Uttar Pradesh: ….. साल 2020 में तीन लड़कियों समेत रोजाना लापता हुए पांच नाबालिग, RTI में हुआ बड़ा खुलासा
आंकड़ों से पता चला है, लापता बच्चों के 113 मामलों के साथ, मेरठ जिला सूची में सबसे ऊपर है. 92 लापता बच्चों के साथ गाजियाबाद दूसरे स्थान पर है. उसके बाद सीतापुर (90), मैनपुरी (86) और कानपुर शहर (80) हैं.
एक RTI के जवाब में, उत्तर प्रदेश के 50 जिलों द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से पता चला है कि पिछले साल राज्य में हर रोज पांच बच्चे लापता हुए. इनमें से कम से कम 18 साल की तीन लड़किया रहीं. ये आंकड़े 1 जनवरी, 2020 से 31 दिसंबर, 2020 तक की अवधि के हैं. जिसके मुताबिक यूपी में कुल 1,763 बच्चे लापता हो गए. इनमें 66 फीसदी से अधिक (1,166) लड़कियां थीं. इनमें से 92 फीसदी (1,070) से अधिक लड़कियां 12 से 18 वर्ष के आयु वर्ग की थीं.
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक 25 जिलों ने दो महीने की देरी के बाद भी कोई विवरण नहीं दिया. बाल अधिकार कार्यकर्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट नरेश पारस ने कहा, इन जिलों में लखनऊ, वाराणसी, गौतम बौद्ध नगर, गोरखपुर और बरेली भी शामिल हैं. पारस ने आगे कहा, “अगर सभी जिलों के आंकड़ों को संकलित किया जाए तो लापता बच्चों की वास्तविक संख्या बहुत अधिक होगी.”
आंकड़ों से पता चला है, लापता बच्चों के 113 मामलों के साथ, मेरठ जिला सूची में सबसे ऊपर है. 92 लापता बच्चों के साथ गाजियाबाद दूसरे स्थान पर है. उसके बाद सीतापुर (90), मैनपुरी (86) और कानपुर शहर (80) हैं. आगरा जिले में पूछताछ के दौरान 11 लड़कियों समेत 23 बच्चे गायब हो गए.
1461 बच्चों का पता चला
आरटीआई से यह भी पता चला है कि पिछले साल लापता हुए 1,763 बच्चों में से 1,461 का पता लगाया गया था और पुलिस ने उन्हें बरामद किया था. हालांकि, 200 लड़कियों समेत 302 बच्चे अभी भी लापता हैं.
राज्य के अधिकारियों से ऐसे मामलों को और गंभीरता से लेने का आग्रह करते हुए, पारस ने कहा, “तथ्य यह है कि यूपी में हर दिन औसतन पांच बच्चे लापता हो रहे हैं, जिनमें से ज्यादातर लड़कियां हैं, यह काफी गंभीर है. गुमशुदा बच्चों के मामलों की मासिक आधार पर हर जिले में पुलिस मुख्यालय में शिकायतकर्ताओं और जांचकर्ताओं की उपस्थिति में समीक्षा की जानी चाहिए.
ये है सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार, लापता बच्चे के मामले में पुलिस को शिकायत के 24 घंटे के भीतर आईपीसी की धारा 363 (अपहरण) के तहत प्राथमिकी दर्ज करनी होती है. यदि चार महीने के भीतर गुमशुदा बच्चा नहीं मिलता है, तो मामले को प्रत्येक जिले में मौजूद पुलिस की मानव तस्करी विरोधी इकाई के पास भेजा जाना आवश्यक है.