इलाहाबाद .. जिन सीटों पर कभी सिर्फ कमल खिलता था, अब वहां बेरोजगारी और जाति की बात; पढ़ें 12 सीटों की ग्राउंड रिपोर्ट
इलाहाबाद में पुलिस की लाठी ने बिगाड़े चुनावी समीकरण …
इलाहाबाद में पुलिस की लाठी बोल रही है। पिछले माह छात्रों पर चली लाठी की आवाज चुनावी शोरगुल में बहुत दूर तक गूंज रही है। लाठी ने चुनावी फिजा को ही बदल दिया है। संगम घाट से लेकर छात्रों के लॉज तक सत्ता विरोधी स्वर सुने जा रहे हैं। धर्म और अध्यात्म की इस नगरी में हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद पर बेरोजगारी और महंगाई का मुद्दा हावी हो रहा है।
यही जानने के लिए जब हम गंगा नदी पर बने लाल बहादुर शास्त्री पुल से नीचे उतरे तो संगम तट पर स्नान कर रहे हिंदुत्ववादी चेहरों में कई युवा बेरोजगारी को चुनावी का प्रमुख मुद्दा बताते मिले। कहते हैं कि महंगाई से सभी परेशान हैं। पढ़े-लिखे युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही। रेलवे के रिजल्ट में घपला हुआ। विरोध करने पर छात्रों को घसीट-घसीट कर पीटा जाता है। पुलिस लाठी से लॉज का दरवाजा और खिड़की तोड़ती है। लाठी की आवाज लखनऊ होते हुए दिल्ली तक पहुंचेगी।
आइए आपको इलाहाबाद की सभी 12 विधानसभा सीटों पर बन रहें चुनावी समीकरणों के बारे में बताते हैं…
इलाहाबाद उत्तरी : कांग्रेस को यहां बड़ी उम्मीद
संभवतः इलाहाबाद उत्तरी विधानसभा क्षेत्र यूपी की पहली सीट होगी। जहां बीजेपी व कांग्रेस के उम्मीदवार का सीधा-सीधा मुकाबला हो रहा है। कांग्रेस को यहां काफी उम्मीद है। तभी तो प्रियंका गांधी शुक्रवार को यहां रोड शो करने आ रही हैं।
कांग्रेस प्रत्याशी अनुग्रह नारायण सिंह बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे को लेकर चुनावी मैदान में भाजपा प्रत्याशी हर्षवर्धन बाजपेई को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। उधर, भाजपा के उम्मीदवार बजरंगबली के सहारे लखनऊ तक पहुंचने की बात कह रहे हैं। कहते हैं कि बजरंगबली ने उन्हें टिकट दिलाई है। पिछली बार की तरह इस बार भी लंका दहन कर लखनऊ पहुंचेंगे। भाजपा समर्थक इस क्षेत्र को बीजेपी का गढ़ बताते हैं।
यहां आरएसएस के कार्यकर्ता मतदाता जागरूकता के नाम पर वोटर्स के घर-घर पहुंचकर राष्ट्रवाद का नारा बुलंद कर रहे हैं। हालांकि, सपा के संदीप यादव तथा बसपा के संजय गोस्वामी दोनों में से किसी एक का खेल बिगाड़ सकते हैं।
इलाहाबाद उत्तरी विधानसभा को सबसे शिक्षित मतदाताओं का क्षेत्र कहा जाता है। हालांकि, यहां सबसे कम मतदान होता है। यहां से कुल 9 उम्मीदवार विधानसभा पहुंचने की होड़ में हैं। उधर, सपा प्रत्याशी संदीप यादव रायबरेली के रहने वाले हैं। लिहाजा उन्हें बाहरी उम्मीदवार बताया जा रहा है। गुरुवार की शाम अखिलेश यादव की सभा के बाद सपा समर्थकों में भी जोश की कमी नहीं दिख रही है। सपा समर्थकों का यही जोश कांग्रेस को भारी पड़ सकता है। बसपा प्रत्याशी संजय गोस्वामी की नजर ब्राह्मण वोटरों के साथ-साथ दलित चेहरों पर टिकी हुई है। यह विधानसभा क्षेत्र ब्राह्मण व कायस्थ बाहुल्य क्षेत्र बताया जाता है।
इलाहाबाद दक्षिण : बसपा खेल बिगाड़ने में सक्षम
अब हम आपको इलाहाबाद दक्षिण ले चलते हैं। इसका आधा हिस्सा यमुना नदी के पार है। यहां व्यापारिक घरानों के बीच चुनावी भिड़ंत हैं। दिलचस्प ये है कि ज्यादातर मतदाता भी व्यापारी वर्ग के हैं।उड्डयन मंत्री नंद गोपाल गुप्ता ‘नंदी’ को भाजपा ने फिर उम्मीदवार बनाया है। 2017 में वह बसपा छोड़ भाजपा के टिकट पर लखनऊ पहुंचे थे। इधर, भाजपा छोड़कर रईस चंद्र शुक्ला सपा के टिकट पर नंदी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। दोनों शहर के बड़े कारोबारी हैं। हालांकि, भाजपा छोड़ सपा में आए रईस चंद्र शुक्ला को प्रत्याशी बनाए जाने से पार्टी में ही विरोध हो रहा है। इससे वह अपने ही घर में घिरे हुए हैं। बसपा के देवेंद्र मिश्रा समेत 25 उम्मीदवार दोनों को पटखनी देने में जोर आजमाइश कर रहे हैं।
