पाकिस्तानी ड्रोन नहीं बल्कि खुद की पीठ थपथपाने वाली बल्ले-बल्ले की संस्कृति पंजाब के लिए ज्यादा खतरनाक

पंजाब के सामने कई खतरे हैं. लगभग सारे खतरे आंतरिक हैं और अधिकतर के लिए खुद पंजाब के लोग जिम्मेदार हैं. जब तक वे अपने गिरेबान में नहीं झांकेंगे तब तक उनकी भावी पीढ़ियों को लगातार पतन की ओर बढ़ रही परिस्थितियों में जीना पड़ेगा.

यह कुछ अजीब-सी बात लग सकती है कि पंजाब में कभी एक ही पार्टी और एक ही मंत्रिमंडल में साथी रहे अमरिंदर सिंह और चरणजीत सिंह चन्नी आज एक-दूसरे के खिलाफ विधानसभा चुनाव इस मुद्दे पर लड़ रहे हैं कि राज्य के लिए सुरक्षा का खतरा बढ़ रहा है या नहीं. मुझे  इंटरव्यू  देते हुए अमरिंदर सिंह कई दस्तावेज और आंकड़े दिखाते हुए कहते रहे हैं कि पाकिस्तान अपने ड्रोनों से यहां हथियार, विस्फोटक, ड्रग्स, और लंच बॉक्स के आकार के आइईडी गिराता रहा है.

उधर चन्नी हमारे राजनीतिक संपादक डीके सिंह को दिए  इंटरव्यू में ‘सुरक्षा के खतरे’ के इस दावे का मज़ाक उड़ाते हुए अमरिंदर पर इस बहाने से दहशत फैलाने के आरोप लगा रहे हैं. हकीकत कहीं ज्यादा पेचीदा और डरावना है और इसमें केवल पाकिस्तानी ड्रोन मुख्य मसला नहीं हैं.

पंजाब कई घातक खतरों से रू-ब-रू है और लगभग सारे खतरे आंतरिक हैं. कुछ के लिए आप केंद्र सरकार को जिम्मेदार बता सकते हैं, लेकिन अधिकतर खतरों के लिए खुद पंजाब के लोग जिम्मेदार हैं. जब तक वे अपने गिरेबान में गहराई से नहीं झांकेंगे तब तक उनकी भावी पीढ़ियों को इस निरंतर पतन के बीच जीने को मजबूर होना पड़ेगा.

चुनाव के दौरान मैं यह कड़वी बात कह रहा हूं लेकिन सच यही है कि कोई भी सत्ता में आए, इस राज्य की समस्याएं नहीं हल होने वाली हैं. नकारात्मक बात कहने के लिए मुझे अफसोस है, लेकिन चुनाव लड़ रहे चार प्रतिद्वंद्वी- कांग्रेस, आप, अकाली दल, और अमरिंदर-भाजपा गठबंधन- जो तमाम वादे कर रहे हैं उन पर आप नज़र डाल लीजिए.

कोई भी उस आलसी, अपनी पीठ खुद थपथपाने वाली संस्कृति को बदलने या चुनौती देने का वादा नहीं कर रहा, पंजाब जिसका खुद कैदी बन गया है. वे बस ज्यादा से ज्यादा मुफ्त सुविधाएं देने के वादे कर रहे हैं. वर्तमान मुख्यमंत्री बिजली के बिल फाड़ते और जलाते हुए बिजली दरों में कटौती करने के वादे कर रहे हैं. मानों, सार्वजनिक वित्तीय व्यवस्था के तमाम सिद्धांतों का सार्वजनिक खून करना बहुत बुरी बात नहीं हो. आम आदमी पार्टी प्रदेश की हर एक महिला को 1000 रुपये दान देने के वादे कर रही है. आप इस तरह दान देने के पक्ष में हों या नहीं हों, इसे ज़रा इस नजरिए से भी देखिए.

देश के लोगों की नज़र में पंजाब सबसे धनी, सबसे खुशहाल, सबसे ताकतवर राज्य के रूप में माना जाता है; जो कि लाखों प्रवासी मजदूरों, तथाकथित ‘भैया’ लोगों को अपने हरे-भरे खेतों में रोजगार देता है और देश के चावल-गेहूं के भंडार में सबसे बड़ा योगदान देता है. तो फिर, इस तरह के राज्य में ऐसी लाखों महिलाएं कैसे मौजूद हैं जिन्हें राजनीतिक सत्ता की दावेदार आम आदमी पार्टी मात्र 1000 रु. देने के वादे से रिझा लेगी? इतना रुपया तो पंजाब में मजदूरी करने वाला एक ‘भैया’ सिर्फ तीन दिन में कमा लेगा. तो इस सबका क्या मतलब है?

