कैसे होती है IPL नीलामी, कौन तय करता है खिलाड़ियों की बेस प्राइस, कौन है नीलामी में सबसे महंगा बिका खिलाड़ी?
IPL 2022 की नीलामी 12 और 13 फरवरी को बेंगलुरु में होने जा रही है। इस बार IPL की मेगा नीलामी में 10 टीमें हिस्सा ले रही हैं। इस मेगा ऑक्शन में कुल 590 खिलाड़ियों पर बोली लगेगी। इनमें 320 भारतीय जबकि 270 विदेशी खिलाड़ी हैं। IPL की शुरुआत 2008 में हुई थी और इस बार इसका 15वां सीजन खेला जाएगा।
चलिए जानते हैं कि आखिर कैसे होती है IPLकी नीलामी, कैसे तय होती है टीमों की बेस प्राइस, क्या है राइट टू मैच कार्ड?
क्या है IPL खिलाड़ियों की नीलामी?
- IPL नीलामी से ये फैसला होता है कि किस टीम के लिए कौन सा खिलाड़ी खेलेगा।
- ये एक खुली नीलामी होती है, जिसमें सभी टीमें हिस्सा ले सकती हैं और जिस भी खिलाड़ी को वे खरीदना चाहती हैं, उनके लिए बोली लगा सकती हैं।
- भले ही किसी टीम ने BCCI को खिलाड़ियों की लिस्ट भेजते समय उस खिलाड़ी में रुचि न दिखाई हो, लेकिन नीलामी में वह उस खिलाड़ी पर बोली भी लगा सकती है और उसे खरीद भी सकती है।
- नीलामी में आने वाली टीमें पूरी तैयारी के साथ आती हैं। टीमों के पास उन खिलाड़ियों की लिस्ट होती है, जिन्हें वे खरीदना चाहती हैं। इसके लिए वे प्लान ए, बी, सी, डी आदि बनाकर रखती हैं।
- टीमों की जिन खिलाड़ियों को खरीदने की योजना होती है, अगर वो सफल नहीं होती है, तो वे अपने प्लान बी में शामिल खिलाड़ियों को खरीदती हैं और फिर अन्य प्लान में शामिल खिलाड़ियों को खरीदती हैं।
नीलामी में कैसे होता है अलग-अलग ग्रुप में खिलाड़ियों का बंटवारा
आमतौर पर नीलामी में खिलाड़ियों को तीन कैटेगरी- इंडियन कैप्ड, इंडियन अनकैप्ड और विदेशी खिलाड़ियों में बांटा जाता है। इसके बाद इन खिलाड़ियों को अलग-अलग लॉट में उनकी विशेषता के आधार पर रखा जाता है, जैसे-गेंदबाज, तेज गेंदबाज, स्पिन गेंदबाज, ऑलराउंडर और विकेटकीपर। अपने देश के लिए अब तक इंटरनेशनल मैच नहीं खेलने वाले खिलाड़ी को अनकैप्ड कहा जाता है।
कैसे होती है IPL खिलाड़ियों की नीलामी?
- ये नीलामी भी किसी और नीलामी की तरह ही होती है। IPL नीलामी के दौरान नीलामी कराने वाला या ऑक्शनर खिलाड़ी के नाम का ऐलान करता है।
- ऑक्शनर बताता है कि खिलाड़ी क्या करता है, यानी बल्लेबाज है या गेंदबाज और किस देश का है और उसकी बेस प्राइस क्या है। इसके बाद टीमें उस खिलाड़ी की बेस प्राइस के अनुसार बोली लगाती हैं।
- मान लीजिए कि किसी खिलाड़ी की बेस प्राइस 1 या 2 करोड़ रुपए है, तो उस खिलाड़ी की पहली बोली 1 या 2 करोड़ रुपए से ही शुरू होगी। इसके बाद बाकी टीमों के भी बोली लगाने से उस खिलाड़ी की कीमत बढ़ती जाती है।
- खास बात ये है कि किसी भी खिलाड़ी को उसकी बेस प्राइस से कम कीमत पर नहीं खरीदा जा सकता है। हालांकि, कोई भी टीम किसी खिलाड़ी को उसकी बेस प्राइस पर भी खरीद सकती है।
- किसी खिलाड़ी के लिए सबसे ऊंची बोली लगने के बाद ऑक्शनर खिलाड़ी पर लगी आखिरी बोली के बारे में तीन बार सभी टीमों को बताने के बाद और अगर कोई टीम रुचि नहीं दिखाती तो सोल्ड कहकर नीलामी प्रक्रिया को पूरा कर देता है।
- जो टीम सबसे ऊंची बोली या आखिरी बोली लगाती है, वही खिलाड़ी को खरीदती है और अपनी टीम में शामिल करती है।
- कई बार किसी खिलाड़ी को खरीदने के लिए दो टीमों के बीच होड़ लग जाती है, इसे बिडिंग वॉर कहते हैं। इससे कई बार खिलाड़ी अपनी बेस प्राइस से बहुत ऊंची कीमत में बिक जाते हैं।
क्या होती है खिलाड़ियों की बेस प्राइस, कैसे होती है तय?
