बोर्ड की जेब भर रही और बेरोजगारों संग क्रूर मजाक … हर साल 1.5 लाख खर्च कर रहा एक बेरोजगार, फिर भी परीक्षाओं में नकल-पेपर लीक
कैंसिल होती और विवादों में घिरती भर्ती परीक्षाएं बेरोजगारों का दर्द बढ़ा रही हैं। दर्जनों भर्तियां अटक जाती हैं। न समय से परीक्षा न रिजल्ट। अगर सबकुछ हो भी गया तो पर्चा आउट, नकल से लेकर तमाम ऐसी गड़बड़ियों से परीक्षा पर सवाल खड़े हो जाते हैं। बेचारा बेरोजगार, जिसने आवेदन के समय मोटी फीस चुकाई, तैयारी में अपना समय और पैसा लगाया, उसके हाथ आती है मायूसी। सरकारी तंत्र का एक क्रूर छलावा। हां, इन सबके बीच एग्जाम कराने वाले बोर्ड, एजेंसियां जरूर मालामाल हो जाती हैं। एक-एक बेरोजगार युवा हर साल औसतन करीब डेढ़ लाख रुपए खर्च कर रहा है। एक अदद नौकरी की उम्मीद में। आज मंडे स्पेशल स्टोरी में बात बेरोजगारों के अंतहीन दर्द और उनके साथ हो रहे मजाक की ही, पढ़िए…
सरकारी नौकरी में भविष्य तलाश रहे युवा घर से कोसों दूर रहते हैं। कोचिंग सेंटर की महंगी फीस चुकाते हैं। फॉर्म भरने से लेकर हर महीने रहने, खाने-पीने पर हजारों रुपए खर्च होते हैं। राजस्थान में पेपर आउट होने से लेकर छोटे-छोटे कारणों से 90% भर्तियां अटक जाती हैं। सिलेक्शन होने के बावजूद अभ्यर्थियों को सालों इंतजार करना पड़ता है। भर्ती परीक्षा रद्द हो जाए तो राजस्थान के 25 लाख से ज्यादा बेरोजगारों के आवेदनों से ही परीक्षा कराने वाली एजेंसियां करोड़ों की कमाई कर लेती हैं। इसके विपरीत सरकारी नौकरी की तैयारी करते-करते कैंडिडेट की उम्र निकल जाती है। पढ़ाई और नौकरी के बीच लंबा गैप होने पर प्राइवेट नौकरी मिलनी भी मुश्किल हो जाती है। सरकारी नौकरी के बिना किसी की शादी नहीं हो पाती, तो किसी को ताने झेलने पड़ते हैं।
तीन सब्जेक्ट में MA के बाद B.Ed कर चुके सुरेश के पास इतनी डिग्रियां हैं, जितनी उसके खानदान में किसी के पास नहीं। सरकारी नौकरी के लिए 8 साल तक कोचिंग की। चपरासी की भर्ती निकली, उसमें भी फॉर्म भरा। सिलेक्शन नहीं हुआ। उम्र जब 36 क्रॉस हुई तो भविष्य की चिंता और बढ़ गई। आखिरकार डिलीवरी ब्वॉय बनना पड़ा। यहां सुरेश एक काल्पनिक पात्र हैं। यकीन मानिए, राजस्थान के 25 लाख से ज्यादा बेरोजगार यहां सुरेश की जगह अपना-अपना नाम फिट करेंगे, तब भी कहानी नहीं बदलेगी।