इंदौर के ऐतिहासिक और गौरवशाली वृक्ष ….200 साल से ज्यादा पुराने पेड़ आज भी; ये अंग्रेजों के जुल्म, आजादी की कहानी और 1857 की क्रांति के गवाह
एक समय जब, इंदौर की आबो हवा इतनी अच्छी और शुद्ध थी कि दिन में भी यहां घनी छांव का बसेरा हुआ करता था। जरूरत पड़ने पर और खेतों में ही जितनी चाहिए, धूप हुआ करती थी, पर विकास नामक आरी कुछ ऐसी चली कि 50 से ज्यादा प्रजातियों के इस हरे भरे मालवांचल के पेड़ों को कांक्रीट निगल गया।
शहर में सन् 1874 में होलकर काल में भी पेड़ों को संरक्षित रखने की पहल हुई थी, ताकि इंदौर की आबोहवा ऐसी ही उच्च गुणवत्ता की बनी रहे, तब शासन से एक गजट आदेश जारी हुआ था, जिसमें साफ आदेश था कि इंदौर में मार्गों, शहरी सीमाओं और प्रमुख स्थलों के पेड़ों को कोई भी नुकसान नहीं पहुंचा सकता और ना ही उन्हें काट सकेगा।
वैसे, हमारा इंदौर एक जमाने में पेड़ों के नाम से भी प्रसिद्ध था। जैसे, इमली साहिब गुरुद्वारा इमली के पेड़ के कारण, जिसके साथ प्रथम सिख गुरु श्री गुरु नानक देव जी की कहानी जुड़ी है, बड़वाली चौकी जो कि बड़ यानी विशाल बरगद वाले पेड़ की निशानी थी, नौलखा क्षेत्र में नौ लाख पेड़ हुआ करते थे। पीपली बाजार, मोरसल्ली बाजार, खजूरी बाजार जैसे कई इलाके इसके गवाह हैं।
आइए, कुछ बात करें इंदौर की इन धरोहर पेड़ों की, इनका सन्दर्भ ओपी जोशी जी की पुस्तक इंदौर शहर के पेड़ में भी मिलता है…
इंदौर का सबसे प्राचीन जीवित पेड़
संवाद नगर स्थित एक विशाल वट (बरगद) वृक्ष है, जिसके नीचे आजकल पहलवान शाह की दरगाह बन गई है। कहा जाता है कि यह करीब 250 सालों से भी अधिक पुराना है। इसने 1857 की क्रांति, अंग्रेजों के जुल्म, आजादी की लड़ाई और आज का विकास सभी कुछ देखा है।
विशाल सरकारी बरगद
एक ऐसा ही पेड़ करीब 210 वर्ष पुराना आज कमिश्नर कार्यालय, गांधी हॉल/पोद्दार प्लाजा के पास में स्थित है। इसका विस्तार और आकर इतना परिपूर्ण है कि इसे मध्यप्रदेश शासन के आधिकारिक लोगों में अंकित किया गया है। कहा जाता है कि ये पेड़ वही है।
स्वतंत्रता संग्राम के साक्षी पेड़
MYH का नीम का पेड़
एक नीम का पेड़ भी है, जो महाराजा यशवंत राव चिकित्सालय के सामने KEH कंपाउंड में है। यह करीब 200 वर्ष से अधिक पुराना है।इसका इतिहास तो आपको झझकोर देगा… सन् 1857 की क्रांति के बाद की पहली फांसी इंदौर में ही हुई थी। इसी पेड़ पर अमझेरा के राजा राणा बख्तावरसिंह राठौर को और उनके 12 साथियों सल्कूराम, चिमनलाल, वाशिउल्लाह, अता मुहम्मद और हीरा सिंह आदि के साथ फांसी पर लटका दिया गया था। एक राजा ने अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान दिया था। आज भी हर 10 फरवरी को कुछ लोग शहीदों को श्रद्धांजलि देने यहां पहुंचते हैं |
रेसीडेंसी का बरगद