- बेस प्राइस वह न्यूनतम कीमत होती है, जिस पर नीलामी में खिलाड़ी पर बोली लगती है। बेस प्राइस को खिलाड़ी नीलामी से पहले तय करता है और BCCI को सौंपता है।
- खिलाड़ी अपने बोर्ड से एक नॉन ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट यानी NOC भी BCCI को सौंपता है, जिसमें लिखा होता है कि उसके बोर्ड की तरफ से उसे IPL में शामिल होने की इजाजत मिल चुकी है।
- आमतौर पर चर्चित कैप्ड भारतीय खिलाड़ी और विदेशी खिलाड़ी अपनी बेस प्राइस ज्यादा रखते हैं, क्योंकि उन्हें उम्मीद होती है कि उन्हें नीलामी में ऊंची कीमत मिलेगी। वहीं, अनकैप्ड और कम चर्चित खिलाड़ी अपेक्षाकृत अपनी बेस प्राइस कम रखते हैं।
- खिलाड़ी बेस प्राइस को तय करते समय अपने पिछले प्रदर्शन, अपनी लोकप्रियता, सोशल मीडिया फॉलोअर्स आदि जैसी चीजों को ध्यान में रखते हैं।
अनसोल्ड खिलाड़ी को जानिए
अनसोल्ड खिलाड़ी वह होता है, जिस पर नीलामी के दौरान कोई भी टीम बोली नहीं लगाती है, या जिसे कोई भी टीम खरीदना नहीं चाहती है। अगर कोई खिलाड़ी पूरी नीलामी प्रक्रिया के दौरान नहीं बिक पाता, तो उसे अनसोल्ड प्लेयर या न बिक पाने वाला खिलाड़ी कहते हैं।
अनसोल्ड खिलाड़ी दोबारा बिक सकता है?
- हां, नीलामी के पहले राउंड में अनसोल्ड रहे खिलाड़ी का नाम नीलामी के अंत में या तेजी से होने वाली नीलामी प्रक्रिया के दौरान फिर से लाया सकता है। ऐसा तब होता है, जब टीमें उस खिलाड़ी में इंट्रेस्ट दिखाती हैं।
तेजी से होने वाली नीलामी क्या है?
- इसे एक्सीलेरेटेड बिडिंग भी कहते हैं। इसमें BCCI को एक लिस्ट सौंपी जाती हैं, जिसमें उन अनसोल्ड खिलाड़ियों के नाम होते हैं, जिनमें टीमें रुचि दिखाती हैं।
- अनसोल्ड खिलाड़ियों पर ऑक्शन में दोबारा बोली लगती है तो नीलामी प्रोसेस बहुत तेजी से होती है, जिसमें ऑक्शनर जल्दी-जल्दी खिलाड़ियों के नाम लेता है, जिनमें से कुछ को टीमें खरीदती हैं।
- तेजी से होने वाली इस नीलामी में ज्यादातर खिलाड़ी बेस प्राइस पर ही खरीदे जाते हैं। कई बार इस प्रक्रिया में भी दो टीमों के बीच किसी खिलाड़ी को खरीदने की होड़ लगती है। हालांकि, ऐसा आमतौर पर बहुत कम होता है।
नीलामी के बाद बिक सकता है अनसोल्ड खिलाड़ी?
- हां, अनसोल्ड खिलाड़ी को किसी टीम के चोटिल खिलाड़ी या उपलब्ध न हो पाने वाले खिलाड़ी के रिप्सेलसमेंट के तौर पर टूर्नामेंट के दौरान चुना जा सकता है।
एक नीलामी में कितने खिलाड़ियों पर लगती है बोली?
- नीलामी दर नीलामी खिलाड़ियों की संख्या बदलती रहती है। अगर ये मिनी नीलामी है, तो इसमें खिलाड़ियों की संख्या कम होती है।
- खिलाड़ियों का करार खत्म होने के बाद होने वाली मेगा नीलामी में खिलाड़ियों की संख्या ज्यादा होती है। जैसे-IPL 2022 मेगा नीलामी है।
- नीलामी में भाग लेने वाले खिलाड़ियों की आखिरी संख्या इस बात पर निर्भर करती है कि नीलामी के लिए रजिस्टर कराए गए खिलाड़ियों में से किन खिलाड़ियों को लेकर टीमों ने रुचि दिखाई है।
- IPL 2022 की नीलामी के लिए कुल 1214 खिलाड़ियों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन इनमें से केवल 590 खिलाड़ियों को शॉर्टलिस्ट किया गया।
क्या खिलाड़ी जितने पैसों में खरीदे जाते हैं, उतने उन्हें मिलते हैं?
हां, अगर किसी खिलाड़ी को 5 करोड़ रुपए में 3 साल के करार पर खरीदा गया है, तो वह प्रति वर्ष 5 करोड़ रुपए पाने का अधिकारी है।
किन परिस्थितियों में खिलाड़ी को पूरा पैसा मिलता है और कब नहीं-
- अगर कोई खिलाड़ी पूरे सीजन के लिए उपलब्ध होता है, तो फिर चाहे उसने जितने भी मैच खेले हों, उसे पूरा पैसा मिलता है।
- अगर सीजन शुरू होने से पहले ही खिलाड़ी चोट की वजह से बाहर हो जाता है, तो टीम को कोई पैसा नहीं देना पड़ता है।
- अगर कोई खिलाड़ी पूरे सीजन की बजाय कुछ मैचों के लिए उपलब्ध होता है, तो उसे टीमें 10% रिटेनरशिप फीस के साथ उपलब्धता के आधार पर पैसे देती हैं।
- अगर कोई टीम सीजन के बीच में खिलाड़ी को रिलीज करना चाहती है तो उसे पूरे सीजन के पैसे देने होते हैं।
- अगर कोई खिलाड़ी टूर्नामेंट के बीच में चोटिल हो जाता है, तो टीम को उसका मेडिकल खर्च उठाना होता है।