गर्मी के मौसम में सोच-समझकर करें फलों को सेवन, बन सकते हैं कैंसर तक के मरीज

. अबकी बार जब आप बाजार से आम खरीदें तो पहले इस बात को लेकर जरूर आश्वस्त हो लें कि जो आम आप खरीद रहे हैं, उसे कहीं कार्बाइड से तो नहीं पकाया गया है। आप मानें या न मानें बाजार में अधिकांश जगहों पर उपलब्ध आम कार्बाइड से पकाए जाते हैं। जरूरी नहीं है कि काबाईड से पके आम पूरी तरह से पके ही हों। अधिकांश आम बाहर से तो पके नजर आते हैं, लेकिन भीतर से ये अधपके ही होते हैं। इसका पता तभी चल पाता है, जब आम को काटते हैं।

कार्बाइड से पके आम देखने में भले ही आपको प्राकृतिक तौर पर पके आमों की तरह नजर आएं, लेकिन ये आपके स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं। इनके सेवन से त्वचा कैंसर, गले का कैंसर, मुंह का अल्सर, डायरिया, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, उच्च रक्तचाप, स्मृति लोप जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

सस्ता होने के साथ ही आसानी से मिल जाता है कार्बाइड

दिल्ली में उपलब्ध आम अभी आंध्रप्रदेश के विजयवाड़ा व विजयनगर से आ रहे हैं। आजादपुर मंडी के कारोबारियों का कहना है कि दक्षिण भारत से आम की आवक दिल्ली में फरवरी से ही शुरू हो जाती है। जून माह के प्रथम सप्ताह से उत्तर प्रदेश से आम की आवक दिल्ली में शुरू हो जाएगी। कारोबारी बताते हैं कि मंडी से खुदरा कारोबारी कच्चे आम लेकर जाते हैं। ज्यादा मुनाफे की लालच में वे जल्द से जल्द आम को बेचना चाहते हैं। इस कारण वे आम को पकाने में कार्बाइड का इस्तेमाल करते हैं। फल को पकाने की जो अन्य हानिकारक तकनीक हैं, वे महंगी हैं। जबकि बाजार में कार्बाइड न सिर्फ आसानी से मिल जाता है, बल्कि सस्ता भी होता है। ऐसे में प्रतिबंध के बावजूद अधिकांश खुदरा कारोबारी कार्बाइड से पके आम बेचते हैं। कम लागत आने के कारण ये आम सस्ते भी होते हैं। आम के अलावा पपीता व केला भी कार्बाइड की मदद से पकाया जाता है।

ऐसे पकाया जाता है आम

पेटियों में कच्चे आम को रखने के दौरान कार्बाइड के छोटे-छोटे टुकड़े डाले जाते हैं। इस दौरान इससे घातक गैस निकलती है। गोदामों के आसपास से गुजरने पर भी कुछ अजीब तरह की गैस का अहसास होगा। बागवानी विशेषज्ञों का कहना है कि फलों की नमी सोखकर कार्बाइड एसिटीलीन नामक गैस बनाती है। बाद में यह गैस एसिटलडिहाइड नामक गैस के रूप में परिवर्तित हो जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है। इसके संपर्क में आकर 12 घंटे में फल पक जाता है।

सावधान! ये फल दिखाने के और हैं खाने के और

शरीर की जरूरी खुराक और पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए हम सब भोजन के अलावा फलों आदि पर आश्रित रहते हैं। बाजार में जाते हैं और नाना प्रकार के फल अपने रूप-रंग से हमें आकर्षित करते हैं। चाहे उनका मौसम हो या न हो। यहीं पर हमें चेतने की जरूरत है। एक क्षण ठिठककर सोचिए कि अगर उस फल के पकने का सीजन नहीं है तो कैसे पका फल बाजार में बिक रहा है। यह रसायनों का कमाल है। थोड़े से लोभ के लिए लोग जिंदगी से खिलवाड़ करने में लगे हैं। ये फल हमारे शरीर को पुष्ट कम नष्ट ज्यादा करते हैं। पेश है एक नजर:

पकने की प्राकृतिक प्रक्रिया फलों का पकना एक प्राकृतिक प्रक्रिय होती है, जिसमें फल ज्यादा मीठे, कम हरे, मुलायम और रसीले, सुस्वादु होते हैं। आमतौर पर यह प्रक्रिया पेड़ों की डाली पर ही होती है, लेकिन कारोबार करने के दौरान पके फलों को दूर तक भेजने में बहुत नुकसान होता है, लिहाजा उनका भंडारण करके पकाया जाता है। भंडारण में भी प्राकृतिक तरीके से पकने की प्रक्रिया धीमी होती है। पकने के लिए किए गए भंडारण के दौरान इनकी रसायनिक और एंजाइम संरचना में बदलाव होता है। पकने की इस प्रक्रिया में एंजाइम टूटते हैं साथ ही स्टार्च जैसे पॉलीसैचराइड्स हाइड्रोलिसिस प्रक्रिया से गुजरते हैं। यह प्रक्रिया स्टार्च को फ्रक्टोज, ग्लूकोज, सुक्रोज जैसे छोटे अणुओं में तोड़ देती है