इलाहाबाद पश्चिम : देखिए बुल्डोजर को चुनेंगे या नहीं
इलाहाबाद पश्चिम कभी बाहुबली अतीक अहमद के नाम से जाना जाता था। इस विधानसभा क्षेत्र से 5 बार विधायक निर्वाचित होने वाले अतीक अहमद का परिवार इस बार चुनावी दंगल से बाहर है। 2007 और फिर 2012 के चुनाव में बसपा विधायक पूजा पाल ने अतीक एवं अतीक के भाई को लखनऊ पहुंचने से रोक दिया था। अब पूजा पाल बसपा छोड़ सपा के टिकट पर कौशांबी जिले की चायल विधानसभा से चुनाव लड़ रही हैं।
पिछले 5 साल में इसी विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक बुल्डोजर चला। अतीक के साम्राज्य को ध्वस्त कर दिया गया। इस विधानसभा क्षेत्र में प्रवेश करते ही आपको कई ध्वस्त मकान दिखेंगे। चुनाव से ठीक पहले योगी सरकार ने अतीक की अवैध जमीन पर गरीबों का आशियाना बनाने का निर्णय लिया। वहीं, भाजपा प्रत्याशी मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह अतीक के आतंक से मुक्ति दिलाने का हवाला देकर वोट मांग रहे हैं। सपा ने यहां पहले अमरनाथ मौर्य को टिकट दिया। फिर रिचा सिंह को मैदान में उतारा। रिचा सिंह से सिद्धार्थ नाथ सिंह का सीधा मुकाबला है। कांग्रेस के तस्लीमुद्दीन और बसपा के गुलाम कादिर चुनावी समीकरण को आसान बना रहे हैं।
करछना : क्या इस बार इतिहास रच पाएगी भाजपा ?
करछना एक ऐसी सीट है, जिस पर मोदी लहर में भी भाजपा चुनाव नहीं जीत पाई थी। पीयूष रंजन निषाद समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार और राजा बरांव खानदान के कुंवर उज्ज्वल रमण सिंह से हार गए थे। इस बार भी लड़ाई सपा बनाम भाजपा ही है। भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी के उम्मीदवार पीयूष रंजन निषाद इस बार भी गठबंधन प्रत्याशी हैं।
अगर इस सीट की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर जाएं तो यहां राजा बरांव यानी कुंवर रेवती रमण सिंह खानदान का एकक्षत्र राज है। रेवती रमण सिंह यहां से 7 बार विधायक रहे हैं। उनके बाद बेटे कुंवर उज्जवल रमण सिंह ने इस पर अपना प्रभुत्व कायम रखा है। एम-वाई फैक्टर यानी मुस्लिम और यादव वोटर्स के साथ वो ब्राह्मणों को भी साधने में लगे हैं। पीयूष के पास काम बनाने के लिए भाजपा है तो वही क्षेत्र का विकास उज्जवल रमण की ताकत।
हंडिया: त्रिकोण यहां दिखता है
2017 में मोदी लहर के बावजूद बसपा के हाकिम लाल बिंद विधानसभा पहुंचे थे। इस बार बसपा छोड़ वह सपा से बसपा प्रत्याशी मुन्ना त्रिपाठी को टक्कर दे रहे हैं। सपा छोड़कर भाजपा गठबंधन के निषाद पार्टी से चुनाव लड़ रहे प्रशांत सिंह इस मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं। इनके पिता महेश सिंह सपा से सांसद रह चुके हैं। यह विधानसभा क्षेत्र भदोही लोकसभा के अंतर्गत आता है।
भदोही के भाजपा सांसद रमेश बिंद प्रशांत सिंह को अपने समुदाय का वोट दिलाने में पूरी मदद कर रहे हैं। यह इलाका बिंद और ब्राह्मण बाहुल्य माना जाता है। कांग्रेस ने रीना बिंद को चुनावी मैदान में उतारा है। यहां के चुनावी दंगल में 21 लड़ाके भिड़े हुए हैं।
प्रतापपुर : यहां सीधी लड़ाई
यहां सीधी लड़ाई भाजपा गठबंधन से अपना दल (एस) के राकेश धर त्रिपाठी की सपा उम्मीदवार विजमा यादव से हैं। विजमा यादव प्रयागराज के सबसे बड़े बाहुबली रह चुके जवाहर पंडित की पत्नी हैं। जवाहर पंडित की हत्या मामले में करवरिया बंधु जेल में हैं। प्रतापपुर के विधायक मुस्तफा सिद्दीकी अब सपा से फूलपुर के प्रत्याशी हैं। यहां कांग्रेस के संजय तिवारी, बसपा से घनश्याम पांडेय सहित 39 प्रत्याशी चुनावी दंगल में हैं।
फूलपुर : कभी नेहरू की संसदीय सीट रही, आज कांग्रेस कतार में
