1989 में रूस के हाथ से निकल गया था जर्मनी का जीता हुआ हिस्सा; यूक्रेन में बनी रूस की कठपुतली सरकार तो बचाना होगा मुश्किल
रूसी सेना ने यूक्रेन की राजधानी कीव को चारों ओर से घेर रखा है। इस बात की आशंका है कि जल्द ही रूसी सेना कीव पर कब्जा करके वहां की सत्ता पर एक कठपुतली सरकार को बिठा सकती है।
ऐसा होता है तो यूक्रेन में इस कठपुतली सरकार को बचाए रखना रूस के लिए काफी मुश्किल होगा। इसकी मुख्य वजह यह है कि यूक्रेन ईस्ट और वेस्ट में बंटा हुआ है। ईस्ट में रूसी भाषा बोलने वालों की संख्या अच्छी खासी है। ऐसे में यहां तो कठपुतली सरकार को समर्थन मिलेगा, लेकिन वेस्ट में यूक्रेनियन ज्यादा रहते हैं। इसलिए यहां इसका कड़ा विरोध होगा।
यही वजह है कि इस जंग ने 1989 की उस घटना की याद ताजा कर दी है, जब सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद जर्मनी का जीता हुआ हिस्सा लोगों के विरोध के चलते रूस के हाथ से निकल गया था।
ऐसे में आज भास्कर इंडेप्थ में जानते हैं, क्या है वो 1989 की कहानी जो बताती है कि क्यों जंग जीतकर भी यूक्रेन को कंट्रोल में रखना रूस के लिए मुश्किल होगा? एक्सपर्ट के हवाले से जानेंगे कि आखिर अब कैसे जंग जीत कर भी हार सकता है रूस?
पहले बात जर्मनी के जीते हुए हिस्से की, जो रूस के हाथ से निकल गया
कब हुआ था जर्मनी के एक हिस्से पर रूस का कब्जा?
सेकेंड वर्ल्ड वॉर में जर्मनी की हार हुई। जर्मनी के खिलाफ USSR, अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन सभी एक साथ लड़ रहे थे। जंग के बाद बर्लिन शहर पर USSR, अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन चारों का कब्जा हो गया था। 1948 में एक देश वेस्ट जर्मनी बनाने की बात चली तो स्टालिन ने इसका विरोध किया। उन्होंने शहर को दो हिस्से में बांट दिया।
इसके कुछ साल बाद 13 अगस्त 1961 को निकिता ख्रुश्चेव ने अचानक से दीवार खड़ी कर पूर्वी बर्लिन के हिस्से को पश्चिमी बर्लिन से अलग करने का फरमान सुनाया। रातों-रात लोहे के कंटीले तार की दीवार खड़ी हो गई। शहर के लोगों ने इसका विरोध किया, लेकिन विरोध को बंदूक की ताकत पर दबा दिया गया।
जब लोहे की दीवार कंक्रीट की बनी, तो लोग कहने लगे ‘बर्लिन की दीवार’
लोहे की दीवार की जगह ख्रुश्चेव ने मजबूत कंक्रीट की दीवार खड़ी कर दी तो लोग इसे ही बर्लिन की दीवार कहने लगे। दीवार के एक तरफ वाले हिस्से में अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन की सेना थी और दूसरी ओर USSR की फौज। इस तरह जर्मनी दो हिस्से में बंट गया था, एक जर्मनी ईस्ट और दूसरा जर्मनी वेस्ट।

बंदूक भी नहीं रोक पाई जर्मनी के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में शुरू हुआ पलायन
बर्लिन की दीवार बनने के बाद एक हिस्से में यूरोपीय देशों के संपर्क में आने की वजह से विकास तेज हुआ। वहीं, USSR वाले हिस्से में कम्युनिस्ट सरकार की कमजोर नीतियों की वजह से भूख और गरीबी की हालात पैदा हो गए। फिर पूर्वी जर्मनी से पश्चिम की तरफ पलायन शुरू हो गया। पूर्वी जर्मनी का हर छठा आदमी पश्चिम जर्मनी चला गया। सरकारी आंकड़े में 25 लाख से ज्यादा लोगों ने पूर्वी जर्मनी से पलायन किया था।
USSR ने पलायन रोकने के लिए स्पेशल पुलिस बनाई, लेकिन हर 5 में से एक शख्स को ही पुलिस पकड़ पा रही थी। कइयों को दीवार पार करते समय रूसी सेना ने गोली मार दी। आखिरकार USSR की सरकार को 9 नवंबर1989 में पाबंदियां हटानी पड़ीं। फिर 1990 में सरकार ने पूरी तरह से बर्लिन की दीवार को गिराकर पूरे जर्मनी को मिला दिया। इसी के साथ USSR से बाकी छोटे-छोटे कई देश भी आजाद हो गए थे।
अब बात रूस VS यूक्रेन जंग और उसके परिणाम की
जंग जीतकर भी रूस के लिए मुसीबत बना रहेगा यूक्रेन?
जर्मनी की तरह ही यूक्रेन भी दो हिस्सों में बंटा हुआ है। पूर्वी यूक्रेन के कुछ हिस्से में रूसी भाषा बोलने वालों की तदाद ज्यादा है। वहीं, पश्चिमी यूक्रेन में मूल यूक्रेनियन की तदाद ज्यादा है। ऐसे में राजधानी कीव की सत्ता पर रूस अपनी पसंद की कठपुतली सरकार बिठा भी देते हैं तो उस सरकार को बचा पाना मुश्किल होगा।
इसकी वजह यह है कि यूक्रेन की कुल आबादी में से करीब 75% जनसंख्या मूल निवासियों की है। किसी मुल्क की सरकार से वहां की 75% से ज्यादा आबादी नाराज हो तो ऐसे में किसी सरकार का बने रहना मुश्किल और चुनौती भरा होगा।