पंजाब देश का सबसे धनी राज्य है, यह कहानी करीब 20 साल पहले ही पुरानी हो चुकी है. उसके बाद के वर्षों में आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह राज्य पूर्ण राज्यों की लिस्ट में 15वें नंबर पर पहुंच चुका है.

अगर आप केंद्रशासित प्रदेशों को जोड़ लें तो वह 19वें नंबर पर दिखेगा. महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और गुजरात जैसे बड़े राज्य उससे काफी आगे निकल चुके हैं. वास्तव में, अगर आप प्रति व्यक्ति नॉमिनल आय की कसौटी के आधार पर देखें तो वह अरुणाचल प्रदेश से भी मात खाता नज़र आएगा. प्रति व्यक्ति आय के राष्ट्रीय औसत से ऊपर वाले राज्यों की सूची में 19वें नंबर वाला पंजाब सबसे नीचे नजर आएगा.

पंजाब के नीचे 20वें नंबर पर पश्चिम बंगाल पिछड़ते राज्यों को सामने लाता है. क्या पता कल को वह पंजाब से आगे निकल जाए. तब यह पंजाबी शान के लिए कितनी बुरी बात होगी या पुरानी धारणा में कैद लोगों के लिए कितनी निराशाजनक बात होगी जब यह कहा जाएगा की पंजाबी तो ‘मद्रासियों और बंगालियों’ से भी गरीब हैं. ये जुमले मैं पंजाब के आम स्थानीय लोगों से उधार ले रहा हूं, जो इनका इस्तेमाल करते हैं.

पंजाब की यह हालत कैसे हो गई? दूसरे प्रगतिशील कृषि प्रधान राज्यों, खासकर मध्य प्रदेश ने आधुनिक खेती के तरीकों को सीखा और सीढ़ी पर ऊपर चढ़ गए. मध्य प्रदेश आज राष्ट्रीय भंडार में दूसरे राज्यों के मुकाबले कहीं ज्यादा गेहूं दे रहा है. पंजाब जहां का तहां अटक गया. किसान आंदोलन के दौरान उन्होंने दिल्ली की सरहदों पर काफी जीवंत, रंग-बिरंगा और जोशीला माहौल बनाया. लेकिन इतने सारे भूमिपति किसान यहां जमे रहे इसकी एक वजह यह भी थी कि उनके ‘भैया लोग’ अपने गांवों के खेतों को संभालने में व्यस्त थे और इधर इनके बालिग बच्चे विदेश भागने के जुगाड़ में लगे थे, वह भी ज़्यादातर गैरकानूनी  तरीके से और बिना किसी रोजगार के वादे के. यह विचित्र स्थिति है. आप अपने खेतों पर काम करने के लिए हिंदी पट्टी से लाखों प्रवासी मजदूरों को बुलाते हैं और आपके बच्चे कनाडा भागे जा रहे हैं, वह भी अक्सर यूरोप होते हुए अवैध तरीके से.

मैं दो बातों की ओर आपका ध्यान खींचना चाहूंगा. पहली बात तो वह है जो हमारी युवा रिपोर्टर शुभांगी मिश्रा की एक खबर से उभरती है. मिश्रा उल्टे महिलाओं द्वारा पुरुषों को दी गई यातना की अविश्वसनीय कहानी कहती हैं. मेरा ख्याल है कि किसी पंजाबी के बड़े अहम् को यह कहानी कबूल नहीं होगी. यह मुख्यतः पंजाबी सिख पतियों की दुखद कहानी है जिन्हें उनकी पत्नियों ने त्याग दिया है. जी हां, यह सच है. अब तक तो आप पंजाबियों के बारे में ‘लस्सी, मक्के की रोटी, सरसों दा साग, लेग, पेग, तित्तर, कुक्कड’ वाले घिसे-पिटे जुमले ही सुनते रहे हैं मगर अब उनके साथ एक नयी कहानी जुड़ गई है.

