राहुल के सवालों में कितना दम … नेपाल ने पहली बार भारतीय इलाके पर ठोका दावा, सीमा पर की सेना की तैनाती; श्रीलंका अब हमारी नहीं चीन की सुनता है

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 21 फरवरी 1999 को अपने भाषण में कहा था, ‘हम इतिहास बदल सकते हैं लेकिन भूगोल नहीं। हम दोस्त बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं।’ घर का पड़ोसी हो या देश का इनसे संभलकर डील न की जाए तो ये बड़ी मुसीबत बन सकते हैं। जैसे भारत के लिए चीन और पाकिस्तान।

ये दोनों देश हमारी अंतराष्ट्रीय सीमा पर तो सरकार के लिए बड़ी चुनौती बने ही हैं लेकिन संसद में भी इनका जिक्र मोदी सरकार के गले की फांस बन गया है। संसद के बजट सत्र में भाषण देते हुए राहुल गांधी ने केंद्र सरकार की विदेश नीति की आलोचना करते हुए तीखे वार किए हैं। आरोप लगाया है कि गलत विदेश नीति से चीन और पाकिस्तान करीब आए हैं और हमारे पड़ोसी देश हमसे और दूर होते जा रहे हैं।

ऐसे में आइए जानते हैं कि राहुल गांधी के इन आरोपों में कितना दम है? 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद कब-कब विदेश नीति पर उठे सवाल? पड़ोसी देशों से संबंध के मामले में क्या रही है मोदी सरकार की नीति? विदेश मामलों के एक्सपर्ट क्या कहते हैं?

2014 में मोदी सरकार बनने के बाद कब-कब विदेश नीति पर उठे सवाल?

2014 में भाजपा ने बहुमत मिलते ही प्रधानमंत्री शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए सार्क देशों जैसे- अफगानिस्तान, बंग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका के राष्ट्राध्यक्ष को निमंत्रण भेजा। इसके जरिए भारत ने विदेश नीति की एक नए अध्याय की शुरुआत करने की कोशिश की।

इसके बावजूद बीते 7 सालों में कई ऐसी घटनाएं घटी जिसकी वजह से सरकार की विदेश नीति पर विपक्ष ने सवाल खड़े किए हैं। कुछ प्रमुख घटनाएं इस तरह से हैं-

  • 2020 में पहली बार बिहार के वाल्मिकी नगर स्थित सुस्ता क्षेत्र में 14 हजार किलोमीटर पर नेपाल ने दावा ठोक दिया है। यही नहीं भारतीय सीमा पर नेपाल ने पहली बार सेना उतारी।
  • अक्टूबर 2021 में पहली बार बंग्लादेश की पीएम शेख हसीना ने उनके देश में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार के लिए भारत को जिम्मेदार बताया था। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत में ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए, जिससे बंग्लादेश के हिन्दुओं पर असर पड़े।
  • मालदीव के साथ भारत का व्यापार 2008 में चीन के व्यापार से 3.4 गुना था। 2018 में पहली बार चीन ने मालदीव में व्यापार के मामले में भारत को पीछे छोड़ दिया है।
  • 2021 में पहली बार बंग्लादेश में चीन का कुल व्यापार भारत से लगभग दोगुना ज्यादा हो गया है। 2011-12 में चीन ने बंग्लादेश में 18.57 मिलियन डॉलर निवेश किया था। 2018-19 में यह बढ़कर 506.13 मिलियन डॉलर हो गया था। ऐसे में चीन पर निर्भरता बढ़ना सामान्य बात है।
  • तालिबान की सरकार बनने के बाद पहली बार अफगानिस्तान भारत से ज्यादा पाकिस्तान के करीब चला गया है।

5 पड़ोसी देशों के संबंधों में चीन की वजह से क्या बदलाव हो रहे हैं?

