औरत की कोख कभी रिटायर नहीं होती, साइंस अगर साथ दे तो कब्र में जाती औरत तक से औलाद मांगी जाएगी

बीते दो दिनों से गुजरात की 70-साला महिला चर्चा में है। हर ओर शौर्यगान चल रहा है। नहीं-नहीं, महिला ने बॉर्डर पर जाकर आस्तीनें नहीं चढ़ाईं और न ही इस उम्र में कोई नायाब तोहफा दुनिया को दिया। बात दरअसल ये है कि लगभग पोपले मुंह वाली ये बुजुर्ग महिला हाल ही में मां बनी है। प्रेस कॉफ्रेंस के दौरान काले कपड़ों में लिपटी अम्मा की गोद में दुधमुंहा बच्चा दिख रहा है।

झुर्रीदार चेहरे पर हल्की मुस्कान भी है, जिसे कैमरों ने बखूबी कैद किया, लेकिन दामी से दामी कैमरे में वो लेंस नहीं था, जो महिला के दर्द को उतार पाता। वो दर्द, जिसने इस उम्र की औरत को मजबूर कर दिया कि वो अपनी जर्जर हड्डियों और सिकुड़ चुकी कोख से एक औलाद दे सके।

आपने शौर्यगाथा न सुनी हो तो चलिए, साथ में सुनते चलें। जीवूबेन नाम की महिला ने शादी के 45 साल बाद पहली संतान को जन्म दिया। पति की उम्र लगभग 75 साल। जब दोनों ने IVF कराने का फैसला लिया तो डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए। जोड़े ने हार नहीं मानी और एक से दूसरे डॉक्टर तक जाते रहे। आखिरकार एक जगह मदद मिली।

जांच हुई तो पता लगा कि जीवूबेन की कोख सिकुड़कर सूखे पत्ते जैसी हो चुकी थी। ये कोई बीमारी नहीं, बल्कि उम्र का तकाजा था। ठीक वैसे ही, जैसे 6 महीने में बच्चे के दूध के दांत आते हैं। कोई मां फरियाद लेकर किसी डॉक्टर के पास नहीं जाती कि कुछ ऐसा करे, जो दुधमुंहे के सारे दांत एक साथ आ जाएं।

दांतों का आना-जाना कुदरती प्रक्रिया है, लेकिन औरत की कोख के पास ये गुंजाइश नहीं। वो लंबी सांस भरकर ये नहीं कह पाती कि चलो, 60 साल की हुई, अब मेरी छुट्टी। साइंस के जरिए औरत की कोख में 70 की उम्र में बीज भी रोपा जाएगा और फसल भी काटी जाएगी।

जीवूबेन के साथ भी यही हुआ। बड़ी उम्र में बच्चे पैदा करने को गौरव और चमत्कार जैसे शब्दों की माला पहनाते हुए किसी ने उनकी झुर्रीदार और पनीली आंखों में नहीं देखा। मुबारकबाद देते हुए किसी ने उनकी पीठ नहीं देखी जो शायद दर्द की लहरों के बीच भी कमान-सी तनी रहना चाह रही थी। वाहवाही में हम इतने मगन थे कि जीवूबेन की कराह में भी हमने खुशी खोज निकाली।

मैं 34 साल की थी, जब बिटिया हुई। वो इमरजेंसी सी-सेक्शन था। सर्दियों के दिन। मुझे खांसी हो आई। हर ठसके के साथ दर्द का दौरा-सा पड़ता। पेट पर हाथ रखे हुए मैं ऐंठ जाती थी। नर्स से बार-बार पेन किलर मांगती, वो बार-बार बरज देती। बच्चे को दूध पिलाने वाली मां दर्द की दवा से जितना परहेज करे, उतना अच्छा। एक नर्स ने प्यार से समझाया- मां बनी हो, दर्द तो सहना ही होगा।

मेरा गला भरभरा आया- दर्द से कम, मजबूरी जानकर ज्यादा। दर्द तो सहना होगा। मैंने सहा। नींद से जागकर बच्चे को दूध पिलाते हुए। दाएं हाथ में बेटी को संभालकर, बाएं हाथ से लैपटॉप ठकठकाते हुए। कभी एक एक्स्ट्रा इंच चर्बी से नफरत करने वाली मां ने खुद को वजन से समझौता करते भी देखा।

तब मेरी उम्र जीवूबेन से आधी से भी कम थी, लेकिन बेटी के साथ खेलते हुए मैं थक जाती थी। दफ्तर से घर लौटते हुए ऐसे खेल खोजती, जिसमें भागदौड़ न हो। मां बना है तो दर्द सहना होगा- इसी मंत्र का जाप करते हुए वो दौर बीता।

जीवूबेन 70 की हैं। वो वक्त, जब हड्डियों का रस निचुड़ चुका होता है। पीरियड्स 20 साल पहले लाल झंडा दिखा चुके होते हैं। बाल अपनी स्याही गंवा चुके होते हैं और दांत भी अलविदा कहने को होते हैं। तब इस महिला पर दबाव था कि वो वापस जवानी में लौट जाएं। नहीं तो शायद जीवूबेन ‘छूटी हुई औरत’ बन जातीं। शायद 75 साल के उनके पति संतान के लिए कोई दूसरा रास्ता तलाशते, या फिर ये सब नहीं भी होता, तो हर रात मलालों का दौर चलता।

फिलहाल जच्चा-बच्चा स्वस्थ बताए जा रहे हैं। प्रेस कॉफ्रेंस में उन्हें दुनिया की सबसे बड़ी उम्र की मां बताया जा रहा है, लेकिन एक सवाल मुझ-सी तमाम महिलाओं के दिल में सुई की तरह अटका है कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी, जो इस उम्र में जीवूबेन को मां ‘बनना’ पड़ा!

60 की उम्र में लोग रिटायर होते हैं। आरामकुर्सी पर झूलते हुए अखबार पढ़े जाते हैं या फिर आंखें मूंदकर पुराने गाने सुने जाते हैं। ये आराम का वक्त है। शरीर के कलपुर्जे भी अकड़कर अपने रिटायरमेंट की मुनादी करते हैं, लेकिन क्या औरत की कोख के लिए कोई रिटायरमेंट नहीं! साइंस अगर मदद कर सके तो क्या कब्र में जाती औरत तक से औलादें मांगी जाएंगी!

जीवूबेन इनकार नहीं कर सकीं। अगर कर पातीं तो जवानी के दौर में ही शौहर के हाथ थामकर अनाथालय पहुंचतीं और एक गदबदा बच्चा घर ले आतीं। ये भी हो सकता था कि दोनों एक-दूसरे को जस का तस अपना लेते और संजोए हुए पैसों से दुनिया घूमते। या फिर ये भी हो सकता था कि गुजरात का ये जोड़ा बच्चे के जन्म के बाद जब पत्रकारों से घिरा था तो कैमरे का फ्लैश चमकाने की बजाए कोई पत्रकार जीवूबेन की तकलीफ देखता। तब जाकर औरत की कोख बंजर या उर्वर जमीन से हटकर, शरीर का ‘नॉर्मल’ अंग बन पाती, जिसे वक्त के साथ रिटायर होने का हक मिलता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *