आगरा से चुनाव मैदान में बाहुबली अशोक दीक्षित की बेटी …
इंग्लैड से किया है MBA, नौकरी छोड़ लड़ेंगी चुनाव, बोलीं- गरीबों का शोषण करने वालों के लिए थे बाहुबली…..
विधानसभा चुनाव से पहले आगरा में सियासी उठापटक जारी है। आगरा में सपा ने फतेहाबाद विधानसभा सीट पर अपना प्रत्याशी बदल दिया। अब सीट पर बाहुबली अशोक दीक्षित की बेटी रूपाली दीक्षित मैदान में हैं। दो बार उनके पिता अशोक दीक्षित भी फतेहाबाद से चुनाव मैदान में उतर चुके हैं, लेकिन वो जीत नहीं पाए। पिता के बाद अब बेटी चुनाव लड़ रही है। उनका कहना है कि पिता जो न कर सके, वो उसे करेंगी। उनका कहना है कि उनके पिता गरीबों का शोषण करने वाले के लिए बाहुबली हैं।
पिता पर हैं कई मुकदमे
मूलरूप से फिरोजाबाद के रहने वाले बाहुबली और गैंगस्टर अशोक दीक्षित पर अलग-अलग थानों में चार दर्जन से अधिक मुकदमे दर्ज हैं। अभी अशोक दीक्षित हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। अशोक दीक्षित दो बार फतेहाबाद विधानसभा से चुनाव लड़ चुके हैं। मगर, उन्हें जीत नहीं मिली।
अब अशोक दीक्षित की छोटी बेटी रूपाली दीक्षित ने सपा की टिकट से फतेहाबाद से चुनाव लडेंगी। रूपाली विदेश में पढ़कर आई हैं। उन्होंने इंग्लैंड में कार्डिफ यूनिवर्सिटी से एमबीए किया है। इसके बाद कई बड़ी कंपनियों में नौकरी की। मगर, नौकरी छोड़कर वो 2016 में राजनीति में आई। 2017 में उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली थी। उनके भाजपा में शामिल होने पर काफी हंगामा भी हुआ था। 2017 में टिकट न मिलने पर रूपाली चुनाव नहीं लड़ सकी । मगर, इस बार सपा ने पहले घोषित प्रत्याशी की टिकट काटकर रूपाली को टिकट दिया है।
गरीबों को सताने वालों के लिए बाहुबली
रूपाली का कहना है कि इस चुनाव में अपने पिता के संघर्ष को आगे बढ़ाऊंगी। जो वो नहीं कर पाए, मैं वो करके दिखाऊंगी। पिता की जो थोड़ी बहुत कसर रह गई थी, उसे मैं पूरा करूंगी। किसी वजह से लोगों ने उन्हें पसंद नहीं किया, तो पसंद मैं पूरी करूंगी। रूपाली का कहना है कि उनके पिता की बाहुबली वाली छवि से उनके चुनाव पर असर नहीं पडे़गा। उनके पिता गरीबों के लिए बाहुबली नहीं थे, बल्कि उनके लिए बाहुबली थे जो गरीबों का शोषण करते थे।
भाजपा-बसपा दोनों से टक्कर
रूपाली दीक्षित का कहना है कि उनकी भाजपा-बसपा दोनों से टक्कर है। दोनों पार्टियां जातिवाद पर चुनाव लड़ेंगी। मगर, मैं जातिवाद को घुलने नहीं दूंगी। मगर, मेरे दिमाग में छोटेलाल वर्मा के चोटी काटने वाले शब्द अभी भी घूम रहे हैं। उनका पता होना चाहिए कि हम भी जवाब देने को तैयार हैं।