जिस पर दो जातियां भिड़ीं..उस सम्राट की कहानी:मिहिर भोज की जाति पर भिड़े राजपूत और गुर्जर समाज; इतिहासकार बोले- इस बेमतलब के विवाद का कोई अंत नहीं

मध्यप्रदेश के ग्वालियर-चंबल संभाग में सम्राट मिहिर भोज की जाति पर दो जातियों में शुरू हुआ विवाद अब हिंसक होता जा रहा है। इसकी आंच अब पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश तक पहुंच गई है। ग्वालियर चंबल संभाग में बीते एक-दो दिन में कुछ हिंसक घटनाएं भी हुई हैं। सम्राट की जाति पर राजपूत क्षत्रिय और गुर्जर समाज दोनों ही अपना-अपना दावा कर रहे हैं। दोनों जातियां उग्र प्रदर्शन से पीछे नहीं हट रही हैं। ग्वालियर में कई बार दोनों गुट भिड़ चुके हैं। गुरुवार रात मुरैना में भी हिंसक घटनाएं हुईं। आखिर इस विवाद के पीछे की वजह क्या है? आखिर विवाद कहां से शुरू हुआ? सम्राट मिहिर भोज किस जाति के थे? इस मुद्दे पर इतिहासकारों की क्या राय है? जानिए सब कुछ…

सम्राट मिहिर भोज कौन हैं ? गुर्जर-प्रतिहार वंश के संस्थापक नागभट्‌ट प्रथम (730-756 ईस्वी) थे। इसके बाद नागभट्‌ट द्वितीय और रामभद्र गद्दी संभाली। रामभद्र के बेटे मिहिर भोज (836-885 ईस्वी) थे। मिहिर भोज इस वंश के सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक थे। भोज ने उत्तर भारत में एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया था। जयपुर क्षेत्र का गुहिलोत शासक हर्षराज भी उनके सामंत थे। दक्षिण में उनका साम्राज्य नर्मदा नदी तक था। उन्होंने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाई। ग्वालियर अभिलेख में जिक्र है- ‘अगस्त ऋषि ने तो केवल विंध्य पर्वत का विस्तार रोक किया था, लेकिन सम्राट मिहिर भोज ने कई राजाओं पर आक्रमण कर उनका विस्तार रोक दिया।’

इतिहासकार प्रोफेसर वीडी महाजन अपनी किताब ‘मध्यकालीन भारत’ में लिखते हैं कि मिहिर भोज प्रतिहार वंश के सबसे शक्तिशाली शासक थे, जिन्होंने 836 ईस्वी से लेकर 885 ईस्वी तक शासन किया और कन्नौज पर अपना कब्जा बरकरार रखा।

यह वो समय था जब कन्नौज पर अधिकार के लिए बंगाल के पाल, उत्तर भारत के प्रतिहार और दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट शासकों के बीच कीरीब 100 साल तक संघर्ष होता रहा, जिसे इतिहास में “त्रिकोणात्मक संघर्ष” कहा जाता है।

कैसे शुरू हुआ विवाद?
ग्वालियर नगर निगम की कार्य परिषद में 14 दिसंबर 2015 को एक ठहराव प्रस्ताव लाया गया था। इसमें सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा को स्थापित करने का उल्लेख है, लेकिन कहीं भी गुर्जर सम्राट शब्द का जिक्र नहीं है। 8 सितंबर 2021 को नगर निगम द्वारा शीतला माता रोड चिरवाई नाका चौराहा पर सम्राट मिहिर भोज महान की प्रतिमा का अनावरण किया था। यहां प्रतिमा की पटि्टका पर सम्राट मिहिर भोज के आगे गुर्जर शब्द जोड़कर उन्हें गुर्जर सम्राट मिहिर भोज नाम दिया गया। राजपूत क्षत्रिय समाज ने इसका विरोध किया। दोनों समुदाय एक-दूसरे के सामने आ गए। यहीं से सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर विवाद शुरू हो गया।

गुर्जर समाज का दावा
अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा के प्रदेश उपाध्यक्ष अलबेल सिंह घुरैया ने इतिहासकार और आचार्य वीरेन्द्र विक्रम के माध्यम से दावा किया है। उन्होंने कहा कि सम्राट मिहिर भोज महान ने 53 साल अखंड भारत पर शासन किया। वे गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी शासक थे। उनको समकालीन शासक गुर्जर सम्राट नाम से ही जानते थे। उनके समकालीन शासकों राष्ट्रकूट और पालों ने अपने अभिलेखों में उनको गुर्जर कहकर ही संबोधित किया है। 851ईस्वी में भारत भ्रमण पर आए अरब यात्री सुलेमान ने उनको गुर्जर राजा और उनके देश को गुर्जर देश कहा है। सम्राट मिहिर भोज के पौत्र सम्राट महिपाल को कन्नड़ कवि पंप ने गुर्जर राजा लिखा है।

अलबेल सिंह ने बताया कि प्रतिहारों का कदवाहा, राजोर, देवली, राधनपुर, करहाड़, सज्जन, नीलगुंड, बड़ौदा के शिलालेखों में गुर्जर बताया गया है। भारत के इतिहास में 1300 ईस्वी से पहले राजपूत नाम की किसी भी जाति का कोई उल्लेख नहीं है। क्षत्रिय कोई जाति नहीं है। क्षत्रिय एक वर्ण है, जिसमें जाट, गुर्जर, राजपूत अहीर (यादव ), मराठा आदि सभी जातियां आती हैं।

