जहां पैदा हुई कांग्रेस, वही सीट छोड़ी … बिलैया मठ कांड के बाद एक अंग्रेज ने 1885 में की थी कांग्रेस की स्थापना, जानिए… क्रांति से जुड़ी इसकी पूरी कहानी
चुनावी माहौल है। तीसरे चरण का मतदान हो रहा है। अगर आपसे कोई पूछे कि जसवंतनगर किस लिए चर्चा में है तो जाहिर है, सभी यही कहेंगे कि शिवपाल यादव की यह परंपरागत सीट है। ये तो है ही, इसके अलावा भी जसवंतनगर सीट खास है। क्यों? तो चलिए हम आपको बताते हैं, दरअसल, कांग्रेस पार्टी की स्थापना का कनेक्शन यहां से जुड़ा हुआ है।
यह महज संयोग ही है कि जिस जसवंतनगर की घटना के कारण देश की सबसे पुरानी पार्टी अस्तित्व में आई, आज उसी जसवंतनगर में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा। जसवंतनगर के पश्चिमी छोर पर बना बिलैया मठ 10 मई 1857 में मेरठ से उठी प्रथम स्वाधीनता संग्राम की क्रांति और कांग्रेस की स्थापना का गवाह है। इस ऐतिहासिक बिलैया मठ में 16 मई 1857 को अंग्रेज शासन के कलेक्टर एलन ऑक्टोवियम (एओ) ह्यूम ने कांग्रेस का गठन किया। पूरे 28 साल के प्रयासों के बाद 1885 में ह्यूम ने कांग्रेस की स्थापना की।
ये थी ह्यूम पर हमले की घटना
इतिहासकार प्रकाश परांजपे बताते हैं कि शहीद मंगल पाण्डेय ने 1857 में जब आजादी की क्रांति शुरू की, तब अंग्रेजी हुकूमत के विरोध के सुर इटावा, मैनपुरी सहित आस-पास के इलाकों में भी उठने लगे। इस सुर को दबाने का प्रयास किया जाने लगा। मंगल पांडेय के साथी क्रांतिकारियों को पता चला था कि कलकत्ता से मेरठ के विद्रोह को कुचलने के लिए गोला बारूद व अन्य सैन्य सामग्री भेजी जा रही है। तब इसे रोकने के लिए उन क्रांतिवीर इटावा-आगरा शेरशाह सूरी मार्ग के किनारे जसवंतनगर की ओर बढ़े।
क्रांतिकारियों को रोकने और उन्हें पकड़ने के लिए कलेक्टर एलन ऑक्टोवियम (एओ) ह्यूम ने सैनिकों को जिले के प्रमुख राजमार्गों पर पहरा देने के लिए तैनात कर दिया और आदेश दिया कि इधर से कोई भी संदिग्ध व्यक्ति गुजरता मिले तो गिरफ्तार कर लिया जाए।
16 मई 1857 की आधी रात सात हथियार बंद क्रांतिकारियों को इटावा में शहर कोतवाल ने पकड़े। ये मेरठ के पठान विद्रोही थे और अपने गांव फतेहपुर लौट रहे थे। ह्यूम को सूचना दी गई और विद्रोहियों को कमांडिंग अफसर कार्नफील्ड के सामने पेश किया गया। विद्रोहियों ने कार्नफील्ड पर गोली चला दी। कार्नफील्ड तो बच गया, लेकिन उसके आदेश पर चार को गोली मार दी गई और तीन क्रांतिकारी भाग निकले। क्रांतिकारी सैनिकों को स्थानीय जनता का भी समर्थन मिला था।
अंग्रेजों की जान को हर तरफ खतरा बढ़ चुका था। इसके बाद 19 मई 1857 की सुबह एक बैलगाड़ी में बैठकर कुछ सशस्त्र क्रांतिकारी बिलैया मठ की तरफ आ रहे थे, तब गश्ती पुलिस ने उनसे हथियार डालने को कहा। यहां अंग्रेजों की 9 नंबर सैनिक टुकड़ी और 8 नंबर सवार सेना के कुछ सिपाही तैनात थे। क्रांतिकारियों और यहां की गश्ती पुलिस में मुठभेड़ हुई। एक सिपाही मारा गया, बाकी भाग खड़े हुए।
ह्यूम ने मठ को घेर लेने का आदेश दिया
