महाराष्ट्र: ‘भाजपा ने बेरोजगारों के हाथ घंटा दिया है, बजाते रहो’, आज के ‘सामना’ में शिवसेना ने किया मोदी सरकार पर फिर अटैक
सामना में लिखा है, “मंदिर के नाम पर राजनीतिक घंटा बजाने में कोई हर्ज नहीं है. लेकिन लाखों लोगों ने रोजगार गंवाया है और उससे जो आर्थिक अराजकता निर्माण हुई है, उसका क्या? इस संकट का सामना केंद्र सरकार कैसे करनेवाली है, नौकरियों का क्या करेगी? अगर घंटा बजाकर बेरोजगारी दूर हो रही है तो सरकार यह स्पष्ट करे!”
दो दिनों पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ( Union Finance Minister Nirma Sitharaman) ने देश की जीडीपी की ग्रोथ 20 प्रतिशत से ज्यादा बताई थी. यानी भाजपा की ओर से दावा किया गया कि पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार (PM Narendra Modi) ने भारत की अर्थव्यवस्था बुलंदी पर पहूंची है. शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में इस दावे का खंडन किया गया है और बढ़ती हुई बेरोजगारी की ओर ध्यान दिलाने की कोशिश की गई है.
सामना संपादकीय में संजय राउत लिखते हैं, ” युवाओं के हाथों में काम चाहिए लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने बेरोजगारों के हाथों में घंटा दिया है. बजाते रहो और मंदिर खोलने की मांग करते रहो. अगर घंटा बजाकर बेरोजगारी का राक्षस मर रहा है तो देश के उद्योग मंत्रालय को एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज के दरवाजे पर अब घंटा लगाकर रोजगार पैदा करने की दलान खोलनी चाहिए! ” सामना संपादकीय में दावा किया गया है कि अगस्त महीने में १६ लाख लोगों की नौकरी चली गई है. ग्रामीण भागों में बेरोजगारी ने कहर बरपाया है.
‘नोटबंदी और लॉकडाउन ने 2 करोड़ लोगों का रोजगार छीना, मुश्किल हुआ गरीबों का जीना’
‘सामना’ संपादकीय में बेरोजगारी बढ़ने को दो अहम कारण नोटबंदी और लॉकडाउन बताए गए हैं. संजय राउत ने लिखा है, “चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिखाए गए ‘अच्छे दिन’ की भयावह तस्वीर सामने आई है. वित्त मंत्री सीतारमण ने दो दिन पहले देश की ‘जीडीपी’ की गुलाबी तस्वीर पेश की थी। उस गुलाब के कांटे अब चुभ रहे हैं और पंखुड़ियां गिरने लगी हैं. मोदी सरकार ने जो गैर जिम्मेदार तरीके से नोटबंदी देश पर थोपी, उस नोटबंदी से ढही अर्थव्यवस्था के नीचे दो-एक करोड़ रोजगार कुचल गए. इसके बाद कोरोना व लॉकडाउन आया. इस काल में भी उतने ही लोगों ने रोजगार गंवाया. व्यापार, उद्योग-व्यवसाय को ताले लग गए. लेकिन जिन्होंने इस काल में रोजगार गंवाया, जो बेकार हो गए उनका क्या इंतजाम किया?”
आगे सामना संपादकीय में लिखा है, “मोदी सरकार को 7 वर्ष हुए. इस काल में देश में नया निवेश कितना हुआ, कितने विदेशी निवेश आए, उससे अर्थव्यवस्था को कितनी मजबूती मिली, कितने नए रोजगार सृजित हुए. इसकी जानकारी सरकार ने कभी भी नहीं दी. 7 वर्षों में गरीब और गरीब हुए, मध्यमवर्गीय और उच्च मध्यमवर्गीय भी गरीब हुए. रोजगार पैदा करनेवाले, नौकरी देनेवाले कई उद्यमी कंगाल हुए या देश छोड़कर चले गए.”
‘पब्लिक सेक्टर की कंपनियों को बेचकर जो पैसा आ रहा है, वो रोजगार बढ़ा रहा है?’
