UP का गांव सैदपुर जिसने 9600 दिए फौजी:शौर्य गाथाओं की जननी है सैदपुर गांव की माटी, खुद इंदिरा गांधी यहां शहीद के अस्थि कलश लेकरआईं थीं

आज देश कारगिल विजय दिवस मना रहा है। कारगिल दिवस पर हम बात कर रहे हैं UP के ऐसे गांव की जिसने आजादी के बाद इंडियन आर्मी को अभी तक 9600 जवान दिए हैं। यह गांव है वेस्ट यूपी का सैदपुर। जिसे पूरे देश मे फौजियों के गांव से जाना जाता है। प्रथम विश्व युद्ध से लेकर कारगिल युद्ध तक यहां के जवानों ने शहादत देकर अपने गांव की माटी का नाम रोशन किया है।

बुलन्दशहर जिले का गांव सैदपुर, जिला मुख्यालय से 30 KM दूर है। जबकि देश की राजधानी दिल्ली से गांव की दूरी 90 KM है। 5 वर्ग किमी में बसे सैदपुर गांव की जनसंख्या 21000 है। गांव की 82 प्रतिशत आबादी जाट है, जबकि 18 प्रतिशत में दलित, मुस्लिम व अन्य बिरादरी हैं। जाट बिरादरी के गांव सैदपुर में 80 प्रतिशत जाटों का गौत्र सिरोही है। इस गांव से निकले सिरोही वेस्ट यूपी के अलग अलग जिलों के अलावा दिल्ली में भी बस गए। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार गांव में आर्मी से सेवानिवृत्त 2450 जवानों की पेंशन आ रहीं हैं। गांव में 380 विधवा पेंशन हैं। गांव के 1100 जवान मौजूद समय मे आर्मी में हैं। आर्मी के अलावा 550 लोग यूपी पुलिस, दिल्ली पुलिस, पैरा मिलेट्री फोर्स व दूसरी सरकारी सेवाओं में कार्यरत हैं।

बुलंदशहर का सैदपुर गांव जहां की गलियां देती है देश पर मर मिटने का पैगाम
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अस्थि कलश लेकर खुद गांव में आईं थीं इंदिरा गांधी

सिरोही एसोसिएशन में महासचिव रहे धर्मपाल सिंह सिरोही बताते हैं कि सैदपुर गांव में पूर्व PM पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, चौधरी चरण सिंह के अलावा मुलायम सिंह यादव भी सैदपुर गांव में आ चुके हैं। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने उत्तरप्रदेश, पंजाब व राजस्थान से सैनिकों को विदेश भेजा, लेकिन अनैक सैनिकों ने युद्ध मे जाने से मना कर दिया। सैदपुर अकेला ऐसा गांव था जिसके 155 सैनिकों ने युद्ध की चुनौती को स्वीकार किया। 1914 में यहां के 155 सैनिक जर्मनी भेजे गए। इनमें 29 सैनिक मारे गए, 60 सैनिक वहीं पर बस गए। जिसे आज जाटलैंड के नाम से जाना जाता है। 66 सैनिक लौटे, तब अंग्रेजों ने सैदपुर गांव को विशेष गांव का दर्जा दिया। 1962 में भारत – चीन युद्ध, 1965 व 1971 भारत- पाकिस्तान युद्ध हों, यहां के जवानों ने देश का मान बढ़ाया है। 1965 के युद्ध में सैदपुर के कैप्टन सुखवीर सिंह दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हुए। जिसके बाद इंदिरा गांधी खुद शहीद की अस्थि कलश लेकर सैदपुर गांव में आईं। 1971 के युद्ध मे एक ही दिन गांव के मोहन सिरोही व विजय सिरोही शहीद हुए थे। तब इंदिरा गांधी PM रहते हुए भी गांव में आईं।

गांव में लगी कारगिल युद्ध के शहीद सुरेंद्र सिंह की प्रतिमा
गांव में लगी कारगिल युद्ध के शहीद सुरेंद्र सिंह की प्रतिमा

