भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर खुलेआम मिल रही ड्रग्स…..पुलिस और BSF की मुस्तैदी के बाद भी….

पुलिस और BSF की मुस्तैदी के बाद भी अंडरकवर ……. रिपोर्टर ने आसानी से खरीदी ड्रग्स….

साल 2016 में एक फिल्म आई थी उड़ता पंजाब। इसका निर्देशन अभिषेक चौबे ने किया था। इसमें पंजाब के कई जिलों में ड्रग्स के कारोबार और उसकी चपेट में आ रही पूरी पीढ़ी को दिखाया गया था। इस फिल्म ने सियासी गलियारे में खूब सूर्खियां बटोरीं। 2017 विधानसभा चुनाव में भी ड्रग का मुद्दा हावी रहा। यहां तक कि सरकार भी बदल गई। तब कांग्रेस ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद ड्रग पर रोक लगेगी। अब 5 साल पूरे होने को है, विधानसभा चुनाव भी करीब हैं।

ऐसे में पंजाब में ड्रग के जहरीले कारोबार पर कितनी रोक लगी है, इसकी पड़ताल के लिए  ………रिपोर्टर पूनम कौशल ने भारत-पाकिस्तान बॉर्डर के कुछ गांवों का जायजा लिया। जहां से चौंकाने वाली चीजें सामने आईं।

पढ़िए उनकी ये ग्राउंड रिपोर्ट…

भारत पाकिस्तान के बीच वाघा-अटारी बॉर्डर से 3 किलोमीटर दूर एक गांव है रानिके। हरे-भरे खेतों से घिरी एक पतली सड़क गांव की तरफ जाती है। किसान गेहूं के खेतों में छिड़काव कर रहे हैं। लहलहाते सरसों के पीले फूल माहौल को खुशनुमा बना रहे हैं, लेकिन जैसे ही मेरी गाड़ी गांव में घुसती है, कुछ और ही मंजर दिखता है। एक बुजुर्ग मां नशे में धुत अपने बेटे का हाथ पकड़ कर घर ले जा रही हैं। वही बगल में बेंच पर एक अधेड़ व्यक्ति बैठा है, जिसने सुबह से ही चिट्टे का इंजेक्शन लिया है।

यहां आसपास के इलाके में आप जिससे भी बात करें, दो शब्द जरूर सुनाई देते हैं- नशा और बेरोजगारी। अटारी में किन्नू का जूस बेच रहे बलवीर बताते हैं, ‘कुछ दिन पहले एक लड़का सामने खेत में गया और नशे का इंजेक्शन लगाकर जैसे ही बाहर आया गश खाकर सड़क पर गिर गया। उसके सिर से खून बह रहा था। किसी तरह उसे अस्पताल भिजवाया।’ वे कहते हैं कि यहां नशा ऐसे मिल जाता है जैसे ठिए पर चाय। वो अपनी बात अभी पूरी भी नहीं कर पाते हैं कि पास ही बैठे एक बुजुर्ग सतर्क निगाहों से बलवीर की तरफ देखते हैं और चुप हो जाते हैं।

एक जवान बेटे के पिता कहते हैं, ‘यहां ऐसा कोई घर नहीं है जो नशे से प्रभावित ना हो। घर-घर में नशा है। मेरा लड़का जवान है, मैं पूरा दिन उस पर नजर रखता हूं।’ शाम ढल रही है। भर्ती की तैयारी कर रहे नौजवान दौड़ लगा रहे हैं। पूछने पर उनमें से एक नौजवान बताता है, ‘कुछ लोगों ने मेरे भाई को ड्रग्स केस में फंसा दिया था, वो अब जेल में है।’ वे कहते हैं कि हमारे साथ स्कूल में पढ़ने वाले कई लड़के अब ड्रग्स लेने लगे हैं, कुछ ड्रग्स बेच भी रहे हैं।

क्या यहां ड्रग्स मिल जाती हैं? इस पर हंसते हुए एक नौजवान कहता है, ‘जितनी चाहिए उतनी मिल जाएगी, लेकिन आपको कोई नहीं देगा। पैसा दीजिए, यहीं पहुंच जाएगी।’ युवाओं के इस समूह में कोई भी ऐसा नहीं था, जो सीधे तौर पर ड्रग्स से प्रभावित ना हो। इनका कोई ना कोई दोस्त या परिजन ड्रग्स की गिरफ्त में है।