बंग्लादेश: छोटा देश होने की कई चुनौतियां होती हैं। हमेशा उन पर दो बड़े और शक्तिशाली देशों में से किसी एक को चुनने का दबाव बनाया जाता है। यही समस्या बांग्लादेश के साथ भी है। मोदी सरकार की एक्ट ईस्ट पॉलिसी में बांग्लादेश की अहम भूमिका है। आजादी के 50 साल पूरे करने पर और बांग्लादेश के पहले प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर रहमान को गांधी पीस प्राइज से नवाजने पर प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत का आभार जताया। लेकिन, विदेश नीति भावनाओं पर नहीं बल्कि नेशनल इंटरेस्ट पर निर्धारित करती है। भारत ने चीन के बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट पर विस्तारवाद का आरोप लगाया है।

बंग्लादेश भी इस प्रोजेक्ट का हिस्सा है। इस मामले में बांग्लादेश के विदेश सलाहकार ने कहा कि बेशक वो ‘बेल्ट एंड रोड’ प्रोजेक्ट में चीन के साथ है लेकिन भारत हमारा सबसे महत्वपूर्ण साथी है। हालांकि, इस समय में बांग्लादेश और चीन के रिश्ते भी बेहतर हुए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बांग्लादेश केवल भारत की चिंताओं के आधार पर अपनी विदेश नीति नहीं बना सकता है। हालांकि, गलवान घाटी में चीन और भारत में हुए विवाद पर बांग्लादेश ने किसी एक का साथ नहीं दिया था।

म्यांमार: 2017 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी म्यांमार के दौरे पर गए थे। सदी की शुरुआत में भारत और म्यांमार में करीबी संबंध थे। आंग सान सू की ने दिल्ली में रहकर पढ़ाई की इसके बावजूद 2016 में उनके सत्ता में आने पर भारत को म्यांमार के साथ संबंधों में कोई खास बढ़त नहीं मिली। इसे इससे समझा जा सकता है कि म्यांमार की लोकतांत्रिक सरकार की प्रमुख के नाते आंग सान सू की ने दिल्ली की बजाए बीजिंग में अपना पहला विदेशी दौरा किया था। इसके बाद चीन को वहां बढ़त बनाने का भी मौका मिला और ड्रैगन ने वहां कई तरह से निवेश किया। हालांकि, मोदी सरकार ने अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी में म्यांमार को काफी महत्व दिया था।

म्यांमार में फिर से तख्तापलट हुए पूरा एक साल हो चुका है। एक तरफ जहां पश्चिमी देश म्यांमार पर तरह-तरह की पाबंदियां लगा रहे हैं। ऐसे में भारत ने अभी तक इस पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी है। यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज (ईएफएसएएस) ने दावा किया था कि चीन एथनिक समूहों और सेना के जरिए म्यांमार में लोकतंत्र को खत्म कर वापस अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है। पड़ोसी होने के नाते भारत और म्यांमार के बीच 1643 किलोमीटर की सीमा है। वहीं, कई एक्सट्रीमिस्ट ग्रुप जिन्हें भारत के लिए खतरा समझा जाता है। उन्हें म्यांमार में पनाह मिली हुई है। ऐसे म्यांमार से अच्छे संबंध रखना भारत के लिए जरूरी है।

ग्लासगो में पीएम मोदी ने हाल ही में नेपाल के PM शेर बहादुर से मुलाकात की थी। इस दौरान बीते कुछ सालों में खराब हुए संबंधों को सुधारने की कोशिश हुई।
ग्लासगो में पीएम मोदी ने हाल ही में नेपाल के PM शेर बहादुर से मुलाकात की थी। इस दौरान बीते कुछ सालों में खराब हुए संबंधों को सुधारने की कोशिश हुई।

नेपाल: नेपाल और भारत के बीच काफी मजबूत राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंध रहा है। भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंधों के कारण वह हमारी विदेश नीति में भी विशेष महत्त्व रखता है। दोनों देशों के बीच कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा पर विवाद का मामला काफी पुराना है। लेकिन, 2020 में पहली बार सीमा पर नेपाल ने अपनी सेना तैनात कर दी।