यह खबर जब कलेक्टर ह्यूम को लगी तो उन्होंने जॉइंट कलेक्टर डेनियल व वफादार सैनिकों को साथ लिया और जसवंतनगर की ओर चल पड़े। तब तक क्रांतिकारियों ने जसवंतनगर के बिलैया मठ शिवालय को ठिकाना बना लिया था। ह्यूम ने मठ को घेर लेने का आदेश दिया। अंग्रेज सरकार के सिपाही घेराबंदी करने लगे। एक सिपाही मठ की ओर आगे बढ़ा, तो एक गोली उसका सीना चीरती हुई निकल गई। यह देख तैश में आए जॉइंट कलेक्टर डेनियल ने अपना रिवॉल्वर निकालकर मोर्चा संभालना चाहा तब तक एक गोली उनके सिर में लगी।
गोलीबारी का सिलसिला ऐसा चला कि 15 अंग्रेज सैनिक देखते-देखते ढेर हो गए। मठ के अंदर क्रांतिकारी सैनिक हर-हर महादेव के उद्घोष के साथ गोली चला रहे थे और जसवंतनगर के लोग थोड़ी दूरी पर जवाब में उद्घोष कर उनका हौसला बढ़ा रहे थे। अंग्रेज सरकार के अफसरों व सिपाहियों के पीछे हट जाने पर भीड़ उनकी खिल्ली भी उड़ा रही थी। कलेक्टर ह्यूम ने स्थिति को भांपकर भाग निकलना बेहतर समझा था।
ह्यूम को महिला के वेश में भागना पड़ा
बताते हैं कि यहां से ह्यूम को एक महिला के वेश में अपने प्राण बचाकर भागना पड़ा था। उसने अपने गोरे शरीर को काले रंग से पुतवाया। पतलून उतारकर साड़ी पहनी और चादर ओढ़कर अपना भेष बदला। रात के अंधकार में वह गोरे सिपाहियों के साथ वहां से बच कर भागा। उसे हिंदुस्तानी सिपाहियों से भी प्राण संकट था। जैसे तैसे ह्यूम आगरा पहुंचे। ह्यूम और क्रांतिकारियों के बीच हुई इस गोलीबारी के निशान आज भी इस मठ पर देखे जा सकते हैं।
यहीं से शुरू हुआ कांग्रेस गठन का अभियान
अंग्रेज कलेक्टर एलन ऑक्टोवियम (एओ) अपनी जान बचाकर जब आगरा सुरक्षित पहुंच गया, तो उसे लगा विद्रोह हिंसक होता जा रहा है। इस घटना के बाद उसने यह भी भांप लिया था कि यह विद्रोह आगे और भी हिंसक हो सकता है। 1860 से 1880 के बीच दो दशकों में हुआ भी यही। देश को आजाद कराने के लिए जगह-जगह आंदोलन हो रहे थे। लेकिन ह्यूम ने इन्हीं दो दशकों में भारतीयों में हिंसा क्रांति की जगह राजनीतिक चेतना पैदा करने की कोशिश की। ह्यूम की इन कोशिशों में अंग्रेज सरकार के 72 अन्य अधिकारी भी शामिल हो गए। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड डफरिन ने ह्यूम को इसके लिए राजनीतिक संगठन खड़ा करने के निर्देश दिए थे। वह ह्यूम का मार्गदर्शन भी करता था और जरूरत पड़ने पर सलाह भी देता था।
कांग्रेस की स्थापना की और आंदोलन करने को कहा
करीब 28 सालों के प्रयास के बाद एओ ह्यूम ने 28 दिसंबर 1885 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। आजादी की मांग करने वालों को उसने इसी पार्टी में जोड़कर भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन करने को कहा। ह्यूम के साथ कांग्रेस की स्थापना ने दादा भाई नौरोजी और दिनशा वाचा ने अहम भूमिका निभाई। 1961 में प्रकाशित यंग इंडिया नाम के एक लेख में लाला लाजपत राय ने अंग्रेजों की परिकल्पना का जिक्र भी किया था। एओ ह्यूम की सात खंडों वाली गोपनीय रिपोर्ट में भी यह बात थी कि ह्यूम पर जसवंतनगर में हुए हमले से क्रांति और तेज होने के संकेत मिल रहे थे। इसी हिंसक क्रांति की दिशा बदलने और शांतिपूर्वक आंदोलन के लिए राजनीतिक पार्टी को अस्तित्व में लाया गया।