महिला को मिले प्राथमिकता:हाईकोर्ट में हैं केवल 5.6 प्रतिशत महिला जज, 1956 से अब तक सिर्फ 12 महिलाएं ही पदस्थ रहीं, वर्तमान में तीन
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने न्यायपालिका में महिलाओं की 50 फीसदी भागीदारी की सिफारिश की है। वर्तमान में उच्चतम न्यायलय से लेकर अधीनस्थ अदालतों में महिला जजों की संख्या बहुत ही कम है। मप्र हाईकोर्ट में अभी केवल 5.6 फीसदी ही महिला जज पदस्थ हैं। हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के कुल स्वीकृत पद 53 हैं, इनमें से महिला जज केवल 3 ही हैं।
मप्र हाईकोर्ट में कार्यरत जजों की संख्या 29 है और 24 पद खाली हैं। मप्र हाईकोर्ट की स्थापना 1956 में हुई थी। स्थापना से लेकर अब तक 65 साल में केवल 12 महिला जजों की पदस्थापना हुई है। वर्तमान में जस्टिस नंदिता दुबे, जस्टिस अंजुली पालो और जस्टिस सुनीता यादव कार्यरत हैं।
इसके अलावा जस्टिस वंदना कसरेकर भी हाईकोर्ट में पदस्थ थीं, लेकिन पिछले साल दिसंबर में कोविड के चलते उनका निधन हाे गया। अगर देश भर की बात करें तो सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों में कुल 677 मौजूदा जजों में से केवल 81 महिलाएं हैं। कुल कार्यरत जजों में महिलाओं का यह केवल 12 प्रतिशत है।
1994 में पहली जज सरोजिनी सक्सेना पदस्थ हुईं, अगले ही दिन तबादला
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के इतिहास में पहली महिला जज 1994 में पदस्थ हुई थीं। जस्टिस सरोजिनी सक्सेना 27 िसतंबर1994 को जज बनीं और अगले दिन इनका स्थानांतरण पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट कर दिया गया।
सबसे लंबा 12 साल का कार्यकाल जस्टिस एसआर वाघमरे का रहा, 2004 में बनी थीं
अभी तक पदस्थ हुईं महिला जजों में सबसे लंबा 12 साल का कार्यकाल जस्टिस एसआर वाघमरे का रहा है। वे वर्ष 2004 में हाईकोर्ट जज बनीं और 2016 में सेवानिवृत्त हुईं। वर्ष 1996 में जज बनीं जस्टिस ऊषा शुक्ला 7 वर्ष सेवारत रहीं।
सीजेआई का सुझाव स्वागतयोग्य है, लेकिन महिलाओं को प्राथमिकता देने में न्यायदान की गुणवत्ता प्रभावित नहीं होनी चाहिए। आम आदमी के लिए अदालत ही आखिरी उम्मीद होती है। यदि महिला-पुरुष दोनों समान काबिलियत वाले उपलब्ध हों तो महिला को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, क्योंकि दूसरों का दर्द समझने का उसे कुदरती वरदान प्राप्त है।’
-इंदिरा नायर, वरिष्ठ अधिवक्ता