यही नहीं बिहार के वाल्मिकी नगर स्थित सुस्ता क्षेत्र में 14 हजार किलोमीटर पर नेपाल ने कब्जा करते हुए उसपर दावा ठोक दिया है। केपी ओली की सरकार ने कोरोना काल में भारत पर मदद नहीं करने का आरोप भी लगाया है। एक्सपर्ट नेपाल के व्यवहार में आए इस बदलाव को ‘चीनी जादू’ कह रहे हैं। 2017 में चीन की वन बेल्ट, वन रोड परियोजना में शामिल हुआ। पहले की तुलना में अब दोनों देशों के आपसी रिश्ते खराब ही होते जा रहे हैं। चीन ने लगातार छठे साल नेपाल में FDI के जरिए सबसे ज्यादा पैसा इंवेस्ट किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2020-21 में चीन ने नेपाल में सबसे ज्यादा188 मिलियन डॉलर का इंवेस्ट किया था।

श्रीलंका: भारत और श्रीलंका के संबंध में तमिल और सिंहली का मुद्दा अब काफी पुराना हो गया है। भारतीय सेना ने श्रीलंका की शांति के लिए साल 1987 में ऑपरेशन पवन चलाया था। इसके जरिए श्रीलंका में शांति बहाल करने की कोशिश की गई थी। इसी ऑपरेशन के बाद राजीव गांधी की मौत एक आतंकी हमले में हो गई थी। काफी समय तक दोनों देशों के रिश्ते सही रहे। लेकिन, जबसे श्रीलंका में सरकार बदली और राजपक्षे वहां के राष्ट्रपति बने हैं, तबसे वहां कई तरह के बदलाव हो रहे हैं। श्रीलंका चीन के जाल में फंसता जा रहा है।

2021 में श्रीलंका की संसद में कोलंबो पोर्ट सिटी इकोनॉमिक कमीशन के नाम से एक कानून बना। इससे श्रीलंका में भारी चीनी निवेश का रास्ता साफ हुआ। चीन ने 1.4 बिलियन डॉलर से कोलंबो पोर्ट और बंदरगाह तैयार करने के लिए यहां पैसा इंवेस्ट किया। पहली बार चीन ने श्रीलंका में अपनी सेना की भी तैनाती की है। इसका सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ भारत की सुरक्षा पर भी पड़ सकता है। वहीं, श्रीलंका में भारत और जापान दोनों देश मिलकर ईस्ट कंटेनर टर्मिनल परियोजना में निवेश करने वाले थे। राजपक्षे ने सत्ता में आने के बाद इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया।

मालदीव: मालदीव में इन दिनों पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के नेतृत्व में भारत विरोधी आंदोलन चल रहे हैं। सरकार के स्तर पर भारत से संबंध अच्छे हैं लेकिन विपक्षी दल जनता के साथ मिलकर भारत के खिलाफ देशभर में आंदोलन चला रहे हैं। इनकी मांग है कि मालदीव से भारत की मौजूदगी खत्म होनी चाहिए।

यह पहली बार नहीं है जब मालदीव में सबकुछ सही नहीं चल रहा है। इससे पहले 2018 में मालदीव में चल रहे राजनीतिक संकट के दौरान पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने भारत से सैन्य दखल की मांग की थी। इसके बाद चीन ने इस द्वीपीय देश में भारत के दखल का विरोध किया था। साथ ही भारत को चेतावनी भी दी थी।

मनमोहन सरकार की ही नीति को आगे बढ़ा रही है मोदी सरकार

केंद्र सरकार की विदेश नीति पर हमने दो एक्सपर्ट से बात की है। दोनों एक्सपर्ट का मानना है कि वर्तमान सरकार ने पिछली सरकार के ही विदेश नीति को आगे बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने पर और काम करने की जरूरत है। साथ ही दोनों एक्सपर्ट ने वर्तमान सरकार के विदेश नीति को पूरी तरह से फेल्योर मानने से इनकार किया है।

विदेश एक्सपर्ट प्रोफेसर डॉ. स्वास्ति राव:

