ग्वालियर-चंबल,: बार-बार खाद का संकट क्यों? … किसान लंबी लाइन में लगने को मजबूर, क्या खाद की अचानक मांग बढ़ी है? जानिए, इसके पीछे की वजह

ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड में खाद का संकट कम नहीं हो रहा है। पहले DAP के लिए लंबी-लंबी लाइनें लगीं, अब किसान यूरिया के लिए भटक रहा है, वह भी समय पर नहीं मिल पा रहा है। खाद वितरण केंद्रों पर किसानों की लाइन लग रही है। खाद न मिलने से नाराज किसान कई दिनों से जगह-जगह प्रदर्शन भी कर रहे हैं। भिंड, सागर, मुरैना, गुना, अशोकनगर में किसानों ने खाद के लिए चक्काजाम किया। वहीं, सागर में किसानों ने पटरियों पर बैठकर रेल तक रोक दी।

समझते हैं, क्यों DAP और यूरिया के लिए इतनी मारामारी है? सरकार और प्रशासन के खाद की उपलब्धता को लेकर तमाम दावों के बाद भी खाद वितरण केंद्रों पर किसानों की लाइनें क्यों लग रही हैं? पहले DAP के लिए और अब यूरिया के लिए किसान क्यों परेशान है?

क्या होती है DAP और यूरिया?
DAP खाद कृषि में उपयोग होने वाली रासायनिक उर्वरक है, जिसका पूरा नाम डाई अमोनियम फॉस्फेट है। DAP पौधों में पोषण के लिए नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की कमी पूरी करने के लिए सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है। इसमें 18% नाइट्रोजन, 46% फास्फोरस (Contains) पाया जाता है। इसे बीज के साथ मिलाकर बोवनी की जाती है। वहीं, यूरिया का उपयोग फसल में पानी देने के समय होता है। जिस समय खेतों में पानी लग रहा होता है, उस समय इसका छिड़काव किया जाता है। यह मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ाता है। अलग-अलग फसलों में अलग-अलग मात्रा में DAP और यूरिया डाला जाता है।

क्यों हुई मारामारी?
हरिपुर गांव के किसान अतुल लुम्बा ने बताया कि अमूमन नवंबर महीने में DAP की जरूरत पड़ती थी। अक्टूबर के अंतिम हफ्ते में खेतों में सिंचाई कर बोवनी के लिए तैयारी की जाती थी। इसके बाद DAP की आवश्यकता होती थी, लेकिन इस साल अक्टूबर के मध्य में बारिश हो गई। इन इलाकों में एक ही दिन में कई इंच तक बारिश दर्ज की गई। बारिश होने से खेतों में नमी आने से खेत बोवनी के लिए तैयार हो गए। इसी वजह से किसानों को DAP की जरूरत अक्टूबर में ही पड़ गई। यही वजह रही कि खाद की उपलब्धता नहीं हो पाई। कृषि विभाग ने नवंबर में जरूरत के हिसाब से ऑर्डर लगाए हुए थे।

उधर, अक्टूबर के मध्य में ही जिन किसानों ने फसल की बोवनी कर दी थी, अब उन्हें यूरिया की जरूरत भी जल्दी पड़ गई। उनकी फसलें 4-5 इंच तक बढ़ गई हैं। किसानों ने फसलों में पानी देना भी शुरू कर दिया है। यही सबसे सही समय होता है यूरिया का छिड़काव करने का। पानी के साथ ही वह घुल जाता है और सही परिणाम देता है। सूखे खेतों में अगर यूरिया डाला जाए, तो वह घुलता नहीं है और उसका कोई उपयोग नहीं रह जाता। यही वजह है कि किसान अब यूरिया के लिए भटक रहे हैं।

खाद की मात्रा भी बढ़ी?
कुछ समय पहले तक एक बीघा में 20 किलो खाद डाली जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे किसान इसकी मात्रा बढ़ाने लगे। अब एक बीघा में 50 किलो खाद किसान डाल रहे हैं, लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में अभी तक एक बीघा में 20 किलो की मात्रा ही चली आ रही है। यही कारण है कि कृषि विभाग 20 किलो के हिसाब से ही आकलन कर खाद का ऑर्डर देते हैं। इसी हिसाब से किसानों को 5 बीघा के लिए 2 कट्टे खाद दिए जाते हैं। मात्रा बढ़ जाने से किसानों के लिए यह खाद कम पड़ जाती है।