सामना संपादकीय में सवाल किया गया है कि पब्लिक सेक्टर की कंपनियों को बेचकर नुकसान तो भरा जा रहा है. सरकार फंड तो जुटा रही है. लेकिन क्या इससे जो रोजगार प्रभावित हो रहा है, उसके लिए सरकार के पास योजनाएं हैं? सामना संपादकीय में लिखा गया है, ” देश में सबसे बड़े उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र में हैं. इनमें से अधिकतर उद्योगों को बेचकर सरकार 6 लाख करोड़ रुपए जुटाएगी. उससे अर्थव्यवस्था को जीवनदान मिलेगा लेकिन क्या लोगों को रोजगार मिलेगा? इसके अलावा सड़क, रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, निजी उद्यमियों को किराए पर देकर सरकार पैसा कमाने में जुटी है. मतलब देश की संपत्ति किराए पर देकर उस पर मजा मारने की योजना है. ये मजेदार है लेकिन कोई भी ये बताने के लिए तैयार नहीं है कि नौकरी की समस्या कैसे हल होगी?”
‘नौकरी नहीं, नौकरी है तो सैलरी में कमी…देश में छा रही मंदी’
आगे संजय राउत लिखते हैं, “देश भर में औद्योगिक क्षेत्रों की स्थिति श्मशान जैसी हो गई है और इन क्षेत्रों की कीमती जमीनों को बेचने का काम ही बस देश भर में शुरू है. सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योगों को बढ़ावा दिया गया तो रोजगार पैदा होंगे. 12 करोड़ रोजगार उपलब्ध कराने की क्षमता इन उद्योगों में है. लेकिन सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योगों को सरकार का साथ नहीं मिल रहा है. बड़े उपक्रमों को ‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण’ नीति के नाम पर बेचा जा रहा है और सूक्ष्म लघु उद्योगों को कोई चम्मच भर पानी देने को तैयार नहीं है.”
‘सामना’ संपादकीय में आगे मंदी की चेतावनी देते हुए कहा गया है, “उत्पादन में गिरावट आई है और लोगों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ रही है. जो लोग नौकरी पेशा हैं, उनके वेतन में 40 से 50 प्रतिशत कटौती की जा रही है. अपवाद स्वरूप कुछ जगहों पर श्रमिकों को पूरा वेतन मिल रहा है. इसलिए लोग किसी तरह, कम खर्च में जी रहे हैं. बाजार में मंदी आ रही है. उत्पादों को कोई उठा नहीं रहा इसलिए उत्पादन नहीं, उत्पादन घट गया इसलिए नौकरी नहीं. इस पर सीतारमण बाई का गतिमान ‘जीडीपी’ कैसे काम करेगा? ”
‘अगर घंटा बजाकर बेरोजगारी दूर होती है तो सरकार स्पष्ट करे कि उनकी यही नीति है’
आखिर में सामना में यह सवाल किया गया है कि केंद्र सरकार यह स्पष्ट करे कि घंटा बजाकर रोजगार कैसे पैदा किए जाएंगे. संजय राउत लिखते हैं, “पिता का रोजगार जाने से हम अब परिवार पर भार बन गए हैं, इस चिंता से बड़ी उम्र की लड़कियों में आत्महत्या का मामला बढ़ने लगा है. मोदी की सरकार विश्व में एकमात्र उत्तम सरकार है, ऐसा अंधभक्तों का कहना है. अंधभक्तों का सरकार की आरती उतारना और मंदिर के नाम पर राजनीतिक घंटा बजाने में कोई हर्ज नहीं है. लेकिन लाखों लोगों ने रोजगार गंवाया है और उससे जो आर्थिक अराजकता निर्माण हुई है, उसका क्या? इस संकट का सामना केंद्र सरकार कैसे करनेवाली है, नौकरियों का क्या करेगी? अगर घंटा बजाकर बेरोजगारी दूर हो रही है तो सरकार यह स्पष्ट करे!”