क्षत्रिय समाज पर दावा
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा का कहना है कि मिहिर भोज महान की प्रतिमा स्थापित करने के लिए अध्यक्ष नगर निगम ग्वालियर में पारित ठहराव में कहीं भी गुर्जर शब्द का उल्लेख नहीं है, जबकि गुपचुप तरीके से 8 सितंबर 2021 वर्चुअल उद्घाटन कर गुर्जर शब्द प्रतिमा पर अंकित कर दिया गया। क्षत्रिय महासभा ने कहा है कि राजपूत युग (शासन काल) भारत वर्ष के समस्त दस्तावेजों में 700 ईस्वी से 1200 ई तक रहा है।

इसी दौरान सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार राजवंश का शासन काल 836 से 885 ईस्वी तक रहा है। उस समय राजस्थान या राजपूताना नाम की कोई राजनीतिक इकाई नहीं थी। संपूर्ण प्रदेश ‘गुर्जर प्रदेश’ नाम से जाना जाता था। इस क्षेत्र का स्वामी होने पर वह कालांतर में गुर्जर-प्रतिहार (गुर्जराधिपति) कहलाए। इसके संबंध में उन्होंने भारत वर्ष में आए विदेशी नागरिक, इतिहास के पन्नों को रखा है, जिसमें गुर्जर प्रतिहार वंश में गुर्जर का मतलब स्थान है, न कि जाति

इतिहास में सम्राट की पहचान
ग्वालियर के MLB कॉलेज के हिस्ट्री प्रोफेसर डॉ. सुनील कुमार बताते हैं कि इतिहास में सम्राट मिहिर भोज का उल्लेख राजपूत सम्राट के रूप में किया जाता है, जो गुर्जर-प्रतिहार वंश के शासक थे। राजपूत कौन हैं इसकी परिभाषा क्या है? इसका कोई जिक्र नहीं है। दूसरों की रक्षा करने वाला भी राजपूत होता है। साथ ही सम्राट और राजा सबका होता है।

भारत में जितने भी शासक हुए हैं उनका जन्म या तो कृष्ण से माना जाता है या राम से। सम्राट मिहिर भोज को भी राम का वंश का बताया जाता है। डॉ. सुनील कुमार का यह भी कहना है कि उनके वंश में गुर्जर शब्द का उल्लेख भी यूं ही नहीं है। यह नाम जुड़ा है तो उसका भी महत्व है।

क्या हो सकता है विवाद का समाधान?
प्रोफेसर डॉ. सुनील कुमार की राय में मानें तो इस विवाद का कोई मतलब नहीं है। बिना वजह का विवाद है। उनकी नजर में इस झगड़े का कोई अंत नहीं है। कहीं भी सम्राट को किसी एक वर्ग का होने का स्पष्ट दावा नहीं है, इसलिए एक ही समाधान नजर आता है कि प्रतिमा पर सिर्फ गुर्जर सम्राट की जगह गुर्जर-प्रतिहार सम्राट लिख दिया जाए। इससे यह विवाद खुद ही खत्म हो जाएगा।

प्राचीन इतिहास की किताब में क्या?
इलाहाबाद यूनिवार्सिटी में प्रोफेसर रहे केसी श्रीवास्तव ने अपनी प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति में गुर्जर-प्रतिहार वंश को लेकर लिखते हैं कि विभिन्न राजपूत वंशों की उत्पत्ति के समान गुर्जर- प्रतिहार वंश की उत्पत्ति भी विवादग्रस्त है। इतिहासकार सीवी वैद्य, जीएस ओझा, दशरथ शर्मा जैसे अनेक विद्वान इस शब्द का अर्थ गुर्जर देश का प्रतिहार अर्थात शासक लगाते हैं। केएम मुंशी ने विभिन्न उदाहरणों से यह सिद्ध किया है कि गुर्जर शब्द स्थानवाचक है, जातिवाचक नहीं।

कोर्ट से होगा निर्णय
इस मामले में कलेक्टर ग्वालियर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह का कहना है कि मामला मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में विचाराधीन है, इसलिए न्यायालय जो भी फैसला करेगा उसे लागू किया जाएगा। न्यायालय के निर्णय इंतजार करें। इसके बाद भी किसी ने माहौल बिगाड़ने का प्रयास किया तो उसके खिलाफ NSA, जिला बदर की कार्रवाई की जाएगी।

अब दोनों जातियां का अगला कदम क्या होगा?

  • गुर्जर किसान संगठन के जिला उपाध्यक्ष सत्येन्द्र सिंह गुर्जर का कहना है कि इतिहासकार सम्राट को गुर्जर बताते हैं। गुरुवार को दोनों समुदाय को कलेक्टर-एसपी ने साथ बुलाया था। दोनों में तनाव कम करने के लिए दोनों पक्षों ने भरोसा दिलाया है। मामला कोर्ट में है और हाईकोर्ट के निर्णय का इंतजार करेंगे। उसके बाद फैसला करेंगे कि आगे क्या करना है।
  • अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ग्वालियर जिला महामंत्री और प्रदेश प्रवक्ता ललित सिंह तोमर ने कहा कि मिहिर भोज प्रतिहार वंश से आते हैं। नागौद राज परिवार से जुड़े हैं। उनकी वंशावली है। दोनों पक्षों से ​​​कलेक्टर-एसपी ने बात की है। दोनों को कोर्ट का निर्णय का इंतजार कर ने के लिए और मानने के लिए कहा है। हमें भी हाईकोर्ट के निर्णय का इंतजार है।

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