लोकतंत्र है…लेकिन इनकी राजशाही कायम …
लोकतंत्र है…लेकिन इनकी राजशाही कायम:आज भी राजाओं वाला रुतबा; राजा भैया, संजय सिंह, आरपीएन सिंह चुनाव लड़ते हैं…इनके महल से चलती है सियासत….
क्या आप जानते हैं, उत्तर प्रदेश में ऐसे भी राजशाही परिवार हैं, जो लंबे अरसे से लगातार चुनाव लड़ रहे हैं और जीत भी रहे हैं। इनमें से कुछ सांसद हैं और कुछ विधायक। इन्हीं में चर्चित नाम हैं- कुशीनगर के पडरौना राजघराने के आरपीएन सिंह और प्रतापगढ़ राजघराने के रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया।
ये दो वो नाम हैं, जो मौजूदा राजनीति में सक्रिय हैं, और उत्तर प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में अपनी भूमिका दर्ज कराते आए हैं। आइए, जानते हैं ऐसे ही कुछ और राजघरानों के बारे में…
1. राजा जय सिंह से लेकर आरपीएन सिंह तक का राजपरिवार
सबसे पहले बात पडरौना राजघराने की। कांग्रेस के पूर्व सांसद कुंवर रतनजीत प्रताप नारायण सिंह (आरपीएन सिंह) को यूपी के पडरौना का राजा साहेब कहा जाता है। वह इसी नाम से प्रसिद्ध हैं। आरपीएन के पिता कुंवर सीपीएन सिंह कुशीनगर से सांसद थे। वह 1980 में इंदिरा गांधी कैबिनेट में रक्षा राज्यमंत्री भी रहे। पहले कांग्रेसी, अब भाजपाई आरपीएन सिंह के परिवार का क्षेत्र में ऐसा प्रभाव है कि, आज भी लोग उनकी तरफ पीठ दिखा करके वापस नहीं आते हैं।
आरपीएन सिंह 1996, 2002, 2007 में पडरौना के विधायक रहे हैं। 2009 में वे कुशीनगर के सांसद रहे हैं। उनके पिता सीपीएन सिंह 1980 में कुशीनगर के सांसद रहे। मोदी लहर में 2014 और 2019 का चुनाव हार गए। अब वह भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
2. प्रतापगढ़ का भदरी राजघराना
भदरी राजघराने का नाम सुनते ही प्रदेश व देश में लोगों के सामने राजा भैया का नाम सामने आ जाता है। इस रियासत के राजा राय बजरंग बहादुर सिंह हिमाचल प्रदेश के गर्वनर बने थे। इसके अलावा वह अवध फ्लाइंग क्लब के संस्थापक रहे। बाद में उस क्लब पर अमौसी एयरपोर्ट बना। बाबा की सियासत को मजबूती से आगे बढ़ाते रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया 1993 में विधानसभा चुनाव लड़े और बतौर निर्दलीय प्रत्याशी जीत हासिल की। इसके बाद वह विधानसभा का हर चुनाव जीतते चले गए।
प्रदेश की भाजपा व सपा सरकार में वह कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्य कर चुके हैं। मौजूदा समय में भी वह प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। वह इस बार भी कुंडा विधानसभा से ही चुनाव लड़ेंगे, लेकिन अपनी पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के टिकट पर। जिले की सियायत में राजाभैया का खासा दखल है।
3. संजय सिंह का अमेठी राजघराना
अमेठी राजघराने से जुड़े लोग 10 बार विधायक और 5 बार संसद सदस्य रह चुके हैं। अमेठी राजपरिवार के राजा रणंजय सिंह 1952 के पहले चुनाव में निर्दलीय विधायक चुने गए थे। 1969 में जनसंघ और 1974 में कांग्रेस के टिकट पर जीते। 1962 से 1967 तक अमेठी से कांग्रेस के टिकट पर संसद का चुनाव भी जीते। वह कोई भी चुनाव नहीं हारे थे। उनकी राजनीतिक विरासत को उनके बेटे संजय सिंह ने संभाला। कांग्रेस के टिकट पर वो 1980 से 1989 तक वो अमेठी से विधायक चुने गए। कई विभागों के मंत्री भी रहे। वीपी सिंह ने जब जनता दल बनाई तो वे उनके साथ हो लिए।
