चकाचक दिखने की होड़ ….. सुंदर दिखने की चाह में उड़ाती हैं लाखों, सोशल मीडिया पर कम लाइक मिलने पर हो जाती हैं डिप्रेस्ड

सोशल मीडिया पर सुंदर दिखने की होड़ में हर उम्र की महिलाएं डिप्रेशन का शिकार हो रही हैं। मनोचिकित्सकों के मुताबिक लोग खुद को फिट और सुंदर दिखने के लिए फोटो एडिट कर सोशल मीडिया पर डालते हैं। उनकी ये आदत उनको डिप्रेशन और बाइपोलर डिसऑर्डर का शिकार बना रही है। साथ ही फैमिली और समाज की ओर से उन्हें हर फील्ड में बेस्ट आने की डिमांड उनको अवसाद की ओर धकेल रही है।

सुंदर दिखने की होड़ में हर उम्र की महिलाएं डिप्रेशन का शिकार हो रही हैं।
सुंदर दिखने की होड़ में हर उम्र की महिलाएं डिप्रेशन का शिकार हो रही हैं।

लड़कियां अच्छा दिखने के लिए अपने कपड़े, मेकअप और फिटनेस पर काफी पैसे खर्च करती हैं। सोशल मीडिया पर तस्वीरें पोस्ट करने को लेकर होड़ लगी हुई है। सभी सोशल साइट्स पर खुद को खूबसूरत दिखाना चाहते हैं। हर फोटो पर लाइक और कमेंट को लेकर खुद से ही तुलना करने लगते हैं। कई बार कमेंट या लाइक कम आने पर भी लोग तनाव में आ जाते हैं। सोशल मीडिया पर अपनी इमेज को लेकर युवा लड़कियां इतना ज्यादा प्रेशर लेती हैं कि इससे उनकी मेंटल हेल्थ पर असर दिख रहा है।

कई बार कमेंट या लाइक कम आने पर भी लोग तनाव में आ जाते हैं।
कई बार कमेंट या लाइक कम आने पर भी लोग तनाव में आ जाते हैं।

डोपामाइन के कम होने पर होता है डिप्रेशन
दिल्ली के डॉक्टर अजय शर्मा के अनुसार, बाइपोलर डिसऑर्डर एक तरह की मानसिक बीमारी होती है। जो डोपामाइन हार्मोन में असंतुलन होने के कारण होती है। इस असंतुलन की वजह से एक व्यक्ति के मूड या बर्ताव में बदलाव आने लगते हैं। अगर कोई व्यक्ति बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित होता है तो उसे डिप्रेशन के दौरे पड़ते हैं यानी उसका मूड या तो बहुत हाई या लो रहता है। इस डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति कोई भी फैसला बिना सोचे समझे ले लेता है। उसका मन एक जगह पर स्थिर नहीं रहता है।

बाइपोलर डिसऑर्डर एक तरह की मानसिक बीमारी होती है। जो डोपामाइन हार्मोन में असंतुलन होने के कारण होती है।
बाइपोलर डिसऑर्डर एक तरह की मानसिक बीमारी होती है। जो डोपामाइन हार्मोन में असंतुलन होने के कारण होती है।

लोग खुद से करने लगते हैं तुलना
मनोचिकित्सक बिंदा सिंह के मुताबिक, फेसबुक या इंस्टाग्राम जैसी सोशल साइट पर इस तरह की परेशानी सिर्फ युवाओं में ही नहीं बल्कि 35 से 45 साल की महिलाओं और पुरुषों में देखने को मिल रही है। मनोचिकित्सक के मुताबिक लोग खुद को फिट और सुंदर दिखने के लिए फोटो एडिट कर सोशल मीडिया पर डालते हैं लेकिन असल जिंदगी में खुद को देखकर धीरे-धीरे तनाव, बेचैनी और अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं। किशोरियों में तो अच्छे दिखने के दबाव के साथ करियर में भी अव्वल आने का प्रेशर रहता है।

फेसबुक पर कम लाइक से पढ़ाई में पिछड़ी
दिल्ली की रहने वाली सानिया 12वीं की छात्रा है। जब उन्होंने कॉलेज जाना शुरू किया तो बहुत खुश थी। धीरे-धीरे वह शांत रहने लगी। परिवार के लोगों से बातचीत भी कम कर दी। घरवालों के साथ खाना भी नहीं खाती थी। उसके इस बर्ताव से परिवार के लोग परेशान रहने लगे। बात करने पर वह रोने लगती और किसी से बात नहीं करना चाहती थी। परिवार के लोगों ने डॉक्टर से कंसल्ट किया। जब उसकी काउंसलिंग की गई तो पता चला कि कॉलेज में अच्छा दिखने की होड़ और अपने दोस्तों से फेसबुक पर कम लाइक को लेकर उसमें हीन भावना आने लगती है। वह अपने भविष्य को लेकर सोचती रहती है और डिप्रेशन की शिकार हो गई है। इस वजह से वे अपनी पढ़ाई में भी पिछड़ गई है।

फेसबुक पर कम लाइक को लेकर हीन भावना आने लगती है।
फेसबुक पर कम लाइक को लेकर हीन भावना आने लगती है।

