16 साल के बहन-भाई अफ्रीका तक दे रहे क्लास …. स्कॉलरशिप के पैसे से 300 गरीब बच्चों की लिख रहे किस्मत

कलश और देवेश नाम के बहन-भाई 300 बच्चों का भविष्य संवार रहे हैं। ये दोनों सिर्फ 16 के हैं और अपनी इस छोटी से उम्र में देश ही नहीं विदेश तक के गरीबों बच्चों की किस्मत लिख रहे हैं।बहन-भाई की इस जोड़ी ने फन लर्निंग यूथ (फ्लाई) के नाम से एक आर्गेनाइजेशन शुरू की है। जिसके जरिए ये गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। कलश कक्षा 11 में एलन में पढ़कर इंजीनियरिंग की तैयारी कर रही है। वहीं भाई देवेश भी एलन में ही पीएनसीएफ में कक्षा 9 में अध्ययनरत है। दोनों पिछले तीन साल से कोटा में ही पढ़ रहे हैं।

राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में जीत चुके हैं 150 मेडल

कलश और देवेश अपनी स्कॉलरशिप के पैसे से इन बच्चों के लिए स्टेशनरी व बुक्स का इंतजाम करते हैं। 16 वर्षीय कलश और 14 वर्षीय देवेश ने अब तक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय परीक्षाओं में 150 गोल्ड मेडल एवं 200 से ज्यादा सर्टिफिकेट्स जीते हैं। इसके अलावा दोनों के पास सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल भी हैं। हाल ही में देवेश ने आईजेएसओ में गोल्ड मेडल हासिल कर देश का मान बढ़ाया है। उसे प्रधानमंत्री बाल शक्ति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। पिता पंकज भैया सिविल इंजीनियर हैं और मां पल्लवी भैया आर्किटेक्ट हैं। मां बच्चों के साथ कोटा रहकर ही ऑनलाइन काम कर रही हैं।

फ्लाई की वेबसाइट के जरिए अफ्रीका के रवांडा में स्टूडेंट्स को पढ़ा रहे

बातचीत के दौरान बहन-भाई ने बताया कि कोविड के दौरान ऐसे कई बच्चे थे, जिनके माता-पिता का कोरोना से निधन हो गया। घर में आजीविका का संकट खड़ा होने से पढ़ाई तक छूट गई या कुछ परिवार ऐसे थे, जिनके बच्चों की पढ़ाई बाधित हो गई। यह देखकर हमने बच्चों का दर्द समझा और अपनी क्षमतानुसार बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। अगस्त 2020 में कोरोना की पहली लहर के दौरान यह शुरुआत की गई। घर की पार्किंग, बाग-बगीचे में क्लास लेते थे। काम को आगे बढ़ाते हुए देवेश व कलश ने विदेश में भी सेवाएं देना शुरू किया है। फ्लाई की वेबसाइट बनाकर अफ्रीका के रवांडा में स्टूडेंट्स को पढ़ा रहे हैं।

लॉकडाउन के दौरान काम वाली के बच्चों को देखकर आया था आइडिया

कलश ने बताया कि पहले लॉकडाउन के दौरान हम महाराष्ट्र के जलगांव स्थित अपने घर गए थे। वहां देखा कि स्कूल बंद होने के कारण हमारी काम वाली बाई के भाई राहुल और उसकी बेटी पूजा को पढ़ने में परेशानी हो रही थी। घर की आर्थिक हालत बिगड़ गई थी कि राहुल ने पढ़ाई छोड़ मामूली वेतन में कहीं काम करना भी शुरु कर दिया था। मैंने उन्हें पढ़ाना शुरु किया। कुछ ही दिनों में वे दूसरे बच्चों को भी लाने लगे। लॉकडाउन था लेकिन, हम लोग सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए बच्चों को अलग-अलग ग्रुप में पढ़ाते थे।

स्कॉलरशिप का लगभग 8 लाख बच्चों के स्टेशनरी पर किया खर्च

कलश और देवेश की मां पल्लवी भैया ने बताया कि पढ़ने के लिए जो बच्चे आते थे, वो काफी गरीब परिवारों के थे। ऐसे में उनकी स्टेशनरी की व्यवस्था भी इन दोनों ने की। दोनों ने कई प्रतियोगिता में मेडल जीते हैं। साथ ही करीब 8 लाख रूपए तक स्कॉलरशिप मिली है। इन पैसों से उन्होंने बच्चों की किताबें, कॉपियां, पेन सहित स्टेशनरी की बाकी जरूरी सामग्री लेकर आए।

बहन-भाई का मुहिम आर्गेनाइजेशन में बदला, मिला दोस्त का साथ

पहले लॉकडाउन में एक बच्चे को पढ़ाने से शुरू किया था। अब संख्या 300 पहुंच चुकी है। अब इनके मकसद ने एनजीओ का रूप ले लिया है, जिसका नाम ‘फन लर्निंग यूथ’ है। इसके माध्यम से अब तक 300 से ज्यादा बच्चों को पढ़ा चुके हैं। इनके इस काम में दोनों के दोस्त भी जुड़ गए हैं। 15 लोगों की टीम में 10 परमानेंट और 4 वालंटियर हैं। ये सब भी बच्चों को पढ़ाते हैं। कलश और देवेश बताते हैं कि अभी हम दोनों कोटा आए हुए हैं तो ऐसे में दोस्त ही एनजीओ संचालित कर रहे हैं।

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