जिस रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म टिकट 10 रुपए का था, प्राइवेट हाथों में जाने के बाद 50 का हो गया, ऐसे ही 13 सेक्टर की चीजें सरकार लीज पर देने जा रही है
केंद्र सरकार अपनी 13 सेक्टर की प्रॉपर्टीज प्राइवेट कंपनियों को लीज पर देने जा रही है। इससे वो अगले चार साल में 6 लाख करोड़ रुपए जुटाएगी। शुरुआत गैस पाइपलाइन से हो रही है। हमारे लिए इस पॉलिसी को जानना जरूरी है क्योंकि ये सीधे हमारी जेब से जुड़ी हुई है।
मान लीजिए कि आपके पास एक सुंदर सा होटल है, लेकिन उसके मेंटेनेंस के लिए आपके पास पैसे नहीं हैं। तो आपने उसे प्राइवेट कंपनी को किराए पर दे दिया। अब आपका होटल भी बना रहेगा और किराए के पैसे भी मिलते रहेंगे। सरकार की नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन यही है।
ये सुनने-पढ़ने में तो बहुत अच्छा लग रहा है, लेकिन इस सरकारी एक्सपेरिमेंट के कुछ रिजल्ट्स हमारे सामने हैं। आइए उनसे रूबरू हो लेते हैं…
प्राइवेट ट्रेन तेजस के टिकट का दाम शताब्दी के दोगुना से ज्यादा, फिर भी 90 ट्रेन प्राइवेट होंगी
प्राइवेटाइजेशन के बाद पहला रेलवे स्टेशन बनकर तैयार हुआ है, भोपाल का हबीबगंज स्टेशन। प्राइवेट हाथों में जाने से पहले इसका प्लेटफॉर्म टिकट 10 रुपए का था, अब 50 रुपए का है। इस रेलवे स्टेशन से रोजाना औसतन 40,000 लोग आते या जाते हैं।
एक अनुमान के मुताबिक यहां आने वाले करीब 50% से ज्यादा यात्रियों के साथ उनके परिवार वाले या दोस्त आते हैं, लेकिन अब ये लोग प्लेटफॉर्म के अंदर जाकर ट्रेन छूटते वक्त तक अपनों को अलविदा नहीं करते, गेट के बाहर से ही लौट जाते हैं। क्योंकि एक प्लेटफॉर्म टिकट 50 रुपए का है।
अब सरकार एक-दो नहीं पूरे 400 स्टेशन्स की मरम्मत प्राइवेट कंपनियों को देने जा रही है। टूरिस्ट प्लेस वाले कालका-शिमला, दार्जिलिंग जैसे रेलवे का संचालन प्राइवेट संस्थाओं को दिया जाएगा। 1400 किलोमीटर तक रेलवे ट्रैक भी लीज पर दिए जाएंगे। यहां सुविधाएं तो बढ़ेंगी लेकिन रेट 10 से 50 रुपए हो सकते हैं।
इसी तरह सरकार ने एक ट्रेन को प्राइवेट हाथों में दिया, नाम है तेजस और इसका टिकट मिलता है डायनिक फेयर सिस्टम से। मतलब यह है कि जितनी डिमांड उतना महंगा टिकट। 23 सितंबर 2019 को कई लोगों ने दिल्ली से लखनऊ का टिकट 4300 रुपए में खरीदा। आम दिनों में भी इसका रेट 1700 रुपए है। जबकि शताब्दी एक्सप्रेस के टिकट का रेट 815 रुपए है।
अब सरकार 90 पैसेंजर ट्रेन प्राइवेट हाथों में देने की तैयारी में है। यानी ट्रेन प्राइवेट हाथ में तो टिकट दोगुने से भी ज्यादा मंहगा। हां ये जरूर होगा कि रेलवे की प्रॉपर्टी किराए पर देकर सरकार को डेढ़ लाख करोड़ रुपए मिल जाएंगे। रेल से ज्यादा पैसे सरकार सड़कों को लीज पर रखकर जुटाएगी।
प्राइवेट मेंटेनेंस वाली सड़क का टोल दोगुना से ज्यादा, पर 27% सड़कें प्राइवेट हाथों में जाने वाली हैं