स्वास्ति राव ने कहा कि राहुल गांधी का बयान पूरी तरह से पॉलिटिकल मोटिवेटेड है। नेपाल, श्रीलंका या दूसरे करीबी देशों के चीन के करीब जाने की मुख्य वजह इकनॉमिक एंगल है। चीन सिर्फ साउथ एशिया ही नहीं पूरी दुनिया के देशों को कर्ज के जाल में फंसा रहा है। इससे सिर्फ भारत नहीं पूरी दुनिया परेशान है। इसलिए इसे भारत की विदेश नीति का फेल्योर कहना सही नहीं है।

साथ ही उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान या दूसरे पड़ोसी देशों को लेकर भारत की पॉलिसी सही समय पर नहीं बदली है। इसका भारत को नुकसान भी उठाना पड़ा है। स्वास्ति ने यह भी कहा कि भारत कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है, ऐसे में तालिबान से हाथ मिलाना भी सही नहीं है। उनके मुताबिक, भारत दुनिया भर में अपने वैल्यू पर खड़ा है। भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसके रूस, अमेरिका और ईरान सबसे बेहतर संबंध हैं।

  

सेंटर फॉर साउथ एशियन स्टडीज JNU के प्रोफेसर संजय भारद्वाज:

संजय भारद्वाज के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने विदेश नीति में 3 बातों को मजबूती से आगे बढ़ाया है। जो इस तरह से हैं-

  • दक्षिण एशियाई देशों से भारत मजबूत आपसी संबंध बना रहा है।
  • सरकार चाहती है कि आपसी सहयोग में भारत केंद्र बिंदु रहे। भारत की लीडरशिप में ये सभी देश आगे बढ़ें। रोड कनेक्टिविटी, पॉवर कनेक्टिविटी आदि मामलों में भारत के साथ मिलकर सभी देश विकास कर रहे हैं।
  • इन देशों में चीन का हस्तक्षेप, व्यापार और बिजनेस कम हो इसके लिए भारत ने काम करना शुरू किया है।

उन्होंने कहा कि ये तीनों नीतियां काफी अच्छी हैं। हालांकि, इससे उस हद तक सफलता नहीं मिली है जैसा भारत ने सोचा था, लेकिन मोटे तौर भारत की विदेश नीति को दक्षिण एशिया के संदर्भ में सफल नीति माना जा सकता है। संजय ने कहा कि इस सरकार ने मनमोहन सिंह की नीति को आगे बढ़ाने का ही प्रयास किया है। नेपाल में केपी ओली और चीन के साथ बढ़ते आपसी संबंध और वहां की स्थानीय राजनीति की वजह से संबंध खराब हुए हैं। जिस मुद्दे पर कांग्रेस सरकार फेल रही है उसी मुद्दे को सॉल्व करने में नरेंद्र मोदी की सरकार भी फेल रही है। ये मुद्दे किसी एक सरकार, एक पार्टी के नहीं बल्कि ये देश के मुद्दे हैं।

बजट सत्र भाषण में राहुल गांधी ने मोदी सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाए तो खुद ही मोर्चा संभालते हुए विदेश मंत्री ने उनके बयान का पलटवार किया। (फाइल फोटो)
बजट सत्र भाषण में राहुल गांधी ने मोदी सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाए तो खुद ही मोर्चा संभालते हुए विदेश मंत्री ने उनके बयान का पलटवार किया। (फाइल फोटो)

राहुल गांधी के बयान पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर का पलटवार

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने राहुल गांधी के भाषण के जवाब में ट्वीट कर पलटवार किया है। उन्होंने कहा, ‘1963 में शक्सगम वैली को पाकिस्तान ने अवैध तरीके से कब्जा करने के बाद चीन को दे दिया था। 1970 में चीन ने पाकिस्तान में काराकोरम हाईवे बनाया था। इसी साल दोनों देशों के बीच परमाणु समझौता हुआ। 2013 में चीन ने पाकिस्तान में इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाना शुरू किया था।’

साफ है कि चीन और पाकिस्तान पहले से करीब रहे हैं। एस जयशंकर ने जिन घटनाओं का जिक्र किया, उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। ऐसे में एक तरह से विदेश मंत्री ने पाकिस्तान और चीन की दोस्ती के लिए भी कांग्रेस की सरकार को जिम्मेदार बताने की कोशिश की।

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