जब तक पत्नी के शरीर पर चोट के हल्के या गहरे निशान न बनें, पति की जबर्दस्ती रेप होकर भी रेप नहीं माना जाएगा
पति अगर अपनी पत्नी से उसकी मर्जी के बगैर भी शारीरिक संबंध बनाए तो उसे रेप का दोषी नहीं कहा जा सकता। इसकी पक्की और सबसे बड़ी वजह है, दोनों का शादीशुदा होना। ये एक ऐसा करार है, जिसमें बीवी हमेशा के लिए शौहर की हो जाती है। ब्रिटेन के बेहद ताकतवर जज सर मैथ्यू हेल ने ये बात कहकर पतियों के इर्दगिर्द एक ऐसा घेरा बना दिया, जिसे पत्नियों की चीखें या जख्म भी भेद नहीं पाते थे। बल्कि पति के सुख पर आनाकानी करती पत्नी को ‘आज्ञाकारिणी’ न होने के ताने मिलते थे। 17वीं सदी में बना ये घेरा अब भी पतियों को रेप से ‘इम्यूनिटी’ दे रहा है। तभी तो छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक केस पर बात करते हुए रेपिस्ट पति को बलात्कार के जुर्म से बरी कर दिया।
बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि कानूनी तौर पर विवाहित पत्नी से पति का जबरन संबंध बनाना बलात्कार नहीं कहलाएगा। ये बयान देते हुए माननीय अदालत ने पति को रेप के आरोप से छुटकारा दे दिया। अब रेपिस्ट पति गर्दन की नसें फुलाकर घूम रहा होगा और पत्नी मुंह छिपा रही होगी।
ये पहला मामला नहीं। इसी महीने की शुरुआत में केरल से भी ऐसी ही बात सुनाई दी। वहां हाईकोर्ट ने एक केस पर बात करते माना कि पत्नी की मर्जी के खिलाफ संबंध बनाना मैरिटल रेप है, लेकिन साथ में कोर्ट ने ये भी जोड़ दिया कि इस तरह की हरकत की सजा फिलहाल हमारे कानून में नहीं। गौर करें, कि अदालत खुद इस जबर्दस्ती को रेप मानती है, लेकिन इसके खिलाफ कानून बनाने के लिए किसी आसमानी ऐलान का इंतजार कर रही है।
पत्नी के इनकार का मतलब है लड़ाई-झगड़ा मोल लेना
तमाम भारतीय अदालतें बगैर कहे भी मानती हैं कि जब तक पत्नी की आवाज कमरे से होते हुए गली के आखिरी छोर तक न सुनाई दे, जब तक पत्नी के शरीर पर चोटों के हल्के-गहरे निशान न बनें, पति की जबर्दस्ती रेप होकर भी रेप नहीं। इसे कुछ इस तरह समझते हैं- औरत-मर्द ने मिलकर आग के गोल चक्कर काट लिए, कुबूल है बोल डाला, या फिर अपनी एक उंगली में छल्ला पहन लिया। इसके साथ ही स्त्री का शरीर हमेशा-हमेशा के लिए पुरुष की जागीर हो जाता है
पत्नी चाहे हंसकर इसे उसके हवाले करे या फिर सिर में दर्द का मरहम लगाकर कराहते हुए। दिनभर की खटराग से लस्त-पस्त पत्नी बिस्तर पर पहुंचे तो शौहर एकदम तैयार बैठा होता है। जरा भी ना-नुकर से मामला बिगड़ जाएगा, रात ही नहीं, अगले कई दिन खराब होंगे, लिहाजा थकी हुई पत्नी ‘घर और मन की शांति’ के लिए खुद को पति के हवाले कर देती है।
सैकड़ों-सैकड़ों साल तक यही चलता रहा। यहां तक सबकुछ ठीक था, लेकिन नए जमाने की लड़कियां थोड़ी बिगड़ी हुई निकलीं। वे पति के प्यार को जबर्दस्ती का नाम देने लगीं। बेडरूम की बातचीत घर से बाहर निकल अदालतों के गलियारे में घूमने लगी। यहीं पर बात बिगड़ गई। पति तो पति, खुद कोर्ट ने कह डाला कि भले ही ये रेप है, लेकिन पतियों को अपनी बीवियों पर इसकी छूट है। या फिर छूट नहीं भी हो तो कम से कम सजा तो हरगिज नहीं।
हर 3 में से 1 शादीशुदा औरत कहीं न कहीं यौन शोषण झेलती है
