट के आकंडे कुछ खास नहीं है. नशां बंदी कार्यक्रम को लेकर सरकार हर साल कितना बजट देती है इसकी जानकारी सरकारी वेबसाइट पर ही मौजूद है

नशाबंदी कार्यक्रम को हर साल मिलने वाला बजट

साल 2014-15 में नशा बंदी कार्यक्रम को सरकार ने दिया मात्र 3 करोड़ 75 लाख रुपए का बजट
साल 2015-16 में नशा बंदी कार्यक्रम को सरकार ने दिया मात्र 3 करोड़ 75 लाख रुपए का बजट
साल 2016-17 में नशा बंदी कार्यक्रम को सरकार ने दिया मात्र 4 करोड़ रुपए का बजट
साल 2017-18 में नशा बंदी कार्यक्रम को सरकार ने दिया मात्र 10 करोड़ रुपए का बजट
साल 2018-19 में नशा बंदी कार्यक्रम को सरकार ने दिया मात्र 11 करोड़ रुपए का बजट

शराब बंदी कार्यक्रम को मिलने वाला बजट ने तस्वीर साफ कर दी है कि सरकार शराब से मिलने वाले राजस्व के लिए हर साल लक्ष्य तय करती है लेकिन नशा रोकने के लिए कभी लक्ष्य तय नहीं किया गया.

सरकार का शराब की दुकानों को लेकर तर्क

प्रदेश में बढते अपराधों के पीछे नशा एक मुख्य कारण उभरकर सामने आता रहा है, लेकिन जब सरकार से इस बारे में पूछा जाता है तो सरकार दूसरे राज्यों के आंकडों को हथियार बनाकर पेश कर देती है.सरकार का तर्क रहता है कि मध्य प्रदेश में दूसरे राज्यों की तुलना में शराब दुकानों की सख्यां बेहद कम है. मध्य प्रदेश में 1 लाख की आबादी पर केवल 4 शराब की दुकाने हैं. जबकि पड़ोसी राज्य राजस्थान में 1लाख की आबादी पर 17 दुकाने है. महाराष्ट्र में 1लाख की आबादी पर 21 दुकाने हैं और यूपी में 1लाख की आबादी 12 दुकाने है.

सरकार हर साल नशा मुक्ति बजट तो रखती है लेकिन खर्च नहीं करती

सरकार हर साल नशा मुक्ति के लिए बजट तो रखती है लेकिन यह बजट पूरे साल बस रखा ही रह जाता है. विभाग यह राशि खर्च ही नहीं कर पाते हैं.साल 2018-19 में नशा मुक्ति के लिए सरकार ने 11 करोड़ के बजट का प्रावधान किया था लेकिन मात्र दो करोड़ रु ही खर्च किये गए, साल 2019-20 में सरकार ने 2 करोड़ 72 लाख के बजट का प्रावधान किया था लेकिन 1 करोड़ 9 लाख रु ही खर्च किये गए.

सरकार को हर साल करोड़ों रुपयों का राजस्व शराब के जरिए मिलता है. लेकिन इस राजस्व का एक चौथाई भी सरकार अपने नशा मुक्ति बजट पर नहीं खर्च करती.

हर साल सरकार को शराब राजस्व से मिलता है इतना पैसा

साल 2020-21 में शराब से प्रदेश सरकार को 15000 करोड़ का राजस्व मिला था
साल 2019-20 में शराब से प्रदेश सरकार को 10773.29 करोड़ का राजस्व सरकार मिला था
साल 2018-19 में शराब से प्रदेश सरकार को 9506.98 करोड़ का राजस्व सरकार मिला था
साल 2017-18 में शराब से प्रदेश सरकार को 8233.38 करोड़ का राजस्व सरकार मिला था
साल 2016-17 में शराब से प्रदेश सरकार को 7519.42 करोड़ का राजस्व सरकार मिला था
साल 2015-16 में शराब से प्रदेश सरकार को 7926.29 करोड़ का राजस्व सरकार मिला था

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