यहां मैं आपको अमेज़न प्राइम पर पंजाबी फीचर फिल्म ‘जट्ट वर्सस आइईएलटीएस’ देखने का सुझाव दूंगा. ये आइईएलटीएस (इंटरनेशनल इंगलिश लैंग्वेज टेस्टिंग सिस्टम) अंग्रेजी पढ़ने, लिखने, बोलने की वह प्रारंभिक परीक्षा है जिसे पास करना कनाडा या दूसरे स्वप्निल मुकामों का वीज़ा हासिल करने की पहली शर्त है. हर साल लाखों पंजाबी युवा इस परीक्षा में बैठते हैं और अधिकतर फेल हो जाते हैं. इस फिल्म का हीरो अपने डैडी की मोटरबाइक पर घूमने, अपनी मां से पानी का गिलास मांगने, शराब पीने के सिवा कुछ नहीं करता मगर उसका एक ही सपना है- आइईएलटीएस की परीक्षा पास करके कनाडा पहुंचना. उसकी धर्म-परायण मां का मानना है कि बेटा वहां जाएगा और ‘डॉलर में खेलेगा’.  यह और बात है कि इस ‘जट्ट वर्सस आइईएलटीएस’ जंग में हमेशा आइईएलटीएस की जीत होती है.

हताश माता-पिता अंत में अपने फिजूल खर्च बेटे के लिए एक बहू खोजते हैं जो पहले ही आइईएलटीएस की परीक्षा पास कर चुकी है. बहू के लिए एकमात्र योग्यता वही है. जो भी हो, वह जवान इस लड़की में दिलचस्पी नहीं लेता, सुहाग रात में भी नहीं. वह सिर्फ यह चाहता है कि वह कनाडा जाए और वहां से उसे पति को मिलने वाले वीज़ा पर कनाडा बुला ले. लड़की कनाडा जाती तो है मगर भारत में इंतजार कर रहे पति को भूल जाती है. इसी परित्यक्त पति की हम बात कर रहे हैं. पंजाब में इनकी संख्या अच्छी-ख़ासी हो गई है, इतनी कि उन्होंने अपने अधिकारों के लिए लड़ने की खातिर संघ भी बना लिये हैं. वकील और पुलिस वाले अब ऐसी पत्नियों के लिए जिम्मेदारियां तय करते हुए एक करारनामा तैयार करने पर विचार कर रहे हैं. यह स्थिति तब है जब हम यह सोचते रहे हैं कि पति ही पत्नियों को त्याग दिया करते हैं.
फिल्म का अंत नेकी के साथ होता है, जो वैसा नहीं है जैसा आप जैसे सजग लोग सोच सकते हैं. बहरहाल, इसे जरूर देखिए.

यह नाउम्मीदी, आत्मविश्वास का लोप, नशे और ‘अच्छी ज़िंदगी’ की ओर भागने की संस्कृति, अकुशल और अवैध प्रवासी बनकर भागने की प्रवृत्ति ही पंजाब के लिए बड़ा खतरा है. लोग यहां भूखों नहीं मर रहे. कहीं जो आप उनके मेहमान बनकर पहुंच गए तो उनके पास खिलाने-पिलाने की पर्याप्त चीजें हैं. लेकिन उनके यहां रोजगार नहीं है और न अब उद्यमशीलता रह गई है.

अंत में, सुझाव दूंगा कि यूट्यूब पर ‘ड्यूशेवेल’ का वृत्तचित्र ‘पुर्तगाल: मॉडर्न स्लेवरी फॉर ऐन ईयू पासपोर्ट’ जरूर देखें. आप पाएंगे कि ‘एजेंटों’ को भारी रकम देकर बड़ी संख्या में पंजाबियों को टूरिस्ट वीज़ा पर लाया जाता है, जिसके लिए 15,000 यूरो तक का भुगतान किया जाता है. वे गुलामों वाली मजदूरी कमाते हैं, गुलामों की डॉरमेट्री में रहते हैं, रसभरी या दूसरे फलों की बुआई, सिंचाई और तुड़ाई में घंटों खटते हैं. जिस काम के लिए पुर्तगाली मजदूर काफी महंगे हैं. ये पंजाबी यह सब इसलिए करते हैं कि सात साल बाद उन्हें पुर्तगाली पासपोर्ट मिल जाता है. पंजाबी मजदूर बेहद कड़ी मेहनत कर सकते हैं, उन ‘भैया’ लोगों की तरह जिनसे वे अपने गांवों में मजदूरी करवाते हैं. लेकिन फर्क यह है कि ये ‘भैया’ पंजाब में न तो अवैध रूप से आते हैं और न अवैध रूप से रहते हैं.

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