पारंपरिक खेती ही करते हैं किसान?
अतुल लुम्बा बताते हैं कि ग्वालियर-चम्बल इलाके में किसान पारंपरिक रूप से DAP ही खेतों में डालते आ रहे हैं। इसलिए अन्य विकल्पों की तरफ वह नहीं जाते। किसानों ने दूसरी खाद का प्रयोग किया नहीं है। इसी वजह से किसान DAP ही लेना चाहते हैं। दूसरी तरफ, अन्य खाद की कीमत भी DAP से ज्यादा है। DAP की एक बोरी जहां 1200 रुपये में मिलती है, तो वहीं NPK खाद की बोरी 1450 रुपये की आती है। ऐसे में किसानों को एक बोरी पर 250 रुपये अतिरिक्त देना पड़ते हैं। इसकी वजह से भी फसल की लागत बढ़ जाती है।

उन्होंने बताया कि अलग-अलग राज्यों के किसान टेक्नोलॉजी के साथ अपडेट हो रहे हैं। पंजाब में तो किसान मिट्टी और पानी तक का परीक्षण करते हैं। वे यह तक जांच करा लेते हैं कि पानी में फॉस्फोरस तो नहीं है। अगर पानी में फॉस्फोरस पाया जाता है, तो फिर वह खाद नहीं डालते, क्योंकि फास्फोरस की कमी पानी पूरी कर देता है। इस तरह मिट्टी का परीक्षण करवाकर उसके हिसाब से खेती करते हैं, लेकिन मध्यप्रदेश के किसान पारंपरिक रूप से चली आ रही धारणाओं के हिसाब से ही खेती कर रहे हैं। वे निरंतर खाद की मात्रा बढ़ा रहे हैं। यही वजह है कि हर बार मध्यप्रदेश में खाद के लिए मारामारी होती है।

सरकार की प्राथमिकता अलग?
इफको डायरेक्टर अमित प्रताप सिंह के मुताबिक सरकारी की प्राथमिकता में किसान को दिए जाने वाला खाद नहीं रहा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमोनिया और सल्फर जैसा खाद तैयार करने वाला रॉ-मटेरियल की कीमत चार गुना बड़ गई है। इसलिए समय पर पर्याप्त मात्रा में खाद तैयार नहीं हो सकी। खाद की कीमत ज्यादा होने से ज्यादा सब्सिडी दिए जाने की जरूरत है। सरकार समय से प्लानिंग कर लेती तो इस तरह की कमी से नहीं जूझना होता।

भिंड के कृषि विभाग के उप संचालक शिवराज सिंह यादव के मुताबिक DAP भारत सरकार द्वारा दिए जाना बंद कर दिया गया, उसके स्थान पर NPK वितरित किया जा रहा है। DAP विदेश से आता है। कोरोना की वजह से फैक्टरी बंद रहने से कम मात्रा में DAP की उपलब्धता हो सकी है। यूरिया जल्द ही आने की सूचना है। NPK खाद पर्याप्त मात्रा में है। NPK के उपयोग से फसल में कीट पतंगे कम लगते हैं। NPK में मुख्य रूप से स्वस्थ पौधों के विकास के लिए आवश्यक तीन सबसे महत्वपूर्ण एवं प्राथमिक पोषक तत्व नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P) और पोटेशियम (K) शामिल होते हैं।

अभी प्रदेश में उपलब्ध खाद?
सरकार के मुताबिक प्रदेश में ढाई लाख टन यूरिया की उपलब्धता है, जबकि DAP 75000 टन रखा हुआ है। बोवनी लगभग हो चुकी है इसलिए यूरिया की मांग बढ़ी है। प्रतिदिन चार से पांच रेलवे रेल के माध्यम से यूरिया आ रही है। रेलवे की एक रैक में 2700 से 2800 टन खाद होती है। बोवनी होने के बाद अब DAP की मांग की गई है। प्रतिदिन दो रैक DAP अभी आ रही है।

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