यहां बिखरे हैं 865 करोड़ की बर्बादी के निशान …
जेपी सेंटर में ओलिंपिक साइज का टेनिस कोर्ट, 7 फीट बाहर लटकता स्विमिंग पूल और रूफ टॉप हैलीपेड …..
समाजवादी पार्टी के घोषणा पत्र में जेपी इंटरनेशनल सेंटर को अखिलेश ने उपलब्धि बताकर नई बहस को हवा दे दी है। 5 साल से अधूरा पड़ा स्ट्रक्चर सपा और भाजपा सरकार के बीच दिन बहुरने का इंतजार कर रहा है।
क्योंकि सियासत में एक रवायत है कि खुद को बेहतर दिखाने के लिए पिछली सरकार की योजनाओं और फैसलों को रोक दिया जाता है। बसपा शासन में मायावती के बनाए हुए निर्माणों पर अखिलेश सरकार में सवाल उठे। अब योगी सरकार में अखिलेश के बनाए हुए स्ट्रक्चर पर सवाल और जांच बैठाई जा रही है। इस क्रम में भारत रत्न जय प्रकाश नारायण की याद में बनाए गए जय प्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर भी अधूरा पड़ा हुआ है।
इस सेंटर को पूरा कराने के लिए 130 करोड़ अभी और खर्च होने हैं। 828 करोड़ पहले ही खर्च हो चुके हैं। योगी शासन में 5 साल से जांच में अटके इस सेंटर की किस्मत अब चुनाव के बाद नई सरकार तय करेगी कि अखिलेश यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट पूरा होगा या बिकेगा।
आइए आपको बताते हैं कि जेपी इंटरनेशनल सेंटर यूपी के लिए क्यों खास रहा…
- देश का दूसरा सबसे अच्छा ऑलवेदर स्वीमिंग पूल है।
- 75,464 वर्ग मीटर जमीन पर निर्माण हुए।
- ओलंपिक साइज का टेनिस कोर्ट है।
- मल्टीपरपज कोर्ट और बैडमिंटन कोर्ट बनाया गया।
- एक हजार लोगों की क्षमता वाला कॉन्फ्रेंस हॉल है।
- दो हजार लोगों की क्षमता वाला कन्वेंशन सेंटर है।
- 103 लग्जरी कमरे, 7 सुइट रूम सहित कुल 117 कमरों का गेस्ट हाउस है।
- 72 बेड की डोरमेट्री, ओपन एयर रेस्टोरेंट और कैफेटेरिया है।
- जिम, मदर किचन जैसी तमाम वर्ल्ड क्लास की सुविधाएं दी गई हैं।
- बिल्डिंग के टॉप फ्लोर से 7 फीट बाहर लटकता स्विमिंग पूल है।
- रूफ टॉप हैलीपेड भी इसकी खासियत है।
- यहां 3355 वर्ग मीटर में आधुनिक म्यूजियम भी बनाया गया है।
योगी सरकार में हुई जांच में गड़बड़ियां मिली
चुनाव प्रचार के साथ अखिलेश दिसंबर 2021 में अचानक जेपी इंटरनेशनल सेंटर पहुंच गए थे। उन्होंने एक बार लोगों को रीकॉल कराया कि कैसे योगी शासन आने के बाद उनके ड्रीम प्रोजेक्ट को रोक दिया गया। शानदार दिखने वाला स्ट्रक्चर कैसे बदहाल हो रहा है।
इसके निचले हिस्से के निर्माण पेड़ों और झाड़ियों में गुम से हो चुके हैं। जबकि अंदरुनी और ऊपरी हिस्सा कबाड़ में तब्दील हो लगा है। बाहरी हिस्से में टेराकोटा की टाइल्स का रंग उड़ गया है। अब कई जगह ये टाइल्स उखड़ने लगे हैं।
2013 में शालीमार कापर्स को इस प्रोजेक्ट का काम दिया गया था। शालीमार ने 2015 में प्रोजेक्ट निर्माण मैकेनिकल इलेक्ट्रिकल और प्लंबिंग का काम बिकरौली (मुंबई) की गोदरेज एंड वायस मैन्युफैक्चरिंग कंपनी को दिया।