1989 के चुनाव में संजय सिंह ने राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन वह राजीव गांधी को हरा नहीं पाए। फिर वो बीजेपी में शामिल हो गए। 1998 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें टिकट दिया इस बार संजय सिंह जीत गए। अगले साल हुए लोकसभा चुनाव में सोनिया ने अमेठी से पर्चा भरा इस बार संजय सिंह को गांधी परिवार से फिर हार का सामना करना पड़ा। संजय सिंह 2003 में एक बार फिर कांग्रेस में वापस लौटे। 2009 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर सुल्तानपुर से जीते। बाद में कांग्रेस ने उन्हें राज्य सभा भेज दिया, लेकिन कार्यकाल खत्म होने से पहले ही जुलाई 2019 में एक बार फिर बीजेपी में शामिल हो गए।
4. देवरिया का मझौली राजपरिवार
देवरिया के मझौली राज परिवार का काफी समय तक दबदबा बना रहा। राजा अवेधश प्रताप मल्ल 1962, 1967 और 1985 में सलेमपुर से कांग्रेस से विधायक रहे। 1977 मे जनता पार्टी के हरि केवल प्रसाद से वे हार गए। उसके बाद हुए चुनाव में राज परिवार को सफलता नहीं मिली। राज परिवार के सदस्य वेद प्रकाश मल्ल बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की राजनीति में सक्रिय है। बेटा उमेश प्रताप मल्ल सीधे राजनीति में हिस्सा लेने की जगह विभिन्न पार्टियों को स्पोर्ट करता है।
5. बस्ती के राजा ऐश्वर्यराज सिंह
राजा ऐश्वर्य राज सिंह राष्ट्रीय लोकदल में सक्रिय है। वे पार्टी के राष्ट्रीय युवा महासचिव हैं और 2017 में बस्ती सदर सीट से चुनाव लड़ा था। हार गए। उनके पिता राजा लक्ष्मेश्वर 1991 में जनता दल के टिकट पर बस्ती सदर से विधायक चुने गए थे।
6. महराजगंज के राजा शिवेंद्र सिंह
महराजगंज के सिसवा विधानसभा से राजा शिवेंद्र सिंह पांच बार विधायक चुने गए थे। 2017 में वे सपा के टिकट पर चुनाव लड़े। हालांकि, योगी-मोदी लहर में वे बीजेपी के प्रेम सागर पटेल से 68 हजार वोटों से हार गए। 2020 में वह बीजेपी में शामिल गए। 2022 के चुनाव में बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। राजा शिवेंद्र सिंह के पिता राजा यादवेंद्र सिंह कांग्रेस से पांच बार विधायक रहे हैं। देश की आजादी के 75 वर्षों में केवल चार बार ऐसा हुआ है, जब सिसवा सीट राज परिवार से बाहर गई है।
7. बांसी के राजा जय प्रताप सिंह
जय प्रताप सिंह सात बार से विधायक है। योगी सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया है। 2022 के विधानसभा में भी बीजेपी ने अपना प्रत्याशी घोषित किया है। 2018 में उनका राज्यभिषेक हुआ था। क्षेत्र में इस कदर प्रभाव है कि, उनकी बातों को अभी भी लोग कानून मानते हैं। गोंडा में राज परिवार के सदस्य संसद और विधानसभा में जनता का प्रतिनिधित्व किया।
8. गोंडा का मनकापुर राज परिवार
मनकापुर राज परिवार के सदस्य ने 1971 से 2019 जनता का प्रतिनिधित्व संसद में किया। राजा आनंद सिंह के बाद राजा कुंवर कीर्तिवर्धन सांसद रहे। 2014 में राजा कुंवर कीर्तिवर्धन भाजपा से सांसद रहे। 2019 में एक बार फिर से भाजपा के टिकट पर वे सांसद बन करके जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।