जॉब छोड़ी तो बदल गया व्यवहार, हिंसक हुई लड़की
बेंगलुरु की रहने वाली 28 साल की अंजू को कुछ फैमिली इश्यू की वजह से जॉब छोड़कर घर पर रहना पड़ा। वह अपने दोस्तों से दूर हो गई। इस वजह से वह करियर में भी पीछे हो गई। कभी वह इतनी हिंसक हो जाती थी कि कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता था। दोस्तों के साथ झगड़े और मारपीट की शिकायत आती थी। वह सिरदर्द और मानसिक रूप से तनाव में थी। अब उसका एक साल से इलाज चल रहा है।

करियर में भी पीछे होने से हिंसक हो रहे लोग
करियर में भी पीछे होने से हिंसक हो रहे लोग

सेहत पर सोशल मीडिया का असर
साइकोथेरेपिस्ट बिंदा सिंह ने बताया कि लोगों का ज्यादातर समय अब मोबाइल पर बीत रहा है। लोग अपनों से ज्यादा सोशल मीडिया पर समय बिताते हैं। ऐसे में सोशल मीडिया का असर उनकी सेहत पर भी दिखने लगा है। किशोरों में अवसाद के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इस समस्या को गंभीरता से लेने की जरूरत है। इस दौरान किशोरों में कई हार्मोनल और शारीरिक परिवर्तन होते हैं। ऐसे में अवसाद का शिकार होना उन बच्चों के करियर और भविष्य के लिए खतरा साबित हो सकता है। घर और स्कूल के वातावरण को अनुकूल बनाकर छात्रों में अवसाद को कम करने में मदद मिल सकती है।

अकेलापन और नया न करने का मन हो तो हो जाएं अलर्ट
डिप्रेशन एक मनोवैज्ञानिक बीमारी है, जिसमें व्यक्ति भीड़ में रहने के बाद भी खुद को अकेला पाता है। उसके अंदर जीने की और कुछ नया करने की इच्छा मरने लगती है। मनोचिकित्सक बताती है हर व्यक्ति अपनी जिंदगी में कभी ना कभी किसी बात को लेकर मायूस होता है, लेकिन अगर यह मायूसी ज्यादा समय तक रही तो वो डिप्रेशन का रूप लेने लगती है। इस दौरान दिमाग को पूरा आराम नहीं मिल पाता और उस पर हमेशा एक दबाव बना रहता है। तनाव के कारण शरीर में कई हार्मोन का स्तर बढ़ता जाता है, जिनमें एड्रीनलीन और कार्टिसोल मुख्य है।

भूख लगने से लेकर हंसने-रोने में छिपे हैं लक्षण
जरूरत से ज्यादा भूख लगना या भूख नहीं लगना, छोटी-छोटी बात पर दुखी हो जाना, मामूली सी बात पर जोर-जोर से हंसने या रोने लगना, हर बात पर गुस्सा होना या फिर बिना बात कर किसी से झगड़ा करना और छोटी बातों पर चिल्लाना और बार-बार मरने का ख्याल मन में आना, किसी से बात नहीं करना डिप्रेशन के लक्षण है।

गंभीर होता है तनाव लेना, लंबा चलता है इलाज
मनोरोग चिकित्सक बिंदा सिंह के अनुसार डिप्रेशन काउंसलिंग, व्यवहार परिवर्तन, ग्रुप थेरेपी, दवाइयां या आर्ट थेरेपी से इलाज किया जाता है। सही इलाज के बाद डिप्रेशन के मरीजों में से अधिकांश पूरी तरह ठीक होकर अपनी सामान्य जिंदगी में लौट जाते हैं। वह बताती हैं कि पहली बार डिप्रेशन हुआ है तो दो से 6 महीने में ठीक हो जाता है, लेकिन इसकी दवा लगभग एक साल तक चल सकती है। इस बीच एक दिन भी दवा छोड़नी नहीं चाहिए। दोबारा डिप्रेशन होने पर दवा लंबी चल सकती है।

बच्चों के साथ समय बिताएं पेरेंट्स
पेरेंट्स को बच्चों के इन लक्षणों को गंभीरता से लेना चाहिए। बच्चों का ध्यान कहीं और लगाएं। उन्हें बाहर वॉक पर ले जाएं और उनके साथ आउटडोर गेम्स खेलें। ऐसे में ताजी हवा और धूप से उन्हें फायदा मिलेगा। अगर समस्या खत्म नहीं होती तो अपने डॉक्टर से मदद ले सकते हैं। बच्चों में अवसाद के कारण चिड़चिड़ापन हो जाता है। वे खुद भी नहीं समझते कि ऐसा क्यों कर रहे हैं।

बच्चों के साथ आउटडोर गेम्स खेलें।
बच्चों के साथ आउटडोर गेम्स खेलें।

मनोचिकित्सकों की सलाह

  • समय पर सोना, जागना, खाना-पीना और व्यायाम करें।
  • अपनी पसंद का काम करें
  • अपनी भावनाओं को जाहिर करें
  • अगर डर, उदासी है तो छिपाएं नहीं परिजनों- दोस्तों को बताएं
  • जितना हो सके पॉजिटिव सोचें।
  • बुरे वक्त में परिवार के लोगों से बात करें

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