जानिए कैसे तैयार होता है हमारा तिरंगा …

ग्वालियर में कपड़े की टेस्टिंग से लेकर रंगाई-कटाई में लगते हैं 5 से 6 दिन, आधे घंटे में एक तिरंगे की सिलाई…..

गणतंत्र दिवस पर जब भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को लहराता देखते हैं तो मन प्रफुल्लित और सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि देश भर में फहराए जाने वाले कुल तिरंगों में से आधे तो ग्वालियर में बनाए जाते हैं। कई ऐतिहासिक और सैन्य इमारतों, मंत्रालयों में ग्वालियर में बना ध्वज ही लहरा रहा है।

यहां मध्य भारत खादी केंद्र में कारीगर दिन-रात झंडे तैयार करने में लगे रहते हैं। कई मानकों और कसौटी पर खरा उतरने के बाद भारत की आन, बान और शान तिरंगा तैयार होता है। एक लॉट के कपड़े की रंगाई, छपाई, कटिंग और टेस्टिंग में 5 से 6 दिन तक लग जाते हैं। कटाई के बाद आधे घंटे एक तिरंगे की सिलाई में लगते हैं। तिरंगा तैयार होने में पांच घंटे का समय लगता है।

देश भर में फहराए जाने वाले कुल तिरंगों में से आधे ग्वालियर में बनाए जाते हैं।
देश भर में फहराए जाने वाले कुल तिरंगों में से आधे ग्वालियर में बनाए जाते हैं।

मुंबई, कर्नाटक के बाद अब ग्वालियर ने बनाई पहचान
अभी तक देश में लगने वाले झंडों की डिमांड मुंबई (महाराष्ट्र) और हुबली (कर्नाटक) से पूरी होती थी, लेकिन अब मध्यप्रदेश के ग्वालियर में मध्य भारत खादी संघ दोनों शहरों को टक्कर देने लगा है। समूचे उत्तर भारत में अब ग्वालियर में बने तिरंगे झंडे सप्लाई होने लगे हैं। इसके लिए खादी संघ ने नई मशीनें लगाई हैं। लैबोरेटरी में टेस्ट करके झंडे को 9 मानकों के आधार पर बनाकर सप्लाई किया जाता है। हर साल 64 से 65 लाख झंडे ग्वालियर में अभी तैयार हो रहे हैं, जबकि कोविड से पहले 90 से एक करोड़ तिरंगे यहां तैयार होते थे।

तार को बुनने से लेकर तिरंगा का रूप लेने में लगते हैं 6 दिन
खादी केंद्र की मैनेजर व टेक्नीशियन नीलू मैकले का कहना है कि किसी भी आकार के तिरंगे को तैयार करने में उनकी टीम को 5 से 6 दिन का समय लगता है। इन दोनों यूनिट में 26 जनवरी के लिए तिरंगा तैयार किया जा रहा है। यहां बनने वाले तिरंगे मध्यप्रदेश के अलावा बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात सहित एक दर्जन से अधिक राज्यों में पहुंचाए जाते हैं। गर्व की बात यह है कि देश के अलग-अलग शहरों में स्थित आर्मी इमारतों पर ग्वालियर में बने तिरंगे शान फहराए जाते हैं।

9 मानकों को ध्यान में रख कर तैयार होता है तिरंगा

ग्वालियर मध्य भारत खादी संघ में वीएसआई प्रमाणित तीन साइज के तिरंगे तैयार किए जाते हैं, जिनमें 2 बाई 3, 6 बाई 4, और 3 बाई साढ़े चार फीट के झंडे शामिल हैं। राष्ट्रध्वज बनाने के लिए मानकों का ख्याल रखना होता है, जिसमें कपड़े की क्वालिटी, रंग और चक्र का साइज बहुत जरूरी है। उसके बाद खादी संघ जिले में इन सभी चीजों का टेस्ट किया जाता है। कुल 9 मानकों को ध्यान में रखते हुए हमारे राष्ट्रीय ध्वज तैयार किए जाते हैं। जिनमें कपड़े के वजन, क्वालिटी, पीएच वैल्यू, कलर, कैमिकल, सिलाई आदि प्रमुख हैं।

ऐसे बनता है एक कपड़ा तिरंगा
यहां तिरंगा झंडा निर्माण का काम धागा बनाने से शुरू होता है। इसके बाद बुनाई और फिर तीन तरह के लैबोरेटरी टेस्ट किए जाते हैं। टेस्टिंग के बाद इसकी फीनिशिंग और कलरिंग की जाती है। तीन रंगों का अलग-अलग ड्राइंग भी किया जाता है। इसके बाद फिर टेस्टिंग होती है और उसके बाद अशोक चक्र लगाया जाता है। तब जाकर एक खादी का कपड़ा, धागा और रंग तिरंगा की शक्ल लेते हैं।

सन् 1925 से शुरू हुई थी यात्रा
ग्वालियर में स्थित इस केंद्र की स्थापना साल 1925 में चरखा संघ के तौर पर हुई थी। साल 1956 में मध्य भारत खादी संघ को आयोग का दर्जा मिला। इस संस्था से मध्य भारत के कई प्रमुख राजनीतिक हस्तियां भी जुड़ी हैं। उनका मानना है कि किसी भी खादी संघ के लिए तिरंगे तैयार करना बड़ी मुश्किल का काम होता है, क्योंकि सरकार की अपनी गाइडलाइन है उसी के अनुसार तिरंगे तैयार करने होते हैं।

यही कारण है कि जब यहां तिरंगे तैयार किए जाते हैं तो उनकी कई बार बारीकी से मॉनिटरिंग की जाती है। वीआईएस से मान्यता प्राप्त झंडे कड़े परीक्षण और कई दौर की जांच के बाद मध्य भारत खादी संघ को तिरंगा बनाने की अनुमति 2016 में मिली थी। ग्वालियर देश का तीसरा सबसे बड़ा केंद्र बन गया है।

कोविड में कम हुई तिरंगे की मांग
साल 2020 में कोरोना संक्रमण के कारण ग्वालियर की मध्य भारत खादी संघ पर भी काफी असर देखने को मिला था, जिससे खादी संघ के प्रोडक्शन में 40 फीसदी की कमी आई थी। संस्था को लगभग 30 लाख रुपये का नुकसान हुआ था। खादी संघ इकाई का टर्नओवर साल में लगभग 40 से 50 लाख रुपए का है। कोरोना संक्रमण के कारण टर्नओवर में काफी गिरावट आई है, लेकिन उम्मीद है आगे आने वाले समय में अब हालात सामान्य होते जा रहे हैं।

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