प्रकाश आंबेडकर ने ट्वीट कर आपत्ति जताई, कहा-आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ये सवाल कैसे कर सकता है?
मराठा आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर महाराष्ट्र के वंचित बहुजन आघाडी के नेता प्रकाश आंबेडकर ने ट्वीट किया है.
मराठा आरक्षण के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने दो अहम सवाल रखे. पहला सवाल ये कि आखिर कितनी पीढ़ियों तक आरक्षण दिया जा सकता है? और दूसरा सवाल यह कि आरक्षण की सीमा अगर 50 प्रतिशत से ज्यादा कर दी जाए तो असमानता पैदा नहीं होगी? सुप्रीम कोर्ट के इन सवालों पर महाराष्ट्र के वंचित बहुजन आघाडी के नेता प्रकाश आंबेडकर ने आश्चर्य व्यक्त किया है. उन्होंने ट्वीट करके ये पूछा है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट इस तरह के सवाल कैसे कर सकता है?
दरअसल, साल 2018 में महाराष्ट्र में भाजपा सरकार ने गायकवाड़ कमीशन के सुझाव पर मराठों को पिछड़ा मान लिया और 16 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा कर दी. हाईकोर्ट ने आरक्षण घटा कर नौकरी में 13 और शिक्षा में आरक्षण 12 प्रतिशत कर दिया. इस निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई. उच्चतम न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी. रोक की एक अहम वजह 1992 के इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट का एक निर्णय था, जिसमें आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत को पार नहीं कर सकती है. जबकि पहले से ही राज्य में 50 प्रतिशत तक आरक्षण की व्यवस्था है. अब मराठा आरक्षण दिया जाए तो ये सीमा 50 प्रतिशत के पार कर रही है
How can the Supreme Court ask questions like how long reservation will remain? It should stick to pronouncing judgments rather than questioning affirmative action / policy of established system.
— Prakash Ambedkar (@Prksh_Ambedkar) March 20, 2021
50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण की मांग का तर्क
महाराष्ट्र सरकार का पक्ष रखते हुए वकील मुकुल रोहतगी ने शुक्रवार को न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधानपीठ से कहा कि अब इस मामले पर पुनर्विचार करने की जरूरत है. आरक्षण की सीमा तय करने का अधिकार राज्यों को दे दिया जाना चाहिए. उन्होंने आर्थिक आधार पर आरक्षण का मुद्दा भी उठाते हुए कहा कि EWS को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का केंद्र सरकार का फैसला भी 50 प्रतिशत की सीमा को पार करता है.
कितनी पीढ़ियों तक आरक्षण दिया जाए?
कोर्ट के इस सवाल पर कि इतने सालों में कोई विकास ही नहीं हुआ? पि छड़े अभी तक वहीं के वहीं हैं? आखिर सरकारें जो इतनी कल्याणकारी योजनाएं चला रही हैं उनका कोई फायदा हुआ है कि नहीं? कोर्ट ने यह भी कहा कि मंडल कमीशन से जुड़े फैसले की समीक्षा करने का एक उद्देश्य यह भी है कि जो पिछड़ेपन के दायरे से बाहर निकल चुके हैं उन्हें आरक्षण से बाहर भी किया जाए.
इसका जवाब देते हुए मुकुल रोहतगी ने कहा कि विकास हुआ है तो आबादी भी बढ़ी है. आबादी बढ़ी है, तो पिछड़े भी बढ़े हैं, नए पिछड़ों को शामिल करने की भी जरूरत है. उन्होंने कहा कि इंदिरा साहनी केस का जजमेंट एकमत से ना होकर बहुमत से हुआ था. मंडल कमीशन की सिफारिश में भी यह कहा गया था कि 20 सालों बाद इस पर पुनर्विचार की जरूरत है. मंडल कमीशन की सिफारिश को लागू हुए 31 साल से ज्यादा हो गया है. इसलिए अब इस पर पुनर्विचार की जरूरत है. आज की बदली परिस्थितियों को देखते हुए 50 प्रतिशत की सीमा को कायम रखना उचित नहीं है.
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की सोच
इस बारे में अगर हम भारत रत्न डॉ. भीम राव आंबेडकर के विचारों पर गौर करें तो आरक्षण के माध्यम से वे वंचित लोगों के लिए अवसर मुहैया करवाने की बात कर रहे थे. इसलिए संविधान के मूल अधिकारों में अवसरों की समानता के सिद्धांतों को स्वीकार करते हुए भी उन्होंने आरक्षण के रूप में विशेष अधिकारों का प्रावधान तो किया लेकिन उन्हीं के विचारों पर अगर हम गौर करें तो उनका कहना था कि आरक्षण सहारा बने, बैसाखी नहीं.
इसलिए उन्होंने खुद यह स्पष्ट किया था कि आरक्षण स्थायी व्यवस्था नहीं है. उन्होंने कहा था कि 10 साल में यह समीक्षा हो कि जिन्हें आरक्षण दिया गया, उनकी स्थिति में कोई सुधार हुआ या नहीं. इसके बाद से यही होता रहा है कि जो आरक्षण के विरोधी हैं वो कहा करते हैं कि बाबा साहब ने स्थायी व्यवस्था नहीं की थी और जो आरक्षण व्यवस्था के समर्थक हैं वे कहा करते हैं कि बाबा साहब का मतलब था कि स्थितियों में सुधार होने के बाद ही आरक्षण हटाया जाए. स्थितियों में अपेक्षाओं के अनुसार सुधार नहीं हुआ है. फिलहाल इन तमाम पक्षों पर सुप्रीम कोर्ट विचार कर रही है.