2017 में योगी सरकार आने के बाद से जेपीएनआईसी का काम ठप पड़ा है। शुरुआती बजट 865 करोड़ रुपए का था। बाद में लगतार बढ़ता गया। जब काम बंद हुआ तब तक 881 करोड़ खर्च हो चुके थे। अभी 130 करोड़ की और दरकार है।
योगी सरकार ने इस प्रोजेक्ट की लागत बढ़ने पर घोटाले के आरोप लगाए। तीन सदस्यीय टीम से जांच कराई। जांच करने वाली कमेटी यहां विद्युत, निर्माण सामग्री और प्लंबिंग सामग्री सहित कई चीजों की जांच कर चुकी है। जांच के मुताबिक बिजली का कामों में 19% का अंतर मिला। इसमें बताया गया कि विद्युत यांत्रिक के कामों पर 218 करोड़ रुपए के काम हुए। इसमें से करीब 9 करोड़ के कामों के लिए कमेटी से अनुमोदन नहीं लिया गया।
खराब लिफ्ट, कबाड़ में तब्दील होता सेंटर
निर्माण और रखरखाव बंद होने से जेपी सेंटर कबाड़ और खंडहर में तब्दील होने लगा है। यहां सालों से लिफ्ट खराब पड़ी है। मंत्री, अफसर जब-जब भी यहां दौरे पर आए तो उन्हें सीढ़ियों से ही जाना पड़ा। सेंटर के अंदर पैदल जाने के लिए जो रैंप बनाया गया था। उस पर 10-12 फीट ऊंचे पेड़ों का जंगल बन गया है। जनरेटर से लेकर तमाम मशीनों के पुर्जें जंग लगने से खराब हो चुके हैं।
जगह-जगह टेराकोटा की टाइल्स उखड़कर गिर रही हैं। सेंटर में भले ही सिक्योरिटी लगी है, लेकिन यहां चोरियां धडल्ले से हो रही हैं। पिछले साल 11 जून को यहां के प्रोजेक्ट मैनेजर कपिल नायक ने गोमतीनगर थाने में अज्ञात लोगों के खिलाफ 168 बाथरूम शॉवर, 126 सीपी एंगिल वाल्व चोरी करने का मामला दर्ज कराया था। पुलिस और पीडब्ल्यूडी ने इस चोरी की जांच की थी।
अब इन तस्वीरों पर निगाह डालिए, ताकि पता चल सके कि करोड़ों रुपए की लागत से हुए निर्माण किस तरह बदहाल हैं…
1682.83 करोड़ में एलडीए जेपी सेंटर को बेचना चाहता है
जय प्रकाश सेंटर के निर्माण के लिए तत्कालीन अखिलेश सरकार ने 864.99 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत किया था। इसमें से 821.75 करोड़ एलडीए को मिल भी चुके हैं। जिसमें से एलडीए ने 813 करोड़ खर्च कर कर दिए। वहीं 27 करोड़ के सिविल और 42.07 करोड़ के इलेक्ट्रिकल काम की देनदारी हो गई। एलडीए ने पिछले साल अगस्त में यहां के अधूरे काम पूरे करने के लिए 85 करोड़ की जरूरत बताई थी।
इसके बाद संशोधित डीपीआर तैयार करायी गई। 950 करोड़ रुपए की इस बढ़ी डीपीआर पर मुख्य सचिव आरके तिवारी की अध्यक्षता में हुई बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज की बैठक में सहमति बनी। लेकिन बाद में शासन से इसका वित्तीय अनुमोदन में मामला फिर अटक गया।
नतीजतन लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) ने जेपी सेंटर को 1682.83 करोड़ में बेचने का प्रस्ताव बनाकर आवास विकास विभाग को भेज दिया। इस पर सियासत गर्म हुई तो बेचने का प्रस्ताव भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब महंगाई बढ़ने से अधूरे कामों की लागत बढ़कर करीब 130 करोड़ रुपए हो गई है। लेकिन आचार संहिता लगने से पहले तक न तो इसे लेकर कोई चर्चा हुई और न ही इस पूरे प्रोजेक्ट को पूरा करने की कवायद की गई।