फूलपुर की पहचान देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के संसदीय क्षेत्र से होती है। इसी लोकसभा सीट से पंडित नेहरू सांसद चुने जाते थे। फूलपुर संसदीय क्षेत्र का एक विधानसभा क्षेत्र है। यहां भाजपा उम्मीदवार प्रवीण पटेल से सपा के मुस्तफा सिद्दीकी से सीधी लड़ाई है। मुस्तफा सिद्दीकी वर्तमान में प्रतापपुर के विधायक हैं। बसपा ने राम तौलन यादव तथा कांग्रेस ने सिद्धि नाथ मौर्या को चुनावी दंगल में उतारा है। फूलपुर विधानसभा क्षेत्र से 25 उम्मीदवार चुनावी दंगल में अपना दांव आजमा रहे हैं।
बारा : साइकिल और कमल दिखा रहे दमदारी
बारा सुरक्षित सीट से वर्तमान विधायक डॉ. अजय कुमार का टिकट भाजपा ने काट दिया है। आंतरिक सर्वे में बताया गया कि डॉ. अजय कुमार के खिलाफ मतदाता गोल बंद है। टिकट काटे जाने से खफा डॉ. अजय कुमार ने भाजपा छोड़कर अब बसपा से ताल ठोक रहे हैं। वहीं, भाजपा ने अपने गठबंधन अपना दल (एस) को यह सीट दे दी है। डॉ. वाचस्पति को भाजपा गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतारा गया है। यहां उनकी टक्कर सपा के अजय भारतीय मुन्ना से है। कांग्रेस ने मंजू संत को अपना उम्मीदवार बनाया है। कुल 25 उम्मीदवार यहां से मैदान में हैं।
कोरांव : भाजपा को अपनों से ही यहां खतरा
इलाहाबाद का यह विधानसभा क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य है। यहां सपा, बसपा व कांग्रेस में त्रिकोणीय लड़ाई है। भाजपा के उम्मीदवार राजमणि कोल को अंतर्विरोध का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा ने पहले यहां आरती कोल को टिकट दिया था। बाद में आरती कोल से टिकट वापस लेकर राजमणि को चुनाव मैदान में उतार दिया। टिकट काटे जाने से नाराज आरती कोल शिवसेना से पर्चा भरकर चुनावी दंगल में कूद चुकी हैं। कांग्रेस ने रामकृपाल कोल को चुनावी मैदान में उतारा है। यहां 17 उम्मीदवारों चुनाव मैदान में हैं।
फाफामऊ : गुरु और अहमद आमने-सामने
भाजपा ने वर्तमान विधायक का टिकट काट दिया है। भाजपा ने अपने नए उम्मीदवार गुरु प्रसाद मौर्य पर दांव लगाया है। गुरु प्रसाद मौर्य की सीधी लड़ाई सपा उम्मीदवार अंसार अहमद से है। बसपा से ओम प्रकाश पटेल तथा कांग्रेस की दुर्गेश पांडेय चुनावी दंगल में हैं। यहां के 29 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला तीन लाख 61 हजार वोटर करेंगे। फाफामऊ विधानसभा में शहरी क्षेत्र के साथ-साथ गंगा नदी के उस पार का इलाका आता है।
मेजा : एक सीट, जहां भाजपा को बसपा से चुनौती
बाहुबली करवरिया परिवार की नीलम करवरिया यहां से भाजपा विधायक हैं। भाजपा ने एक बार फिर से नीलम करवरिया को चुनावी दंगल में उतारा है। बसपा ने ब्राह्मण उम्मीदवार सर्वेश चंद्र तिवारी उर्फ बाबा तिवारी को मैदान में उतारकर ब्राह्मण वोट के साथ-साथ अपने कैडर वोट के सहारे नीलम करवरिया को सीधी चुनौती दी है। वहीं सपा ने संदीप सिंह को मैदान में उतारा है। यहां के कुल 25 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला 317000 वोटर करेंगे।
सोरांव : पिछले चुनाव वाली लड़ाई ही इस बार
सोरांव विधानसभा सीट पर 2017 में अपना दल (एस) के टिकट पर चुनाव जीते जमुना प्रसाद निषाद से जनता नाराज है। वोटर्स का कहना है कि विधायक जीतने के बाद कभी झांकने तक नहीं आए। यहां जमुना प्रसाद निषाद फिर अपना दल (एस) के टिकट पर मैदान में हैं। उनके सामने सपा से पिछली बार दूसरे पायदान पर रहीं गीता पासी कड़ी टक्कर दे रही हैं। लड़ाई नेट टू नेट है।
अगर पिछले चुनाव पर नजर डालें तो भाजपा और अपना दल (एस) के कैंडीडेट जमुना प्रसाद सरोज को कुल 77814 मत मिले थे। उन्होंने सपा उम्मीदवार गीता पासी को 17735 मतों से हराया था। गीता को कुल 60079 मत मिले थे। इस तरह राजनीतिक पंडित इस बार के चुनाव को करीबी होने और हार और जीत के अंतर को बहुत कम होता देख रहे हैं।