इंदौर … ऐसे बर्बाद हो रहा जनता का पैसा ….मेडिकल कॉलेज में 7 करोड़ में बनना था ऑडिटोरियम 9.5 करोड़ में बनाया खंडहर, पूरा करने 11 करोड़ और चाहिए

सरकारी विभाग किस तरह जनता की गाढ़ी कमाई बर्बाद करते हैं, इसका बड़ा उदाहरण सामने आया है। एमसीआई की शर्तों के अनुसार एमजीएम मेडिकल कॉलेज में 7 करोड़ की लागत से 1000 सीट वाला ऑडिटोरियम बनाया जाना था। हद यह है कि कॉलेज प्रशासन उस पर 9.5 करोड़ रुपए खर्च कर चुका है। इतने खर्च के बाद भी बिल्डिंग जाकर देखेंगे तो वहां सिर्फ खंडहर नजर आएगा।

काम पूरा करने के लिए कॉलेज को अब भी 11 करोड़ की दरकार है। यानी, लागत मूल प्रस्ताव से तीन गुना 21 करोड़ तक पहुंच गई है। किसी के पास इस बात का जवाब नहीं है कि इस बर्बादी का जिम्मेदार कौन है? कॉलेज प्रशासन बस एक ही दलील दे रहा है कि अतिरिक्त राशि के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा है। वहीं निर्माण एजेंसी पीडब्ल्यूडी की पीआईयू विंग के ईई प्रदीप सक्सेना से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया।

अब एमसीआई ने ऑडिटोरियम की शर्त ही हटा दी

  • एमसीआई ने एमबीबीएस और पीजी सीट की मान्यता के लिए हजार सीट का ऑडिटोरियम अनिवार्य किया था।
  • 2009-10 में पीडब्ल्यूडी ने एमजीएम में ऑडिटोरियम के लिए 7 करोड़ रुपए का इस्टीमेट बनाकर दिया।
  • जिम्मेदार जगह तय नहीं कर पाए। 2014 में लागत दस करोड़ हो गई। सरकार ने 2015 में इसे मंजूरी भी दे दी।
  • 2016 में बनना शुरू हुआ। प्रस्ताव के 11 साल बाद करीब 9.5 करोड़ लगाने के बाद भी बिल्डिंग अधूरी है।

सिर्फ ढांचा बना है साउंड, एसी, फायर फाइटिंग सिस्टम बाकी

पांच साल में यह पूरा नहीं बन पाया। निर्माण एजेंसी पीआईयू ने यह कहते हुए काम करने से इनकार कर दिया कि अतिरिक्त बजट चाहिए। सिविल वर्क, साउंड सिस्टम, एसी, बिजली, फायर फाइटिंग आदि कई काम बाकी हैं। सब इंजीनियर राजेश मकवाना का कहना है कि इसे पूरा करने के लिए 11 करोड़ रु. और चाहिए।

नया प्रस्ताव शासन को भेजा है, जल्द फिर काम शुरू होगा

एमसीआई की अनिवार्यता के चलते ही प्रस्ताव को मंजूरी मिली थी। बनकर तैयार हुआ तब तक अनिवार्यता हट गई। फर्नीचर सहित कुछ अन्य कामों के लिए राशि का प्रस्ताव शासन को भेज दिया है। जल्द काम शुरू हो जाएगा।
– डॉ. संजय दीक्षित, डीन, एमजीएम कॉलेज

अगर ये बर्बादी नहीं होती- तो मेडिकल कॉलेज व एमवाय में जुट सकती थीं वर्षों से अटकीं ये सुविधाएं

  • कैंसर हॉस्पिटल में लीनियर एक्सीलरेटर ला सकते थे, जिसकी सख्त जरूरत है।
  • होस्टल में नया ब्लॉक बनाया जा सकता था
  • जीनोम सीक्वेंसिंग की एक नहीं चार मशीन इस राशि से खरीदी जा सकती थी, जिससे दिल्ली पर निर्भरता खत्म होती।
  • सीटी स्कैन, एमआरआई मशीन खरीदी जा सकती थीं, अभी पीपीपी मोड पर चला रहे हैं।
  • ऑपरेशन थिएटर के लिए आधुनिक उपकरण लिए जा सकते थे, जिसके लिए अभी दान पर निर्भर रहना पड़ता है। बच्चों के ऑपरेशन के लिए लेप्रोस्कोपिक तक नहीं है।
  • स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स बनाया जा सकता था।
  • लैब अपग्रेडेशन में यह राशि लगा सकते थे।

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