इंडियन पीनल कोड (IPC) की धारा 375 में पत्नी से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं, बशर्तें वो कमउम्र न हो। साल 2015 में मैरिटल रेप का आरोप लेकर आई एक महिला की शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया- एक औरत के लिए कानून बदलना मुमकिन नहीं। साथ ही ये भी कहा गया कि मैरिटल रेप को जुर्म की श्रेणी में लाने से परिवार टूटने लगेंगे। तो इस तरह से कोर्ट ने एक अच्छी बड़ी बहू की तरह परिवार को जोड़े रखने का ठेका ले लिया और रेप को खारिज करने लगी।
इसके बाद से लगातार ढेरों मामले आ रहे हैं, कभी बिगड़ैल बीवियां, तो कभी सामाजिक संस्थाएं रेप को रेप कहने को तुले हैं, लेकिन कोर्ट अपने बहू होने के फर्ज को तजने को तैयार नहीं। लिहाजा, पतियों को रेप पर इम्यूनिटी मिली हुई है।
वैसे सारे ही देशों के एक हाल नहीं। बहुतेरे मुल्क रेप को रेप ही मानते हैं, फिर चाहे पति ही अपनी पत्नी पर हावी होने की कोशिश क्यों न करे। वहीं हम उन 36 देशों में है, जहां मैरिटल रेप पर कोई सजा नहीं। UN की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 15 से 49 साल की हर 3 में से 1 शादीशुदा औरत कहीं न कहीं यौन शोषण झेलती है। इसके बावजूद कोर्ट ने अपना इरादा और अपनी ताकत पीड़ित महिलाओं को नहीं, बल्कि परिवार नाम की संस्था को बचाने में झोंक दी।
‘परिवार बचाओ’ मुहिम के अलावा अदालत के पास एक और तर्क भी है, जो शादी में रेप को जुर्म बनने से रोके हुए है। दिल्ली हाईकोर्ट में एक एफिडेविट डालते हुए कहा गया कि अगर शादी में दैहिक संबंधों में जबर्दस्ती पर सजा होने लगी तो औरतें इसका ‘फायदा’ उठाएंगी। इस बात को मजबूती देने के लिए दहेज प्रताड़ना कानून का हवाला दिया गया। बताया गया कि कब, किन मौकों पर महिला या उसके मायके पक्ष ने मासूम पति और ससुरालियों पर दहेज का झूठा आरोप लगाया। हालांकि अदालती गलियारों में खुफिया तरीके से चलते इस तर्क-कुतर्क के बीच वो खबरें अदृश्य हैं, जहां दहेज के लिए लगातार लड़कियां मारी जा रही हैं।
अदालती इमरती को एक बार भूल भी जाएं तो शादी में बलात्कार से बचने के लिए एक और अस्त्र है- कंसेंट। पत्नी अगर एक बार यौन संबंध बनाने को तैयार हो जाए तो वह फिर कभी इनकार नहीं कर सकती। शादी के बाद पत्नी का कंसेंट ट्रैफिक की वो बत्ती है, जो तकनीकी खराबी के कारण हमेशा के लिए ग्रीन हो जाती है। ग्रीन यानी सहमति यानी राजीनामा। अब पत्नी का चाहे सिर दुखे या पेट- तैयार तो उसे होना ही है।
वैसे आजकल के संवेदनशील पति जबर्दस्ती तो नहीं करते, लेकिन पत्नी पर ठंडी होने का लेबल जरूर चिपका देते हैं। ये लेबल भी किसी तमाचे से कम नहीं। कुल मिलाकर शादी में रेप दुनिया की सबसे निजी और खुफिया हिंसा है, जो लगातार चली आ रही है।
70 के दशक में अमेरिका में शादी में बलात्कार की ढेरों शिकायतें आईं। इस पर जांच के लिए एक कमेटी बनी। कमेटी में अंदरूनी मजाक का एक हिस्सा मीडिया में लीक हो गया, जिस पर काफी बवेला हुआ था। दरअसल किसी ने कह दिया था कि अगर मर्द अपनी पत्नी से रेप नहीं करें तो फिर क्या करें! अब सारे अमेरिकी राज्यों में रेप पर सख्त सजा है, लेकिन भारत अभी भी इस पर मुंह सिले है।
ये तो शुक्र है उन लड़कियों का, जो धूल बनने से इनकार कर रही हैं। वे बिना सकुचाए अपने बेडरूम की हिंसा को अदालतों तक ला रही हैं। क्योंकि शादी में रेप निजी मसला नहीं, ये समाज का मसला है। ये उस परिवार का मसला है, जिसे बचाने के लिए कोर्ट लगातार जोर लगाए हुए है।