ये है ग्रेटर नोएडा से आगरा को जोड़ने वाला यमुना एक्सप्रेसवे। इसका मेंटेनेंस प्राइवेट कंपनी को दिया गया। 165 किलोमीटर की इस सड़क पर आप सफर करते हैं तो कार, एसयूवीज जैसे 4 व्हीलर गाड़ियों को 360 रुपए टोल टैक्स देना होता है। किसी दूसरी सड़क पर इतनी ही दूर जाने के लिए ज्यादा से ज्यादा 150 रुपए देना होता है।
यानी सड़क का मेंटेनेंस प्राइवेट हाथों में तो टोलटैक्स दोगुना, लेकिन सरकार देश के 27% हाईवेज यानी करीब 27,600 किलोमीटर सड़क बनाने और मेंटेनेंस का काम प्राइवेट कंपनियों को देने जा रही है।
सड़कें निजी हाथों में जाने से क्या ज्यादा टोल देना पड़ेगा, इस सवाल के जवाब में अफसरों ने कहा कि यह कहना अभी सही नहीं है, क्योंकि टोल को नियंत्रित रखने का फॉर्मूला बनना अभी बाकी है। फिलहाल सरकार सड़कों को लीज पर देकर 1.6 लाख करोड़ रुपए जुटाने जा रही है।
बिजली बनाने और बिजली की सप्लाई प्राइवेट हाथों में देकर 80 हजार करोड़ से ज्यादा जुटाएगी सरकार
रेल, सड़क के बाद सरकार सबसे ज्यादा पैसे जुटाएगी आपके घर में जलने वाली बिजली से जुड़ी चीजों को लीज पर देकर। पावर ट्रांसमिशन यानी बिजली सप्लाई करने वाले खंभे, तार, इलेक्ट्रिसिटी मीटर जैसी चीजों को लीज पर रखकर सरकार 45,200 करोड़ जुटाएगी।
इसी तरह पावर जेनरेशन यानी बिजली बनाने वाली चीजों को प्राइवेट कंपनियों को दिया जाएगा। इससे सरकार को 39,832 करोड़ मिलेंगे। फिलहाल देश में रिलायंस, अडानी ग्रुप और टाटा ग्रुप प्राइवेट बिजली बनाने और सप्लाई करने का काम करते हैं। पावर के बाद बारी आती है आपके मोबाइल की।
2.5 लाख ग्राम पंचायतों को जोड़ने वाली फाइबर ऑप्टिक लाइन लीज पर दी जाएगी
साल 1994 से ही सरकार स्पेक्ट्रम की नीलामी करती आई है। स्पेक्ट्रम वही नेचुरल रिसोर्स है, जिसके जरिए मोबाइल या फोन से बात होती है। 2016 के 4G स्पेक्ट्रम की नीलामी में सरकार की अपनी कंपनी BSNL ही बाहर हो गई थी। इसका नतीजा आज हमारे सामने है।
रिलायंस जियो, एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया के प्लान्स बीते 3 साल में 200% से ज्यादा बढ़ चुके हैं। आगे और बढ़ने की बात हो रही है। पिछले महीने ही 28 दिन तक अपना नंबर चलाने के लिए कम से कम 49 रुपए वाले रिचार्ज को बढ़ाकर 79 रुपए कर दिया गया है।
लेकिन सरकार इस बार देश की करीब ढाई लाख ग्राम पंचायतों को जोड़ने वाले भारतनेट को प्राइवेट हाथों में देने जा रही है। इसमें दो लाख छियासी हजार किलोमीटर की फाइबर ऑप्टिक लाइन और 13,500 मोबाइल टावर हैं। इससे सरकार 35,100 करोड़ रुपए जुटाने का टारगेट रखे हुए है।
लाखों घरों में खाना बनाने वाली PNG पहुंंचाने वाली गैस पाइपलाइन भी किराए पर दी जाएगी
अब बात नई पॉलिसी की शुरुआत 2,229 किलोमीटर में बिछी गेल की गैस पाइपलाइन की। ये वही पाइपलाइन है, जिनके जरिए हमारे घरों में खाना बनाने वाली PNG और गाड़ी में डलाने वाली CNG भी पहुंचाई जाती है।
फिलहाल 2 पाइपलाइन प्राइवेट हाथों में जाना तय हो गया है। पहली पाइपलाइन महाराष्ट्र के दाभोल से कनार्टक के बेंगलुरु तक। इसके जरिए बेलगाम, धारवाड़, बेल्लारी, रामनगरम और बेंगलुरु समेत 10 जिलों के लोग जुड़े हुए हैं। इससे रोजाना 1 करोड़ 60 लाख क्यूबिक मीटर गैस सप्लाई होती है। दूसरी लाइन गुजरात के दाहेज से लेकर महाराष्ट्र के दाभोल तक है। इससे भी हजारों लोगों की जिंदगी जुड़ी हुई है।
