न तुम जीते, न हम हारे … ‘महाराज’ की जिद के आगे नहीं झुके ‘सरकार’, निकाला बीच का रास्ता; BJP को ‘विभीषण’ की तलाश

आखिर महाराज की जिद के आगे सरकार नहीं झुकी। हालांकि, इसकी उम्मीद पहले से ही थी। कमलनाथ सरकार नहीं झुकी तो उसे खामियाजा सत्ता से बाहर होकर भुगतना पड़ा था, लेकिन अब हालात वैसे नहीं हैं। बीजेपी की कार्य संस्कृति अलग है, इसलिए बीच का रास्ता निकाला गया। यानी न तुम जीते, न हम हारे।

मामला ग्वालियर का है। माना जाता है कि इस इलाके में केंद्रीय राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया वर्चस्व बना हुआ है। यहां पदस्थ एक सीनियर आईपीएस अफसर की कार्यप्रणाली से सिंधिया खुश थे, लेकिन सरकार नाखुश। सरकार ने उन्हें हटाकर गृह विभाग में पदस्थ सचिव स्तर के अफसर को प्रमोट किए जाने के बाद पदस्थापना कर दी थी, लेकिन महाराज अड़ गए।

इधर, सरकार ने भी ठान ली थी कि न झुकेंगे, न झुकाएंगे। सुना है कि महाराज ने बीच का रास्ता निकालकर एक अन्य अफसर का नाम सरकार को भेज दिया। सरकार ने भी बिना देर किए संशोधित आदेश जारी कर दिया, लेकिन इस राजनीतिक शीत युद्ध में नुकसान उस अफसर का हुआ, जिसे मंत्रालय से हटाकर फील्ड में भेजा गया था। अब उन्हें हेडक्वार्टर में पदस्थ किया है।

BJP खोज रही है ‘विभीषण’

बीजेपी की नजर अब कांग्रेस के साथ सुर से सुर मिलाने वालों के अलावा उन नेताओं पर भी हैं, जो पर्दे के सामने कांग्रेसियों के खिलाफ आग उलगते हैं, लेकिन पीछे से सारे भेद भी बता देते हैं। विधानसभा के उपचुनाव के बाद से पार्टी ऐसे तीन नेताओं की गतिविधियों के बारे में पता लगाने के लिए खुफिया तंत्र को लगा चुकी है। संगठन को लगता है कि ये नेता आने वाले चुनाव में भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। बता दें कि इनमें से एक नेता को 2020 के उपचुनाव के दौरान निगम मंडल में पद देने का आश्वासन दिया गया था। उनकी संदिग्ध गतिविधियों के चलते सरकार में राजनीतिक नियुक्ति नहीं दी गई।

कैबिनेट मंत्री के बराबर कद है, नई गाड़ी दीजिए…

निगम-मंडल में नियुक्तियां सरकार के लिए पिछले डेढ़ साल से मुसीबत बनी हुई थीं। जैसे-तैसे सत्ता-संगठन में समन्वय बना और नियुक्तियां हो गईं। अब शासन-प्रशासन के सामने दिक्कत खड़ी हो गई। एक नव नियुक्त अध्यक्ष ने डिमांड कर दी थी कि वे पदभार ग्रहण करने 500 लोगों के साथ भोपाल आएंगे। उनके रहने और खाने का इंतजाम किया जाए। सुना है कि अब एक महिला निगम मंडल की फरमाइश पूरा करने में अफसरों को पसीना आ गया। उन्होंने दो टूक कह दिया था- वे नई गाड़ी में ही बैठकर पदभार ग्रहण करने जाएंगी। जब 15 दिन बीत जाने के बाद भी मैडम ने चार्ज नहीं लिया तो अफसरों ने आनन-फानन में शोरूम से नई गाड़ी उनके घर भिजवाई। इसके बाद ही वे आफिस पहुंची। पता चला है कि शोरूम वाले को गाड़ी का भुगतान नहीं हुआ है।

संयोग जोड़कर देखने लगे हसीन सपने

आज कल भोपाल में मेल-मिलाप का मुद्दा बड़ा गरम है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व राजा साहब आमने-सामने हैं। दिग्विजय सिंह सीएम के घर के सामने धरने पर बैठ गए। नाराजगी थी कि सीएम ने उन्हें समय नहीं दिया। उन्हें लगा कि शिवराज जरूर मिलने आएंगे। सरकार तो सरकार, उनकी मर्जी। समय नहीं दिया। खैर यह तो मुलाकात की बात थी। राजा के समर्थक इसे आज से 30 साल पहले ऐसी ही घटना बताकर खुश हैं। हुआ कुछ यूं था कि सुंदरलाल पटवा की सरकार थी। यूपी के राजा साहब दिल्ली से आए और सीएम हाउस के बगल में धरने पर बैठ गए। पटवा जी ने आदेश दिया कि वहां सीएम हाउस से सुंदर कॉकरी में नाश्ता-चाय भिजवाया जाए। अफसर लेकर पहुंचे तो यूपी के राजा साहब के समर्थकों ने कहा- यहां का पानी तक नहीं पीना चाहिए। सुंदरलाल पटवा नाराज हो गए। वे बिना मिले ही चले गए। आगे चलकर यूपी के ठाकुर साहब दिल्ली के सिंहासन पर विराजमान हो गए। यह इत्तेफाक ही है कि इस बार भी प्रदेश में भाजपा की सरकार है। राजा ही जमीन पर बैठा और उनसे सीएम नहीं मिले। अब समर्थक इसी सपने में डूबे हैं।

और अंत में…तारीफ की बधाई पर नाराज हो गए साहब

तारीफ मिलती है तो खुशी बढ़ जाती है। और उस तारीफ पर बधाई मिले तो… सोने पर सुहागा, लेकिन एक मंत्रालय के सबसे बड़े अफसर को यह हजम ही नहीं हुआ। उन्होंने तारीफ पर मिली बधाई को हंसी उड़ाना समझ लिया। मामला ‘सरकार’ के सबसे पसंदीदा विभाग से जुड़ा है। सीएम सभी विभागों की समीक्षा कर रहे थे। मामा के लाडलियों का जिम्मा संभालने वाले मंत्रालय के अफसर ने अपना प्रजेंटेशन दिया। सीएम ने शाबाशी दी और लगे हाथ तारीफ कर दी। फिर क्या था, समीक्षा खत्म होते ही अफसर तनकर चलने लगे। दूसरे विभागों के अफसर बधाई देने लगे। इस पर अफसर बोल पड़े- यह तो प्रजेंटेशन है। इसे ऐसे ही दिया जाता है। अफसरों की समझ में नहीं आया कि साहब का मूड़ क्यों उखड़ गया।

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