भारत-पाकिस्तान बॉर्डर से कुछ ही किलोमीटर दूरी पर स्थित रानिके गांव में इसी रास्ते से होकर जाया जाता है।
भारत-पाकिस्तान बॉर्डर से कुछ ही किलोमीटर दूरी पर स्थित रानिके गांव में इसी रास्ते से होकर जाया जाता है।

यहां के लोगों का दावा है कि बॉर्डर एरिया के ज्यादातर गांवों में ड्रग्स आसानी से मिल जाती है। वे कहते हैं कि यहां कुछ नशेड़ी भी अपने पास चिट्टा रखते हैं और दूसरे नशेड़ियों को अधिक दाम पर बेच देते हैं। फौज की तैयारी कर रहे हैं, इन्हीं लड़कों में से एक युवक कहता है, ‘ये बॉर्डर एरिया है, यहां ड्रोन से निगरानी की जाती है। जब ड्रोन आता है तो पूरे एरिया में अलर्ट हो जाता है। हम रात 7 बजे के बाद घर से भी नहीं निकलते हैं। यहां चप्पे-चप्पे पर स्पेशल ड्यूटी के जवान होते हैं।’

इस दावे की पुष्टि ड्रग्स खरीदकर ही की जा सकती थी। 2 युवा इसमें मेरी मदद करने के लिए तैयार हो जाते हैं। इनमें से एक बताता है, ‘मेरे साथ स्कूल में पढ़ने वाला एक लड़का अब ये काम कर रहा है। वो सिर्फ जानकार या भरोसेमंद संपर्क को ही सप्लाई करता है।’

तय होता है कि हम अगले दिन ड्रग्स खरीदकर देखेंगे। हम पुल कंजरी (पुल कंजरी भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित एक ऐतिहासिक स्थल है, जिस पर 1971 के युद्ध के दौरान कुछ दिनों के लिए पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया था और बाद में सिख रेजिमेंट के सैनिकों ने इसे जीता था) पर मिलने का वादा करते हैं, लेकिन अगले दिन ये दोनों ही युवा पीछे हट जाते हैं। दरअसल उनके परिजनों को ये डर था कि पैडलर को पता चल जाएगा और फिर वो इसका बदला लेगा।

नशे की ओवरडोज से मारे गए एक युवा के चाचा हमारे लिए ड्रग्स खरीदने के लिए तैयार होते हैं, लेकिन उन पर भी डर हावी हो जाता है और वो पीछे हट जाते हैं। फिर कुछ नशेड़ी अपने पास रखी ड्रग हमें बेचने को तैयार हो जाते हैं, लेकिन इस शर्त पर कि हम ये अपने व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए ले रहे हैं, रिपोर्ट में इसका जिक्र नहीं करेंगे।

यहां सबको पता है कि कौन-कौन ड्रग्स का कारोबार करता है, लेकिन डर ऐसा है कि कोई नाम नहीं लेता। अधिकतर लोग एक ही बात कहते हैं कि यहां पुलिस है, BSF है, आर्मी है, फिर भी खुलेआम ड्रग्स बिक रही है, जाहिर है बेचने वालों के संपर्क बहुत ऊपर तक हैं। उनका तो कुछ नहीं होगा, लेकिन जो आपकी मदद करेगा उसे जरूर नुकसान होगा।

आखिर में मैंने तय किया कि मैं खुद ही ड्रग्स खरीदूंगी। एक ग्राहक बन कर। एक सूत्र ने हमें बताया था कि अटारी गांव और रानिके गांव में बहुत आसानी से ड्रग्स मिल जाती है। इसके बाद मैं रानिके गांव के लिए निकल गई। अंधेरा हो चुका था। गांव के बाहर 6-7 लड़के खड़े थे। मैंने उनसे पूछा- कुछ है? वो सवाल करते हैं, ‘क्या?’ मैं जवाब देती हूं, ‘आप जानते हैं मैं किसकी बात कर रही हूं।’ ये सुनकर वो मुस्कुराने लगते हैं। मुझे गौर से देखते हैं, गाड़ी का चक्कर लगाते हैं। गाड़ी का नंबर ध्यान से देखते हैं।