यहां ये जिक्र करना जरूरी है कि पेट्रोल और LPG सिलेंडर के दाम बढ़ने के बाद CNG और PNG की खपत बढ़ी हुई है, लेकिन यही सबसे पहले प्राइवेट हाथों में जाने वाली है। सरकार कुल 8,154 किलोमीटर गैस पाइपलाइन को प्राइवेट कंपनियों को लीज पर देकर 24,462 करोड़ जुटाएगी। इसके बाद बारी आती है एविएशन इंडस्ट्री यानी हवाई जहाज के इंडस्ट्री की।
भोपाल, इंदौर, वाराणसी समेत 25 एयरपोर्ट प्राइवेट हाथों में जाएंगे
इंदौर का देवी अहिल्याबाई होल्कर एयरपोर्ट 2022 तक प्राइवेट संस्थाओं को दे दिया जाएगा। 2024 तक भोपाल के राजा भोज एयरपोर्ट के साथ वाराणसी, रायपुर, भुवनेश्वर, अमृतसर, चेन्नई, तिरुपति समेत 25 एयरपोर्ट लीज पर दे दिए जाएंगे।
इससे सरकार 20,782 करोड़ रुपए जुटाएगी। मोनेटाइजेशन पॉलिसी से खेल और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर की चीजें प्राइवेट संस्थाओं के हाथों में जाएंगी। इसमें सबसे बड़ा नाम स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी साई के भोपाल सेंट्रल सेंटर का है। ये सेंटर 100 एकड़ में फैला है। इसमें कई इंडोर-आउटडोर स्टेडियम और हॉस्टल हैं।
खेल के बाद आपसे जुड़ा हॉस्पिटैलिटी सेक्टर है। इसमें देशभर में 8 बड़े होटल भी लीज पर दिए जाएंगे। इसके अलावा सरकार की लिस्ट में सब्जी-अनाज रखे जाने वाले वेयरहाउसेज, खनन, पानी के जहाज वाले पोर्ट्स और अर्बन रियल एस्टेट वाली चीजों के नाम भी हैं।
वित्त मंत्री कहना है कि मोदी सरकार जो भी करती है जनता की भलाई के लिए करती है
23 अगस्त को जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसकी घोषणा की तो सोशल मीडिया और विपक्ष ने इस पर हमला बोला। उसके जवाब में सरकार की ओर से ये बातें कही गई हैं-
पहली, वित्त मंत्री ने खुद इस मामले पर ट्वीट किया। उनका कहना है कि चोरी-छुपे काम करना तो कांग्रेस की कार्यशैली है। मोदी सरकार जो काम करती है, देश की भलाई के लिए करती है।
दूसरी, इस पॉलिसी के प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल ने कहा कि सरकार के पास बहुत संपत्ति है। अगर वो इनको मोनेटाइज करती है और कुछ पैसे जुटाकर उसका निवेश नए इंफ्रास्ट्रक्चर में करती है तो इसमें गलत क्या है? इन पैसों से कमजोर तबके को सपोर्ट दिया जाएगा। फिर सरकार अपनी संपत्ति बेच नहीं रही है, लीज पर दे रही है।
कोरिया जैसे छोटी आबादी के देशों के लिए आइडिया अच्छा, पर भारत के लिए नहीं
सरकार ने फाइबर ऑप्टिक लाइन प्राइवेट कंपनियों को लीज पर दे रखी है। लेकिन सरकार की अपनी कंपनी BSNL की हालत खस्ता है। वर्ल्ड बैंक के चीफ इकोनॉमिस्ट रह चुके अर्थशास्त्री प्रोफसर कौशिक बासू कहते हैं कि कोरिया जैसे कम आबादी वाले देश के लिए तो ऐसी पॉलिसी ठीक हैं, लेकिन भारत की संपत्तियों को इतने बड़े पैमाने पर लीज पर रखना ठीक नहीं होगा।