कैल्शियम कार्बाइड के नुकसान

  • इसमें घातक और खतरनाक रसायन आर्सेनिक व फास्फोरस हाइड्राइड होते हैं। जो इंसानों पर प्रतिकूल असर डालते हैं।
  •  इससे पके फल खाने से पेट खराब रहता है। आंतों का कार्यशैली गड़बड़ाती है।
  •  इन तत्वों के चलते खून और ऊतकों में कम ऑक्सीजन पहुंचती है जो हमारे
  • तंत्रिका तंत्र पर असर डालता है।

ध्यान रखें

  • अलबत्ता बाजार से कृत्रिम रूप से पकाए फलों को खरीदे ही नहीं, अगर गलती से खरीद लिया है तो इस्तेमाल से पहले फल को अच्छी तरीके से धोएं।
  •  आम और सेब जैसे फलों को समूचा खाने की जगह काटकर खाएं।
  • ’जितना संभव हो, उपभोग से पहले फल को छील लें।

ऐसे करें पहचान

  • प्राकृतिक रूप से पका फल आकर्षक होगा, लेकिन पूरे फल का रंग एक समान नहीं होगा
  •  फल का वजन अच्छा होगा
  •  महक अच्छी होगी
  •  सुदृढ़ और चटख होगा
  •  स्वाद मीठा और अच्छा होगा
  •  ज्यादा दिन खराब नहीं होगा
  • कृत्रिम रूप से पका फल
  •  पूरे फल का एक जैसा रंग होता है, लेकिन आकर्षक नहीं दिखता
  •  महक कम, फल सुदृढ़ दिखेगा
  • फल पका दिखेगा, फिर भी आंतरिक हिस्से में खट्टापन रहेगा
  •  छिलके का जीवनकाल लंबा नहीं होगा।
  • दो या तीन दिन में ही काले धब्बे दिखने लगेंगे

पकाने की कृत्रिम प्रक्रिया

इथाईलीन और एसिटीलीन जैसे असंतृप्त हाइड्रो कार्बन फलों को तेजी से पकाते हैं। हालांकि इस प्रक्रिया में फल का इंद्रिय ग्राही चरित्र जैसे स्वाद, महक, देखने में आकर्षक आदि काफी हद तक चौपट हो जाते हैं। शीघ्रता से पकाने के लिए कारोबारी कम समय वाले फलों में भी जरूरत से ज्यादा रसायन डाल देते हैं जो इंसानी इस्तेमाल के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकता है। आजकल फलोंको पकाने के लिए बाजार में तमाम रसायन मौजूद हैं। इनमें कैल्शियम कार्बाइड, कार्बन मोनॉक्साइड, पोटैशियम सल्फेट, इथीफोन, पोटैशियम डाई हाइड्रोजन आर्थोफास्फेट, पुट्रेसिन, ऑक्सीटोसिन, फोटोपोरफायरिनोजेन आदि हैं।

खतरनाक रसायन है कैल्शियम कार्बाइड

इसे आमतौर पर ‘मसाला’ नाम से जाना जाता है। फलों को पकाने में सर्वाधिक इसी का इस्तेमाल होता है। कई देशों में इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध है। शुद्ध रूप में ये रंगहीन होता है, लेकिन अन्य रूपों में यह काले, सफेद-भूरे रंग का होता है। लहसुन की तरह इसकी महक होती है। पानी (नमी) के साथ मिलकर यह एसिटिलीन गैस बनाता है, जो फलों को तेजी से पकाती है। आम, केला, पपीता, खुबानी और आलूबुखारे को बहुतायत में इसी से पकाया जाता है।

क्या है कानून प्रावधान

खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियमों 2011 के अनुसार. कोई भी व्यक्ति कार्बाइड से कृत्रिम रूप से पकाए गए फलों को नहीं बेच सकता है। कानून की धारा 50 के अनुसार, अगर तय मानकों पर किसी विक्रेता के फल खरे नहीं उतरते तो उस पर पांच लाख तक जुर्माना लगाया जा सकता है। इसी कानून की धारा 59 में ऐसा करने वालों के लिए सजा का भी प्रावधान है। अगर किसी को ऐसा करता कोई व्यक्ति मिल जाए तो उसकी शिकायत राज्य के फूड सेफ्टी कमिश्नर के यहां की सकती है।

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