पिछले कुछ सालों से पंजाब में बड़ी संख्या में ड्रग के मामले सामने आते रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा भी बना था।
पिछले कुछ सालों से पंजाब में बड़ी संख्या में ड्रग के मामले सामने आते रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा भी बना था।

फिर एक युवा जवाब देता है, ‘हमारे पास नहीं हैं। देखते हैं व्यवस्था हो पाती है क्या।’ मैं पलटकर कहती हूं, ‘मुझे बताया गया है कि चिट्टा बेचने वाले नए आदमी को नहीं देते हैं। अपने ही किसी भरोसेमंद को देते हैं। अगर आप लाकर दें तो मैं दोगुने पैसे दूंगी। बाकी आप रख लेना।’

हम बात कर ही रहे थे कि एक 16-17 साल का लड़का आता है। एक नौजवान उससे पूछता है, ‘तेरे पास पत्ती हैं क्या?’ वो शक की निगाह से मुझे देखता है और मना कर देता है। दरअसल ये लोग मुझे शक की नजर से देख रहे थे, मेरे भीतर डर बढ़ रहा था। माहौल को हलका करने के लिए मैं कहती हूं- वाघा का माल मलाणा की टक्कर का है या नहीं। ये सुनकर वो पूछते हैं कि मलाणा क्या? मैं बताती हूं मलाणा हिमाचल की एक जगह है, जहां बहुत आसानी से ड्रग्स मिल जाते हैं। इस बातचीत के बाद उन्हें लगने लगता है कि मैं पक्की नशेड़ी हूं।

मुझे लग रहा था कि डर मेरे चेहरे पर झलक रहा है। मैं पूछती हूं कि क्या पुलिस तो नहीं आ जाएगी, तो वो हंसते हुए कहते हैं, ‘इतना मत डरिए, यहां पुलिस नहीं आती है।’ ये लड़के एक-दो फोन लगाते हैं और कहते हैं कि अभी नहीं हो पाएगा। दरअसल वो अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहे थे कि मैं वाकई में ग्राहक हूं या कोई एजेंट या मुखबिर तो नहीं हूं।

जब मैं उनसे दोबारा गुहार लगाकर कहती हूं कि मैं बहुत दूर से आई हूं और उन्हें यकीन हो जाता है कि मैं ग्राहक ही हूं तो वो मुझे ड्रग सप्लाई करने के लिए तैयार हो जाते हैं। एक युवा कुछ मिनट के लिए वहां से जाता है और एक सफेद पाउडर की पुड़िया लेकर लौटता है। नोटों के बदले पुड़िया मेरे हाथ में थमाते हुए वो कहता है, ‘यहां से तुरंत निकलिए और मजे कीजिए।’

मेरे हाथ में सफेद पाउडर की पुड़िया थी, जिसे मैंने बहुत आसानी से कुछ सौ रुपए में हासिल कर लिया था। पूरा पंजाब इस पुड़िया के धुएं में उड़ रहा है। यहां इस सफेद पाउडर को चिट्टा कहते हैं, लेकिन इसका अधिक चर्चित नाम हेरोइन हैं। अफीम से बनने वाला ये रसायन लोगों को अपने नशे में ऐसे जकड़ता है कि इससे आजादी आसानी से नहीं मिलती।

1803 में जर्मन वैज्ञानिक सरटर्नर ने जब अफीम को शुद्ध करके ये पाउडर बनाया था तो इसका नाम सपनों के यूनानी देवता ‘मॉर्फस के नाम पर मॉर्फीन रखा था। इस पाउडर को हाथ में लेकर मेरे जेहन में पहला ख्याल यही आया, ‘इस पुड़िया ने पंजाब के सपनों में आग लगा दी है और किसी को इसकी परवाह नहीं है।’

इस सीरीज की अगली रिपोर्ट में पढ़ें- कैसे ड्रग्स ने छीन लिए हैं पंजाब के सपने…

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