ऐसा ही एक पेड़ रेसीडेंसी कोठी में आज भी खड़ा है, जिसकी मजबूत शाखाओं पर अपने ही वतन के होलकर सेना के प्रसिद्द तोपची सदाअत खान को 1874 में अंग्रेजों द्वारा फांसी देकर शहीद किया गया था।
महात्मा गांधी द्वारा लगाए गए पौधे, अब हैं वृक्ष
इंदौर के एग्रीकल्चर कॉलेज के गेट पर 1935 में महात्मा गांधी ने अपने प्रवास पर नीम के जो दो पौधे लगाए थे, वे पेड़ के रूप में विद्यमान हैं। प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बाल निकेतन स्कूल में मोरसली का पौधा लगाया था, वह भी विशाल वृक्ष का रूप ले चुका है।
मांडू की इमली वाला बाओबाब पेड़
इंदौर के होलकर कॉलेज में बाओबाब यानि मांडू की इमली वाला अद्भुत पेड़ है। यह मूलत: मेडागास्कर, अफ्रीकी या ईरानी कहा जाता है। अफ्रीका और ईरान के खुरासान में इसकी बहुतायत है। इन देशों में इस पेड़ की पूजा होती है। ये पेड़ मानव सभ्यता से भी पुराने पेड़ कहे जाते हैं।
दक्षिण भारत में पाया जाने वाला 100 साल से भी अधिक पुराना नागलिंगम् पेड़ मनोरमागंज में है। इसकी पहचान ये है कि इस पर शिवलिंग पर फन फैलाए बैठे सांप के आकार के फूल इसके तने में लगते हैं। यह केननबॉल ट्री के नाम से भी जान जाता है।
चीड़ का पेड़ – हिमाचल, उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इलाकों में पाया जाने वाला पेड़ केशरबाग रोड पर करीब 50 वर्ष पुराना है।
ऐसे और ना जाने कितने पेड़ आज भी मौन खड़े हैं, पर पूर्णतः बिसरा दिए गए हैं। साथ ही, हजारों पेड़ कटते ही जा रहे हैं। नवलखा क्षेत्र का नाम इसलिए नवलखा था कि यहां नौ लाख आम के पेड़ों का बगीचा था, पर सब खत्म होता गया। अब शायद यह किताबों में भी न मिले।
इंदौर की 95% ज्यादा जनता शायद ही यह जानती है कि शहर के इन पेड़ों ने हमारा इतिहास, विकास और अब विनाश देखा है। क्या अब भी हम संभल पाएंगे, क्या अब हम इन पेड़ों को संभालेंगे और नए पेड़ लगाकर इस दुनिया को कुछ दे जाएंगे?
देश में कई शहरों में नो ट्री कटिंग पॉलिसी बन चुकी है। यानि अब पेड़ों को काटने की बजाए उसे ट्रांसप्लांट किया जाएगा। यदि इंदौर भी इसे लागू करें, तो AQI बिगड़ने की समस्या को अगले दशक तक समाप्त कर लिया जा सकता है |
इन प्राचीन पेड़ों को टूरिज्म और हेरिटेज वाक जैसी गतिविधियों में शामिल कर इनका संरक्षण कर इनका इतिहास भी बचा लेना चाहिए, नई पीढ़ी को इसकी जानकारी देनी चाहिए !
दस कूप समा वापी, दस वापी समो हद: दस हद सम: पुत्रो, दस पुत्र समो दुम: मतस्य:पुराण के अनुसार दस कुएं एक ताल के बराबर, दस ताल एक पुत्र के बराबर और दस पुत्र एक वृक्ष के बराबर होते हैं… पुन: अत्यन्त आवश्यक है इंदौर में पेड़ों को बचाना और नए लगाना !
यदि आपके पास भी इंदौर के किसी प्राचीन पेड़ की जानकारी हो, तो हमें जरूर बताएं!
समीर शर्मा , 9425949285