दरियादिल इंदौरी …..कोरोना में पेरेंट्स को खो चुके 340 बच्चों की मदद का जिम्मा लिया, हर महीने देंगे आर्थिक सहायता
कोरोना की पहली लहर में पलायन कर रहे मजदूरों की मदद का जो जज्बा इंदौरियों ने तब दिखाया था, ऐसा ही उजला पक्ष फिर सामने आया है। कोरोना में अपने मां-बाप में से किसी एक को खो चुके 340 बच्चों के लिए जिला प्रशासन ने मदद की अपील की थी। 24 घंटे में ही 16 लोगों ने आगे आकर बच्चों की मदद का जिम्मा लिया है। मददगारों में दो शहर की बिजनेसमैन फैमिली, दो सामाजिक संगठन तो बाकी के समाजसेवी हैं।
जिला कार्यक्रम अधिकारी (महिला एवं बाल विकास) रामनिवास बुधोलिया ने बताया कि मददगारों की ओर से शुरुआती दौर में हर बच्चे को 2 हजार रुपए महीने की मदद दी जाएगी। मददगार 1 से 3 साल तक बच्चों की मदद करेंगे। यानी एक साल तक के लिए 24 हजार, दो साल के लिए 48 हजार और तीन साल तक के लिए 72 हजार रुपए की मदद करेंगे। इसके अलावा इन बच्चों की फ्री एजुकेशन के मामले में भी गुजराती समाज के स्कूल सहित कुछेक स्कूलों ने मदद की पेशकश की है। प्रशासन भी इन बच्चों को BPL कार्ड के तहत राशन उपलब्ध कराने की कोशिश में है।
कोरोना की दूसरी लहर में इंदौर के 53 बच्चों ने मां और बाप दोनों को खो दिया। इन्हें ‘मुख्यमंत्री कोविड -19 बाल कल्याण योजना’ के लिए पात्र पाया गया। इन बच्चों को मुफ्त राशन और एजुकेशन के साथ 5000 रुपए की मासिक पेंशन मिलना शुरू हो गई है।
लेकिन, 340 बच्चे ऐसे हैं, जिनके मां और बाप दोनों में से किसी एक ने आवेदन किया है। इनमें भी ज्यादातर ऐसे हैं, जिनके सिर से पिता का साया उठा चुका है। ऐसे में कलेक्टर मनीष सिंह ने शहर के लोगों से बच्चों की मदद के लिए आगे आने की अपील की थी।
नाम बताना नहीं चाहते मददगार
खास बात यह कि सभी मददगार लोगों ने अपना नाम उजागर करने से मना किया है। जो लोग मदद करना चाहते हैं, वे कार्यक्रम अधिकारी के मोबाइल नंबर 7999452570 या सहायक संचालक राकेश वानखेडे के मोबाइल नंबर 7024663301 पर सम्पर्क कर सकते हैं।
अब ऐसे बच्चों का संवरेगा जीवन
ये 340 बच्चे ऐसे हैं, जिनके माता या पिता किसी एक की मौत हो जाने से परिवार संकट में है। खासकर पिता की मौत के बाद, क्योंकि परिवार की आजीविका उन्हीं पर निर्भर थी। ऐसे ही परिवार की यशस्वी (15) व उसकी बहन लिजॉय (6) हैं। कोरोना की दूसरी लहर में उनके पिता प्रवीणराज चौहान की मौत हो गई। बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी मां सविता पर है, जो हाउसवाइफ हैं। ऐसी ही स्थिति कई परिवारों की है। अब इंदौर के मददगारों की मदद से इन बच्चों का जीवन संवर जाएगा।