आदिवासी की जमीन पर बड़ा हेरफेर कलेक्टर ने पांच साल के मांगे रेकार्ड

खरीदी-बिक्री के मामले मेें आइजीआर को लिखा पत्र…

शहडोल. आदिवासियों की जमीन खुर्द-बुर्द न होने पाए इसे देखते हुए सरकार ने सख्त कानून बना रखा है। आदिवासियों की भूमि गैर आदिवासी नहीं खरीद सकता है। सरकार के इस कानून का भी रसूखदारों और कारोबारियों ने तोड़ निकाल लिया और आदिवासियों को ढाल की तरह उपयोग करना शुरु कर दिया। आदिवासियों को बरगला कर या प्रलोभन देकर उनके नाम से आदिवासियों की जमीन की खरीद-फरोख्त कर आलीशान इमारत खड़ी करने के साथ अन्य उपयोग किया जाने लगा। अब जब यह पूरा खेल सामने आया तो जिला प्रशासन ने इसे गंभीरता से लिया है। मामले को लेकर कलेक्टर ने पंजीयन विभाग को पत्राचार कर आदिवासियों की जमीन से जुड़े पांच वर्ष के दस्तावेज मांगे हैं। कलेक्टर द्वारा पंजीयन विभाग को किए गए पत्राचार में दो बिन्दुओं पर जानकारी चाही है। जिसके बाद पंजीयन विभाग आवश्यक जानकारी जुटाने में लगा हुआ है। इसके लिए अधिकारियों ने संपदा विभाग से भूमि क्रय-विक्रय सहित अन्य जानकारी चाही है। जहां से जानकारी उपलब्ध होने पर पूरी रिपोर्ट तैयार कर वह जिला प्रशासन को सौंपेंगे। लगातार शिकायतों के बाद कलेक्टर ने पांच साल का रेकार्ड मांगा है।

ऐसे हो रहा खेल
आदिवासी बहुल जिला होने की वजह से भले ही शासन ने आदिवासियों के जमीन की खरीद-फरोख्त में सख्ती दिखाई हो लेकिन रसूखदारों और कारोबारियों के सामने सभी कायदे कानून बौन साबित हो रहे हैं। जिले में कारोबारी भोले-भाले आदिवासियों को झांसे में लेकर उनके नाम पर दूसरे आदिवासी की जमीन खरीद-फरोख्त कर उसमें बड़ी-बड़ी इमारत, फार्म हाउस बना रहे हैं। जिसके नाम से जमीन खरीदी गई है उसे भी यह पता नहीं होता है कि उसकी जमीन का क्या उपयोग हो रहा है।

महानिरीक्षक पंजीयन को पत्र लिख मांगा रेकार्ड
कलेक्टर के निर्देश के बाद पंजीयन विभाग शहडोल ने मुख्यालय में महानिरीक्षक पंजीयन को पत्र लिखा है। जिसमें रेकार्ड की मांग की है। पत्र में बताया है कि गड़बड़ी से जुड़ी शिकायतों की जांच के लिए कलेक्टर ने रेकार्ड मंगाए हैं। रेकार्ड आते ही कलेक्टर को विस्तृत रिपोर्ट दी जाएगी।

पत्रिका ने उठाया मुद्दा तो शुरू हुई खोजबीन
आदिवासियों की जमीन में की जा रही गफलत के मुद्दे को पत्रिका ने उठाया था। इसे लेकर प्रमुखता से खबर प्रकाशित की। जिसके बाद प्रशासन हरकत में आया है। अब ऐसे आदिवासियों की खोजबीन की जा रही है जिनके नाम से जमीन तो खरीदी गई है लेकिन उसका उपयोग कोई और कर रहा है। यदि पूरे मामले की सघनता से जांच हो तो इस पूरे खेल में शामिल कई चेहरों का बेनकाब होना तय है।

शहडोल उमरिया में बड़ा हेरफेर, रसूख में दबा देते हैं फाइल
शहडोल और उमरिया में आदिवासियों की भूमि खरीदी-बिक्री का बड़ा खेल चल रहा है। उमरिया में 60 एकड़ भूमि तत्कालीन कलेक्टर ने आदिवासियों को गैर आदिवासियों को बेचने के लिए अनुमति दे दी थी। मामले की शिकायत हुई और विधानसभा में भी मुद्दा उठा लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। इसी तरह शहडोल में भी कई जगहों में आदिवासियों की भूमि खरीदी-बिक्री का मामला अधिकारियों तक पहुंचा लेकिन गठजोड़ के चलते कार्रवाई नहीं हुई। गोरतरा के अलावा ब्यौहारी में भी एक रसूखदार ठेकेदार ने रेकार्ड में हेरफेर करते हुए आदिवासियों की भूमि गैर आदिवासी के नाम करा ली थी। रजिस्ट्री में भी तथ्यों को छिपाया था लेकिन राजनीतिक रसूख के चलते कार्रवाई करने प्रशासन का पसीना छूट रहा है।

दो बिन्दुओं पर चाही गई जानकारी
आदिवासियों की जमीन को खुदु-बुर्द करने और उन्हे ढ़ाल के रूप में उपयोग किए जाने का मामला प्रकाश में आने के बाद हरकत में आया है। मामले को लेकर जिला प्रशासन ने पंचायत विभाग से दो बिन्दुओं पर जानकारी चाही है। जिसमें पहले बिन्दु में पिछले पांच वर्षों में आदिवासियों द्वारा विक्रय की गई भूमि के क्रेता, विक्रेता, खसरा नम्बर, सिंचित-असिंचित, कृषि भूमि, डायवर्टेड एवं नॉन डायवर्टेड की जानकारी चाही गई है। वहीं दूसरे बिन्दु में वर्तमान में आदिवासियों द्वारा विक्रय की गई भूमि किसके द्वारा एवं किस उपयोग में ली जा रही है।

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