मुंबई में क्या सच में कम हो रहे हिंदू ?
मुंबई में क्या सच में कम हो रहे हिंदू, 50 साल का डेटा क्या कहता है? विस्तार से समझिए पूरा गणित
एक रिसर्च के अनुसार मुंबई में साल 2051 तक हिंदू आबादी 54 प्रतिशत से कम हो सकती है, जबकि मुस्लिम समुदाय की संख्या में 30 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो सकती है.
रिपोर्ट में ये चेतावनी दी गई है कि इन बदलावों से मुंबई की राजनीति और समाज में अनचाहे प्रभाव पड़ सकते हैं, जो भविष्य में चुनावी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं.
88 से 66 प्रतिशत हुई हिंदू आबादी
रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1961 में मुंबई में हिंदू आबादी 88 फीसदी थी, जो कि 2011 तक घटकर 66 फीसदी रह गई. 50 सालों में मुंबई में हिंदू आबादी में केवल 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई. जबकि 1961 में मुस्लिम आबादी जो कि केवल 8 प्रतिशत थी, 2011 तक बढ़कर 21 प्रतिशत हो गई. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) की जनसांख्यिकी के अध्ययन के अनुसार आबादी बढ़ने की ये प्रवृत्ति इसी तरह जारी रही, तो आने वाले 40 सालों में यानी 2051 तक हिंदू आबादी 54 प्रतिशत से भी कम हो सकती है, जबकि मुस्लिम आबादी में लगभग 30 प्रतिशत की और बढ़ोतरी हो सकती है.
50 प्रतिशत अवैध घुसपैठ महिलाएं देह व्यापार में शामिल हैं, जो मुंबई की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर असर डाल रही हैं. इसके कारण स्थानीय लोगों में नाराजगी और तनाव बढ़ रहा है, क्योंकि इन अवैध प्रवासियों की गतिविधियों से शहर की व्यवस्था और स्थानीय लोगों की जीवनशैली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. इसका मतलब यह है कि बढ़ते अवैध प्रवासियों की वजह से न सिर्फ जनसंख्या का संतुलन बदल रहा है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक समस्याएं भी उत्पन्न हो रही हैं, जिससे शहर में असंतोष और तनाव बढ़ रहा है.
अवैध प्रवासी वह व्यक्ति होते हैं जो किसी देश में बिना उचित दस्तावेज, अनुमति या वीजा के आकर रहने लगते हैं. यह लोग या तो देश में अवैध तरीके से घुसते हैं, या वैध वीजा के समाप्त होने के बाद भी बिना सही प्रक्रिया के वहां बने रहते हैं.
अवैध प्रवासी देश की कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं करते और उनका वहां रहना देश की सीमा और नागरिकता कानूनों के खिलाफ होता है. ऐसे लोग अक्सर किसी कानूनी अधिकार के बिना काम करते हैं, स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाते हैं या अन्य सुविधाओं का इस्तेमाल करते हैं, जिससे कई बार उस देश की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था पर दबाव पड़ता है.
क्या है टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) भारत का एक प्रमुख विश्वविद्यालय है जो समाजशास्त्र, सामाजिक कार्य और सार्वजनिक नीति जैसे विषयों में उच्च शिक्षा और शोध प्रदान करता है. यह संस्थान 1936 में मुंबई में स्थापित किया गया था और इसका उद्देश्य समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए शिक्षा, अनुसंधान और प्रशिक्षण प्रदान करना है.
TISS भारत के सबसे प्रतिष्ठित सामाजिक विज्ञान संस्थानों में से एक माना जाता है और यह मानवाधिकार, सामाजिक न्याय, और विकास के मुद्दों पर कार्य करता है. TISS विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रमों जैसे मास्टर डिग्री, पीएचडी, और डिप्लोमा कोर्स संचालित करता है और इसके पाठ्यक्रम में समाज के विभिन्न पहलुओं पर गहरी समझ विकसित करने पर जोर दिया जाता है.
रिसर्च के क्षेत्र में TISS व्यापक रूप से कई सामाजिक मुद्दों पर अध्ययन करता है, जिनमें गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, विकास, सामाजिक असमानता, और मानवाधिकार शामिल हैं. इसके शोध का उद्देश्य समाज में सुधार लाना और सरकारों, नीतियों और समाज के विभिन्न हिस्सों को दिशा देना है. TISS अपने शोध कार्यों के माध्यम से सरकारी नीतियों, सामाजिक कार्य योजनाओं और सामाजिक विकास की दिशा को प्रभावित करने की कोशिश करता है.
2011 की जनगणना के आधार पर भारत में सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश हैं. उत्तर प्रदेश भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है, जहां लगभग 20 करोड़ लोग रहते हैं. यह राज्य देश के कुल जनसंख्या का करीब 16 प्रतिशत है. इसके बाद महाराष्ट्र का नाम आता है, जहां लगभग 11 करोड़ लोग रहते हैं. महाराष्ट्र में मुंबई जैसे बड़े शहर स्थित हैं, जो आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं.
बिहार तीसरे नंबर पर है, जहां की आबादी लगभग 10 करोड़ है. बिहार की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है. इसके बाद पश्चिम बंगाल आता है, जहां लगभग 9 करोड़ लोग रहते हैं. कोलकाता, जो इस राज्य का प्रमुख शहर है, भारत का एक प्रमुख वाणिज्यिक और सांस्कृतिक केंद्र है. अंत में, मध्य प्रदेश है, जहां की आबादी लगभग 7 करोड़ है. मध्य प्रदेश एक बड़ा राज्य है, लेकिन इसकी जनसंख्या उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के मुकाबले कम है.