2008 में रूस से 9% यूक्रेनियन नफरत करते थे, 2021 में आंकड़ा हुआ 50% से ज्यादा
कीव इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशियोलॉजी की रिपोर्ट में सामने आया है कि अप्रैल 2008 में यूक्रेन में रहने वाले 9% लोग ही रूस से नफरत करते थे। यूक्रेन के प्रति रूस के रवैये को देखते हुए दिसंबर 2021 तक 50% से ज्यादा लोग रूस से नफरत करने लगे थे। जंग के बाद यह आंकड़ा 80% से ज्यादा हो गया तो भी कोई आश्चर्य की बात नहीं है। ऐसे में साफ है कि किसी मुल्क की आधी आबादी से ज्यादा रूस की बनाई कठपुतली सरकार से नफरत करे तो उस सरकार को बचाए रखना मास्को के लिए आसान नहींं होगा।

पुतिन के गलत फैसले ने एक बार फिर से यूरोपीय देशों को ला दिया है साथ
चीन अध्ययन केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अध्यक्ष और प्रोफेसर बीआर दीपक ने कहा, ‘रूस जंग जीत जाए तो भी उसे यूक्रेन की सत्ता में अपने समर्थन वाली सरकार को बचाए रखना मुश्किल होगा। यूक्रेन के लोगों और सेनाओं के प्रतिरोध से यह साफ हो गया है।’
उन्होंने कहा कि रूस ने तीन से चार दिन में जंग खत्म करने का प्लान बनाया था और उसे इसमें सफलता नहीं मिली है। इससे रूस की सैन्य ताकत और उसके वैश्विक हैसियत पर भी सवाल उठने लगे हैं।
साथ ही प्रोफेसर का मानना है कि इस जंग से पहले यूरोपीय देश अपने-अपने देश को मजबूत करने में लगे थे, लेकिन अब रूस की वजह से 1990 के बाद बीते 3 दशक में पहली बार यूरोप के देश एकजुट हो गए हैं। यही नहीं NATO और अमेरिका के फैसले से हटकर अब यूरोपीय देश अपने स्तर पर यूक्रेन को मदद कर रहे हैं। इसकी वजह अपनी सुरक्षा को लेकर उनकी चिंता है।
बीआर दीपक का मानना है कि NATO और अमेरिका भले ही सीधे इस जंग से अब तक दूर हों, लेकिन हर तरह से यूक्रेन को मदद जारी रखकर इन देशों ने साफ कर दिया है कि वे यूक्रेन में रूस की मंशा सफल नहीं होने देंगे।
अमेरिकी डिफेंस एक्सपर्ट ने यूक्रेन को लेकर जताई 4 संभावनाएं
दैनिक भास्कर से बात करते हुए अमेरिकी डिफेंस एक्सपर्ट प्रोफेसर पॉल डी मिलर पॉल ने मौजूदा युद्ध की स्थिति को देखते हुए तीन बातों की संभावना जताई है।
- रूस पर लगाए गए प्रतिबंध और यूक्रेन का प्रतिरोध राष्ट्रपति पुतिन के लिए मुश्किल हालात पैदा कर सकता है। एक-दो सप्ताह की लड़ाई के बाद यूक्रेन और रूस संघर्ष-विराम के लिए तैयार हो सकते हैं।
- रूस यूक्रेन से पीछे हट जाएगा, क्रीमिया रूस के पास ही रहेगा और डोनबास क्षेत्र (डोनेट्स्क और लुहांस्क प्रांत) यूक्रेन के नियंत्रण के बाहर हो जाएगा। यूक्रेन के सामने दो परिस्थितियां होंगी। वह फिनलैंड की तरह तटस्थ रहेगा या फिर NATO में शामिल होने के लिए गिड़गिड़ाएगा।
- अगर ऐसा नहीं होता है तो नाइपर नदी के दोनों तरफ दोनों पक्ष डट जाएंगे। रूस का पूर्वी यूक्रेन और क्रीमिया पर पूर्ण नियंत्रण हो जाएगा। तनाव बरकरार रहेगा। पश्चिमी यूक्रेन कमजोर हो जाएगा और वह NATO का हिस्सा बनने के लिए मिन्नत करेगा।
- अगर रूस जीत जाता है, तो यूक्रेन के पश्चिमी इलाके और अहम शहरों में पब्लिक रेजिस्टेंस गुरिल्ला युद्ध की शक्ल ले लेगा। ऐसे में बहुत खून-खराबा होगा। अगर यूक्रेन कभी जीता भी तो कम से कम एक जेनरेशन पीछे चला जाएगा।