गांव में सेना आती थी भर्ती करने

सैदपुर गांव में एक एक घर मे पांच- पांच फौजी हैं। हर घर में फौजी मिलेंगे। कोई भी ऐसा घर नहीं है जहां घर का एक व्यक्ति आर्मी में न हो। सिपाही से लेकर मेजर जनरल तक पहुंचे। गांव के DS सिरोही मेजर जनरल बने। त्रिलोक सिंह सिरोही व नरेंद्र सिंह कमिश्नर रह चुके हैं। मेरठ में रह रहे गांव निवासी वीरेंद्र सिरोही आर्मी में सूबेदार रहे हैं। वह बताते हैं कि मेरा बेटा भी आर्मी में है, 17 साल का पोता भी आर्मी की तैयारी कर रहा है। 1973 में सेना के अधिकारी गांव में भर्ती करने पहुंचे थे। उसके बाद भी सेना गांव में स्पेशल भर्ती कर चुकी है।

गांव में शहीद स्मारक में लगा शिलापट, जहां अंकित हैं शहीदों के नाम
गांव में शहीद स्मारक में लगा शिलापट, जहां अंकित हैं शहीदों के नाम

बीच गांव में बना है शहीद स्मारक

सैदपुर गांव के बीच मे शहीद स्मारक बना हुआ है। इस शहीद स्मारक पर उन शहीदों के नाम अंकित हैं जिन्होंने देश की अखंडता, एकता व रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी हैं। कारगिल युद्ध मे गांव निवासी सुरेंद्र सिंह शहीद हुए। जिनकी प्रतिमा सैदपुर गांव में गुलावठी – बीबीनगर मार्ग पर लगी हुई है। गांव के बीचोंबीच बने शहीद स्मारक के सामने से निकलने पर हर आंख नम हो जाती हैं, शीश सम्मान में झुक जाता है। प्रथम विश्व युद्ध से लेकर 1999 के कारगिल युद्ध में यहां की माटी के वीरों ने अपने प्राण न्योछावर किए हैं।

गांव में मिलिट्री हीरोज के नाम पर बना इंटर कॉलेज, जो देता है देशसेवा की प्रेरणा
गांव में मिलिट्री हीरोज के नाम पर बना इंटर कॉलेज, जो देता है देशसेवा की प्रेरणा

मिलेट्री हीरोज मेमोरियल इंटर कॉलेज

शायद ही यह एक मात्र कॉलेज हो, जिसका नाम ही मिलेट्री हीरोज मेमोरियल इंटर कॉलेज है। यहां के छात्रों में एक जोश मिलता है। शाम के समय यहां के युवा सड़कों पर दौड़ते मिलेंगे। बस एक ही लक्ष्य है कि सेना में भर्ती होना। सैदपुर गांव से अधिकांश युवा NCC में भी कैम्प करना पसंद करते हैं। अधिकांश फौजी अपने बेटों को मिलेट्री हीरोज मेमोरियल इंटर कॉलेज में ही पढ़ना पसंद करते हैं जिससे युवाओं में एक नया जोश व जज्बा जाग्रत होता है।

गांव का ये दादीधाम मंदिर यहां पूजा करना अहम माना जाता है, यहीं से मिलता है जोश
गांव का ये दादीधाम मंदिर यहां पूजा करना अहम माना जाता है, यहीं से मिलता है जोश

दादी धाम की पूजा है मुख्य

पूर्व प्रधान धीरज सिरोही बताते हैं कि गांव के बाहर मुख्य मार्ग पर दादी धाम मंदिर स्थापित है। नवरात्र के अलावा होली व दीपावली पर यहां आने का विशेष महत्व है। हर नवरात्र पर मेला लगता है। हर परिवार साल में एक बार आस्था के इस मंदिर पर जरूर आता है। यदि परिवार विदेश में या दूसरे राज्यों में है तो परिवार का एक सदस्य जरूर यहां पहुंचकर दर्शन करता है। 500 साल पहले राजस्थान से आकर सिरोही सैदपुर में बसे थे। उस समय वृद्ध महिला पूजा करतीं थीं। जिन्हें पूरा गांव दादी के नाम से पुकारता था। भगवान का भजन करते हुए दादी स्थान पर समाई वहां उनकी समाधी बनाई। आज वही जगह दादी धाम से जाना जाता है।

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